वह व्यक्ति या जीव जो ज्ञानमार्ग की साधना कर रहा है।
इनको ज्ञानमार्गी भी कह सकते हैं। इस मार्ग पर प्रगती होने पर साधक ज्ञानी कहलाता है।
ज्ञानमार्ग सभी के लिए पूर्णतया खुला है। आयु, जाती, लिंग, धर्म, राष्ट्रीयता, नस्ल, भाषा या किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं है।
तथापि, साधक में कुछ गुणों का होना आवश्यक है, जो उसको ज्ञान के योग्य बनाते हैं। इनके होने पर ज्ञानमार्ग पर चलना आसान होता है, सफलता मिलती है। इनका न होना अवरोध कहलायेगा।
मुमुक्षत्व, विवेक, वैराग्य, षट सम्पत्ति - ये चार मुख्य गुण होना आवश्यक है। शास्त्रोक्त हैं।
उपरोक्त में से कुछ गुण नैसर्गिक हैं , उनका आभाव प्रयास से दूर नहीं किया जा सकता , जैसे - मुमुक्षत्व , रूचि आदि।
कई गुण हैं जिनका विकास हो सकता है , उचित मार्गदर्शन द्वारा , जैसे - बुद्धि, विवेक, वीरता आदि।
क्योंकि ज्ञानार्जन इन गुणों पर निर्भर है , इनका विकास करना साधक का उप-लक्ष्य हो जाता है। जो गुणों और योग्यताओं को बढ़ाते हैं वो ज्ञानमार्ग पर तेज प्रगती करते हैं।
गुरुजन साधक का मूल्यांकन इन्ही गुणों के आधार पर करते हैं , और कुछ गुरु वांछित गुण न होने पर शिष्य को अस्वीकार भी कर देते हैं।