Wise Words
संघर्ष से समर्पण तक: ज्ञानमार्गी साधकों के लिए सार
अजय कुमार त्रिपाठी
1. संघर्ष स्वाभाविक है: जब साधक अहंकार, माया और कर्तापन को पहचानने लगता है, तो संघर्ष अनिवार्य रूप से उत्पन्न होता है। यह आध्यात्मिक यात्रा का एक आवश्यक चरण है। 2. कर्तापन की भ्रांति: "मैं कुछ नहीं कर सकता" या "मैं केवल एक कठपुतली हूँ"ये भी अहंकार के ही सूक्ष्म रूप हो सकते हैं। वास्तविक समर्पण तब होता है जब 'मैं' की यह धारणा भी विलीन हो जाती है। 3. समर्पण कोई प्रयास नहीं: समर्पण कोई 'स्थिति' नहीं, बल्कि सहज प्रवाह है। इसे जबरदस्ती प्राप्त करने की कोशिश भी अहंकार का एक नया रूप बन सकती है। 4. संघर्ष को देखने की कला: जब कोई संघर्ष करे, तो उसे मिटाने की बजाय उसे जागरूकता से देखें। संघर्ष को देखने मात्र से ही धीरे-धीरे उसका प्रभाव कम होने लगता है। 5. सत्य का साक्षात्कार: कोई भी अंतिम उत्तर नहीं है, क्योंकि सत्य बुद्धि के परे है। जब प्रश्न करने की आवश्यकता समाप्त हो जाती है, तब उत्तर स्वयं प्रकट होने लगता है। 6. आनंदपूर्ण स्वीकृति: जब साधक यह देख लेता है कि सब कुछ ईश्वर की लीला हैसंघर्ष भी और समर्पण भीतो सहजता अपने आप आ जाती है। तब साधक संघर्ष से नहीं लड़ता, बल्कि उसे स्वीकार कर लेता है, और यही वास्तविक मुक्ति है। अंतिम सूत्र: "संघर्ष भी लीला है, समर्पण भी लीला हैजो इसे देख ले, वही मुक्त है।"
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