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तरुण तरंग (क्रमशः)
जानकी
**तरंग १ः ज्ञान/अज्ञान क्रमश:...** <br><br> <div class="ui image"> <img width="500px" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEiHo157iEOuAzZRRmw_nL-J-ExH2klvo7x70xgR_QDHz2V24wocYYBCs1U_l6IFlB6ysYsI_2SkV5skDxDqfhkCWV5RS9ulEU5n-1sOKyHd9RX7PtoHaLuqDD3D827j6JQLvbj-fK3q4FYA_AZKGI-Fe57cjoLiizI23Zzn2a39DMCCoE9jJjqZ71okzXA" alt="Any Width"> </div> <br><br> गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुर्साक्षात परब्रम्ह तस्मै श्री गुरवे नमः यहाँ पर प्रकाशित सभी विचार मेरे सद्गुरू श्री तरुण प्रधान जी द्वारा विभिन्न सत्संग, प्रवचन और लेखों में व्यक्त किए गए विचार है। उन विचारों में से ज्ञान तरंग पैदा करने वाले कुछ विंदुओं को महावाणी के रूप में इकट्ठा करके मैंने यहाँ प्रकाशित करने का प्रयास किया है। **"तरंग १: ज्ञान/अज्ञान"** विषय का पहला भाग में क्रम संख्या १ से लेकर २७ तक समावेश है। ये "ज्ञान/अज्ञान" विषय का दूसरा भाग है। कोई त्रुटि हो तो क्षमा प्रार्थी हूँ, आगामी श्रृंखला में यथासंभव सुधार करने का प्रयास करूँगी। इस अवसर और गुरुकृपा के लिए गुरुदेव के प्रति हार्दिक आभार। २८. चमत्कारों से मनोरंजन हो सकता है, सन्तुष्टि ज्ञान से होती है। सबसे बड़ा चमत्कार भी ज्ञान पड़ते ही साधारण हो जाता है। २९. आध्यात्मिक प्रगति के लिए ज्ञान और गुरु ही कुंजी है। ३०. ज्ञान के लिए शरीर (उपकरण) आवश्यक है, मेरे होने के लिए नहीं। ३१. ज्ञान उत्तरजीवीता पर निर्भर नहीं है। ज्ञान के लिए मानवता के परे जाना होता है। ३२. अज्ञान का नाश संभव है; ज्ञान संभव नहीं, अज्ञान का अभाव ही ज्ञान है। ३३. ज्ञानमार्ग सीधा मार्ग है, क्षण भर में ज्ञान होता है, लेकिन गुण के बिना ज्ञान संभव नहीं है, अशुद्धि के कारण गुणों के विकास में समय लग जाता है। ३४. बुद्धि अनेक योग्यताओं का समूह है। ज्ञान बुद्धि में होने वाली छोटी सी वृत्ति है। हर परत में बुद्धि होती है, कोशिकाओं का बनना बिगड़ना इसका उदाहरण है। ३५. चेतना बुद्धि का उन्नत परत है। ज्ञान से बुद्धि मिलती है,बुद्धि से विवेक से चेतना। ३६. विज्ञान भौतिक जगत से सम्बंधित सीमित सैद्धांतिक विषय है। यहाँ सापेक्षिक सत्य होता है, परिकल्पना और प्रयोग का नतीजा दिखाया जाता है। ३७. संशय अज्ञान का लक्षण है। शंका का समाधान प्रणाम से होगा, किसी के कहने से या पुस्तक पढ़ने से नहीं। ३८. चेतना में सुख और मुक्ति है, इसीलिए आपने आप आ जाती है। यदि दूसरी वृत्ति बलशाली है तो वहाँ अज्ञान बचा है, चेतना को भी हटा देती है। ३९. ज्ञानमार्ग पर अंधश्रद्धा, अंधविश्वास मना है, ज्ञान प्रमाणिक होता है। ४०. ज्ञानमार्ग विशेष मार्ग है, शुरू होते ही समाप्त होता है। यहाँ कोई लक्ष्य नहीं है, लक्ष्यहीनता इसका लक्ष्य है। ४१. ज्ञानमार्ग हमें मनुष्य बनाता है। ४२. चेतना को कर्म के रूप में देखना, कर्ता भाव होना और प्रयास से चेतना आ जायेगा ये समझना अज्ञान है। ४३. चेतना प्राकृतिक घटना है, ज्ञान का परिणाम है। ज्ञान के लिए प्रयास लगता है, चेतना के लिए नहीं। ज्ञान होने पर चेतना स्वयं प्रज्वलित होगी। ४४. शाब्दिक ज्ञान का फल शब्दों का पहाड़ हैं, सही ज्ञान का फल सही कर्म हैं। ४५. ज्ञानी की पहचान उसका नाम, शिक्षा, गुरु, पदवी नहीं, उसकी बातें भी नहीं, ज्ञानी की पहचान उसका जीवन और कर्म हैं। ४६. शून्यता में क्या ज्ञान, क्या अज्ञान? ज्ञान/अज्ञान अशुद्धि है, सकारात्मक ज्ञान अज्ञान है, नकारात्मक ज्ञान अज्ञेयता है। अस्तित्व ज्ञानहीन है। ४७. अज्ञानी जो सोचता है वो कहता है, ज्ञानी जो देखता है वो कहता है । ४८. पुस्तकों में ज्ञान नहीं सूचना है, पुस्तकें हमें मान्यताओं से भर देती हैं। ४९. जो जमा है वो अज्ञान है, उसका नाश शुद्धता है। शुद्धता कुछ ना होना है और कुछ ना बचना ही ज्ञान है। ५०. ज्ञान खोने से मिलेगा, पाने से नहीं। ज्ञानी स्वयं को खोकर सब कुछ पा लेता है। खोना ही पाना है। ५१. अज्ञान का सबसे बड़ा कारण मतारोपण है। मतारोपित व्यक्ति मतों का दास होता है, मतों को ही ज्ञान मान लेता है। ५२. ज्ञानी के लिए भोग भी त्याग है, अज्ञानी के लिए त्याग भी भोग है। त्याग कर्म नहीं भाव है, मूलतत्व परमत्यागी है। ५३. अज्ञानी के लिए शास्त्र बेकार हैं, वो कुछ नहीं जान पाता। ज्ञानी के लिए शास्त्र बेकार हैं, वो सबकुछ पहले ही जानता है। ५४. अज्ञानी झगड़ते हैं, अर्धज्ञानि वादविवाद करते हैं, ज्ञानेच्छुक प्रश्नोत्तर करते हैं और ज्ञानी मौन रहतें हैं। ५५. ज्ञानपिपासु को ही ज्ञानामृत पिलायें, सबको नहीं, भैंस को घास खिलाते हैं, वेद/पुराण नहीं। ५६. अच्छे अनुभव शुद्ध चित्त से ही संभव है। शुद्धि ज्ञान से ही होता है। ५७. अस्तित्व में सामान्य और चमत्कारपूर्ण घटना जैसा कोई भेद नहीं है, जो हमारी समझ में नहीं आता उसको चमत्कार कह देते हैं। ५८. रक्षण, भक्षण, प्रजनन तो पशु भी करते हैं। बुद्धि, विवेक और चेतना मनुष्य को विशेष बनाती है। ५९. जहाँ आग जली है उसके ताप और धुवाँ का प्रभाव आस-पास में भी पड़ता है। ६०. जहाँ प्रकाश है आस-पास का वातावरण भी प्रकाशित होता है। *** क्रमश:...
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