Wise Words
गुरु
निशिगंधा क्षीरसागर
गुरु त्राता गुरु हि उद्धर्ता ज्ञान का सागर गुरु मोक्षदाता सुखों के पल में , व्यथा के घावो में अदृश्य अव्यक्त आधार एक त्राता संरक्षक एक हाथ अदृश्य ज्ञानदाता..... II1ll बडा बिकट भवसागर भवसिंधु तू भवतारक, गुरु दयासिंधु, मैं साधक दीन अज्ञानी तू गुरु तू दीनबंधु प्रकाश दिखलाये पकड के ऊंगली दूर भगाये अज्ञान अंधियारा मनुष्य जीवन का लक्ष्य पाना गुरुनिर्देश सें सुफल हो यात्रा नाम रूप व्यक्तीत्व पुराना छूटा बंधन अज्ञान जनाजा गुरु जननि नवं जीवनदाता..... Il2ll चहूऔर फैला माया अंधेरा काले मेघ तम घनमाला गुरु निर्देश संकेत कीं मात्रा चमके बिजली ज्ञान विद्युल्लता गुरुवाणी कीं चाबी मिलता तनमन उजला दीप ज्ञान का दूर हुवा भय अज्ञान तमस का गुरुतत्व अदृश्य भवभय हर्ता ..... II3ll अनमोल वचन अमूल्य है वाणी गुरुमुख वाणी जादू है अनजानी कबाड का खजाना अज्ञान कीं गुंफा गुहयद्वार गुंफा का दरवज्जा खुद के भितर जानेवाला खुलं गया सिमसिम पत्थर दरवाजा द्रष्टा कीं दृष्टी -- हो गयी टकटक साक्षी भाव कीं सारी खटपट अस्तित्व कीं तहतक ले जाये झटपट गुरुदृष्टी सें जगत हि पलटा गुरु कृपा कीं हो गयी वर्षा ..... II4ll जीते जी मेरे जल गयी चिता मिट गयी चिंता मृत्यू हुवी राख इच्छा अपेक्षा वासनाए हुवी खाक भस्म लगा माथे शिव तिलक अलख निरंजन निरंजन अलख जनम मरण कीं सुलझी गुत्थी सुलझी गुत्थी बंधन सें मुक्ती ..... II5ll मैं नहीं अनुभव शरीर न मन ना मैं चित्त स्मृती और अहम्. धूल अज्ञान को साफ धोकर दर्पण उजला संतुलित तन मन दृष्टी उजली वृत्ती प्रकाशित चित्त विकसित निश्चल शांत स्थिर बुद्धी व मन भाव चित्त वृत्ती सभी उन्नत चेतन गुरु कीं महिमा अति मनभावन ..... II6ll माया अज्ञान का सारा अंधियारा स्मृती संस्कार जन्माँतरी का बोझा बोझा उतरा मन चित्त हलका देह मानुष मिट्टी मात्र घडा ज्ञान कीं बाती दीपक जला चैतन्य प्रकाशित तिमिर मिटा खोया स्वरूप खुद का मिला सत्यसूर्य उगा अंधियारा मिटा असत्य माया बंधन हटा रस्सी का बंधन कटा ज्ञानाग्नी सें बंधन जला गुरुमहिमा सें कर्मबीज जला ..... II7ll बेहोशी के रूप में होश कीं निद्रा उजला जगत अंधियारा जागा सारा रोमांचित रोमरोम कणकण जागा होश जागृती चैतन्य नित्यावस्था अस्तित्व अज्ञेय सत्य स्वरूपी बुद्धी सें जाना असत्य मायारूपी जगदाकार निराकार नित्य नारायणी निराकार निर्गुण सगुण स्वरूपी अव्यक्त अजन्मा अद्वैत अविनाशी अमूर्त साकार सदगुरु स्वरूपी अहं त्यागकर ज्ञान अवस्थित सत्य जानकर साक्षी नित्य सुंदर जीवन आनंद अमित अनंत ब्रह्म अद्वैत सें द्वैत गुरु शिष्य होकर आत्मैक्य गुरुशिष्य दो होकर अद्वैत दो नहीं है केवल एक दो नहीं है केवल एक ..... II8ll
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