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सजीव एवं निर्जीव: एक चित्त निर्मित भ्रम
स्वप्रकाश
<font color="blue">**मैं अज्ञानी बावरा, करूँ जीव-निर्जीव का भेद। गुरु ने ज्ञान करा दिया, ये दो नहीं हैं एक।।**</font> **विज्ञान के अनुसार सजीव एवं निर्जीव क्या है?** विज्ञान के अनुसार सजीव एक पृथक एवं भिन्न इकाई है जी कि जीवन के मुख्य लक्षण (वृद्धि, गति, प्रजनन, संरचना, जैविक प्रक्रियाएं एवं उसके शरीर के बाहर के उत्प्रेरक के प्रति प्रतिक्रिया आदि) प्रदर्शित करती है. और निर्जीव में यह सब लक्षण नहीं पाए जाते। अब एक-एक करके इन लक्षणों को देखते हैं। *वृद्धि एवं गति* सजीव एवं निर्जीव में दोनों में वृद्धि एवं गति होती है जल के कई सारे अणुओं के संयोजन से नदी नालों, झरनों, समुद्र का निर्माण होता है। मिट्टी के छोटे -छोटे कण मिलकर बड़े-बड़े पत्थर, पहाड़ों का निर्माण कर देते हैं। तो निर्जीव में सजीव की तुलना में कई गुना वृद्दि एवं गति होती है. इस प्रकार से वृद्धि एवं गति को जल के विभिन्न रूपों में देख सकते हैं। *प्रजनन अर्थात प्रतिकृत निर्मित करना* एक परमाणु के केन्द्रक विभाजन एवं संलयन के द्वारा कई सारे परमाणु निर्मित होते हैं। हाइड्रोजन सबसे सरल परमाणु है जिसके नाभिक में केवल एक इलेक्ट्रान होता है। हाइड्रोजन के एक और परमाणु से नाभिकीय संलयन द्वारा हीलियम के एक परमाणु का निर्माण होता है। अर्थात यहाँ भी वृद्धि एवं गति है। अर्थात यह भी सजीव है। हम सक्रिय रूप से विभाजन करने वाली कोशिका को सजीव कह देते हैं परमाणु के स्तर पर भी यदि देखें तो अधिक परमाणु भार वाले परमाणुओं के विभाजन से सरल परमाणु एवं उनके संयोजन से फिर से जटिल परमाणु एवं परमाणुओं के संयोजन से पुनः अणुओं का निर्माण होता है जैसे हाइड्रोजन के दो परमाणु एवं ऑक्सीजन का एक परमाणु मिलकर जल के एक अणु का निर्माण करते हैं। तो यहाँ भी विभाजन, संयोजन, प्रतिकृति, गति एवं वृद्धि हो रही है। *जैविक प्रक्रियाएं* ये एक प्रकार की रासायनिक प्रक्रियाएं हैं निर्जीव पदार्थों जैसे मिट्टी, जल, वायु, अग्नि आदि में भी अन्य रासायनिकों के साथ रासायनिक प्रक्रियाएं होती रहती हैं। *बाह्य उत्प्रेरकों से प्रतिक्रिया करना* निर्जीव पदार्थ भी बाहर के उत्प्रेरकों जैसे जल, वायु, एवं अन्य पदार्थो के प्रति प्रतिक्रिया करते हैं और दूसरे पदार्थों का निर्माण करते हैं। जैसे जल 100 oC तापमान के ऊपर भाप में परिवर्तित हो जाता है और शुन्य से नीचे तापमान पर बर्फ बन जाता है। अब यदि सजीव को देखें तो एक कोशिका से अनेक कोशिका निर्मित होती हैं। कोशिका को विभाजन एवं प्रजनन के लिये मूलभूल कण अणु एवं परमाणुओं की पोषण के रूप में आवश्यकता होती है। सभी सजीवों में, निर्जीव पदार्थ/भोजन, जल, वायु, सूर्य का प्रकाश आदि के द्वारा ही उनके शरीर में वृद्धि होती है. एक सजीव के प्रजनन के द्वारा जो प्रतिकृति निर्मित होती है वह भी इन्हीं पोषक तत्वों के द्वारा निर्मित होती हैं, उसके शरीर में उर्जा भी इन्हीं निर्जीव तत्वों के द्वारा ही आती है। इस प्रकार यदि हम देखें तो सजीव कहे जाने वाले जीव कीप्रत्येक कोशिका एवं प्रत्येक अंग निर्जीव तत्वों से ही निर्मित हैं. जो जल, सजीव ग्रहण करते हैं, जो प्राण वायु वह श्वसन में लेते हैं. वह भी निर्जीव है, जिस वातावरण में सजीव रहते हैं उसका कण-कण निर्जीव तत्व ही है। तो निर्जीव के बिना सजीव कहे जाने वाले जीव का जीवन ही संभव नहीं है. अर्थात जिसे हम निर्जीव कहते हैं वह भी सजीव ही हैं या फिर यूँ कहें की सभी निर्जीव ही हैं। पृथ्वी लोक पर जल एवं वायु को जीवन का आधार कहा गया है यदि जल, वायु निर्जीव हैं तो प्रत्येक जीव भी निर्जीव ही है। सभी ऋषि, मुनि, योगी साधू, संत निर्जीव को भी एक जीव की तरह ही मानते थे इसलिये वे प्रकृति के मूलभूत तत्वों (जल, वायु, अग्नि, सूर्य, पृथ्वी) आदि सभी की पूजा एवं अर्चना करते थे उन्हें भी एक सजीव के समान ही आदर सम्मान देते थे। वे सम्पूर्ण सृष्टि को एक मानते थे। सम्पूर्ण सृष्टि को एक अखंड अस्तित्व मानते थे। **सजीव एवं निर्जीव दोनों की एकता का प्रमाण: सूक्ष्म निर्जीव पदार्थ से ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति** जब हम सृष्टि की उत्पत्ति की बात करते हैं तो यह पञ्च महाभूतों (आकाश, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी) के द्वारा निर्मित है। और यदि इसे एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो यह परमाणु (प्रोटोन, न्यूट्रॉन, इलेक्ट्रान) एवं उर्जा के द्वारा निर्मित है। विज्ञान के द्वारा ११८ परमाणु बताये गए हैं। इनमें से प्रकृति में ९४ परमाणु पाए जाते हैं शेष प्रोगशाला में निर्मित किये गए है। यदि परमाणु को आगे विभाजित करें तो वह नाभिक (प्रोटोन एवं न्यूट्रॉन) एवं इलेक्ट्रान के द्वारा निर्मित है तो मूल रूप से केवल मूलभूत कण प्रोटोन, न्यूट्रॉन एवं इलेक्ट्रान हैं। जहाँ तक विज्ञान जान पाया है। <br><br> <div class="ui centred fluid image"> <img src="https://gyanmarg.guru/ww/images/sajeev-01.jpg" alt="Full Width"> </div> <br><br> चित्र: निर्जीव से सजीव की यात्रा भारतीय दर्शन के अनुसार ब्रह्माण्ड पंच महाभूत से निर्मित है: आकाश (अंतरिक्ष): यह वह स्थान है जिसमें सभी चीजें मौजूद हैं। वायु: यह गति और जीवन शक्ति का प्रतीक है। अग्नि: यह ऊर्जा और परिवर्तन का प्रतीक है। जल: यह जीवन और भावनाओं का प्रतीक है। पृथ्वी: यह स्थिरता और भौतिकता का प्रतीक है। उपरोक्त वर्णित चित्र हमें दर्शाता कि कैसे सूक्ष्म कणों (परमाणु) से लेकर जटिल जीवों (मनुष्य) तक, ब्रह्माण्ड में सब कुछ आपस में एक दूसरे से जुड़ा हुआ एवं एक दूसरे से निर्मित है। यह हमें जीवन की निरंतरता को दर्शाता है यह बताता है कि यह जीवन, निर्जीव से निर्मित होकर पुनः निर्जीव हो जाता है या फिर यूँ कहें कि जीवन निर्जीव से लेकर सजीव तक एक निरंतर परिवर्तन मात्र है जहाँ निर्जीव एवं सजीव में कोई भेद नहीं हैं जिस पल हम भेद करते हैं उसी पल स्वयं के होने पर एक बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह खड़ा कर देते हैं क्योंकि निर्जीव के बिना सजीव संभव नहीं है। सजीव का अस्तित्व निर्जीव पर निर्भर है जबकि निर्जीव का अस्तित सजीव पर निर्भर नहीं करता हैं अतः विज्ञान की भाषा में निर्जीव ही मूलभूत है और अंत में निर्जीव ही रह जाता है तो निर्जीव ही सजीव का आधार है। <font color="green">अतः यह यात्रा हमें अपने ग्रह और सभी निर्जीव एवं सजीव प्रकृति के संरक्षण के लिए प्रेरित करती है।</font> **क्या आपने कभी विचार किया है कि निर्जीव यदि निर्जीव ही होता तो उससे सजीवता कैसे पैदा हो सकती हैं ?** हमारी सजीव एवं निर्जीव की परिभाषा बहुत ही सिमित है व्यक्ति के द्वारा केवल उत्तरजीविता के उद्देश्य से स्वयं से पृथक नाम-रूप एवं प्रकृति वाले पदार्थों को को निर्जीव कह देते हैं। परम तत्व के स्तर पर सभी प्रोटोन, न्यूट्रॉन इलेक्ट्रान एवं उर्जा है. जीवित (चेतन) एवं अजीवित (जड़) का विभाजन हम केवल गति एवं वृद्धि के आधार पर करते हैं. जीवित में गति एवं वृद्धि होती है. जड़ में गति एवं वृद्धि इतनी स्पष्ट नहीं दिखती है। यदि ध्यान दें तो जड़ में भी परमाणु एवं मूल कणों के स्तर पर गति एवं वृद्धि होती है। जल को ही ले लेते हैं। क्या जल की कई सारी बूंदें मिलकर नदी एवं सागर का निर्माण नहीं करती क्या? अर्थात यहाँ जल एक अणु से कई सारे असंख्य अणुओं का निर्माण (सागर) हुआ अर्थात वृद्धि हुई। कई सारे जल के अणुओं के विभाजन से हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन गैस का निर्माण होता है। क्या जल में गति नहीं है, वृद्धि नहीं है? इस प्रकार हमने देखा की जल में गति है वृद्धि है तो यह जड़ कैसे हुआ और यदि यह जड़ होता तो इससे चेतनता और सजीवता कैसे निर्मित हो सकती है। इसी प्रकार हम वायु, अग्नि, एवं पृथ्वी तत्व को देखें तो सभी में गति एवं वृद्धि होती है तो ये किसी प्रकार से जड़. नहीं हैं। यह तो हमारा विभाजन वाला दृष्टिकोण है, वृत्ति है एवं हमारा आज के समाज एवं शिक्षा प्रणाली का मतारोपण हैं। क्या हम जिसे जीवित कहते है वह कभी निर्जीव विषय-वस्तुओं (पञ्च तत्वों, अणु, परमाणुओं) के बिना पाया जाता है। मैं जैसे मनुष्य हूँ क्या मैं जिस वातावरण में रह रहा हूँ क्या वहां निर्जीव वस्तु नहीं हैं? क्या मैं निर्जीव/जड़ से ही निर्मित नहीं हूँ? क्या मैं जिस घर में रहता हूँ क्या वह जड़ नहीं है? मैं जो जल पीता हूँ क्या वह जड़ नहीं है. जो खाना खाता हूँ क्या वह मृत/जड़ से निर्मित नहीं है? मैं जो जीवित खाना खाता हूँ क्या वह जड़ तत्वों/ रसायनों एवं अणुओं में बदल नहीं जाता है। उसी से यह शरीर एवं मन जीवित/चेतन सा प्रतीत होता है। तो जड़ से चेतन कैसे हो सकता है. या फिर यूँ कह सकते हैं कि सभी जड़ हैं या फिर यूँ कह सकते हैं कि सभी चेतन हैं सभी जीवित हैं या सभी मृत हैं। या फिर यूँ कहें की सम्पूर्ण अस्तित्व जड़ है या फिर यूँ कहें कि सम्पूर्ण अस्तित्व चेतन है. यह तो हमारा दोहरा मानदंड/दृष्टिकोण है जो भेद करता है.अन्यथा जड़/चेतन का कोई विभाजन नहीं है वो तो विज्ञान ने समझने एवं उत्तरजीविता के लिये सम्पूर्ण अस्तित्व को जड़ एवं चेतन में विभाजित किया है। क्या मैं या कोई भी जीव किसी निर्जीव/जड़ वस्तु के बिना जीवित रह सकते हैं. या फिर यूँ कहें की जड़ के बिना जीवन संभव नहीं है तो जड़ ही वास्तव में जीवन है और जड़ ही चेतन है। जैसे हमारी पृथ्वी जीवित है उसमें जड़ एवं चेतन दोनों हैं। फर्क केवल नाम-रूप एवं हमारे दृष्टिकोण का है। क्या सूर्य जड़ ग्रह है? और यदि वह जड़ है तो उससे इस पृथ्वी पर जीवन कैसे स्फुरित हो उठता है? सूर्य स्वयं जड़ भी है और चेतन भी है जड़ इस प्रकार है कि उसके ताप को कोई भी जीव-जंतु सहन नहीं कर सकता उसके ताप से सभी चेतन कहे जाने वाले जीव मृत/जड़/अचेतन हो जाते हैं और चेतन इसलिये है कि उसके प्रकाश से पेड़ पौधों में प्रकाश संश्लेषण होता है और पौधों में वृद्धि एवं फल, फूल, बीज, अन्न का निर्माण होता है इन्हीं पेड़ पौधों, फलों, अन्न को खाकर सभी जीव जंतुओं में जीवन स्फुरित हो उठता है। **सजीव-निर्जीव के विभाजन के भ्रम का कारण** तो सजीव/निर्जीव एक ही हैं विभाजन केवल चित्त की विभाजन वृत्ति के कारण होता है अन्यथा सबकुछ एक अनंत अस्तित्व/ब्रह्म है। केवल अज्ञान की वजह से यह सजीव/निर्जीव का विभाजन प्रतीत होता है. सभी निर्जीव सम्पूर्णता के तल पर एक सम्पूर्ण चेतनता है। चित्त की विभाजन वृत्ति (अज्ञान के कारण होती है) के कारण पृथ्वी जड़ (पञ्च तत्व) एवं चेतन (सभी जीव जंतु, पेड़-पौधे) में विभाजित हुई प्रतीत होती है, एवं एक विहंगम दृष्टि में सम्पूर्ण पृथ्वी, ब्रह्माण्ड और अस्तित्व एक ही है। अस्तित्व में जड़/चेतन दोनों केवल वस्तुएं और नाम-रूप मात्र हैं दोनों के केवल गुणधर्मों में अलग-अलग संगठन के कारण भेद होता है। क्या पञ्च भूतों के बिना कोई जीव संभव है? तो पञ्च भूतों एवं जीवित शरीर में कोई भेद नहीं है केवल नाम रूप पृथक हैं, गुण पृथक हैं। और यदि प्रक्रिया के स्तर पर देखें तो केवल एक रूप-दूसरे में परिवर्तित हो रहा है और थोडा स्थायित्व के कारण उसकी पृथक सत्ता प्रतीत होती है। तो यहाँ द्वैत के विभाजन निर्जीव/सजीव का विभाजन केवल चित्त निर्मित भ्रम है, माया है जिसमें एक के बिना दूसरे का होना संभव नहीं है। अर्थात दोनों एक ही हैं केवल दृष्टिकोण अलग है और जीव के व्यवहार एवं उत्तरजीविता के लिये उपयोगी है इसलिये विभाजन कर दिया जाता है। तो इस प्रकार सजीव एवं निर्जीव का विभाजन केवल व्यक्ति के द्वारा निर्मित अवधारणा मात्र हैं। **अध्यात्म के स्तर पर स्वप्नलोक से तुलना** स्वप्न लोक में निर्जीव पदार्थ एवं सजीव दोनों का अस्तित्व नहीं होता क्योंकि निद्रा से उठने के पश्चात दोनों निर्जीव दिखने वाली वस्तु एवं सजीव दिखने वाला इन्सान एवं पशु दोनों ही गायब हो जाते हैं। अब हम दूसरे दृष्टिकोण से देखें और स्वप्न लोक से जाग्रति की तुलना करें तो स्वप्न में एक पत्थर (निर्जीव) से तुरंत जानवर (सजीव) बन जाता है। आकाश में से इन्सान पैदा हो जाता है. पानी में से इन्सान पैदा हो जाता हैं और आकाश में उड़ने लगता है। वहां स्वप्न लोक में पदार्थ से एकदम जानवर या इन्सान पैदा हो जाता है अर्थात निर्जीव तुरंत एक सजीव जीव बन जाता है. कहने का तात्पर्य यह है की सजीव एवं निर्जीव मनुष्य द्वारा निर्मित एक अवधारणा मात्र हैं। अस्तित्व के तल पर दोनों एक अखंड अस्तित्व के ही भाग हैं और दोनों में परमाणु के स्तर पर एक ही हैं दोनों ही सजीव हैं और दोनों ही निर्जीव हैं. सजीव में परिवर्तन सतत होता प्रतीत होता हैं जबकि निर्जीव में यह परिवर्तन धीमा होता है इसलिये वह जड़ सा प्रतीत होता है। ज्ञान मार्ग में निर्जीव एवं सजीव दोनों केवल परिवर्तन मात्र हैं दोनों ही केवल पदार्थ हैं असत्य हैं। दोनों ही एक सम्पूर्ण अस्तित्व का एक परिवर्तनशील भाग हैं। क्योंकि दोनों ही परिवर्तनशील हैं अतः दोनों ही असत्य हैं मिथ्या हैं क्योंकि ज्ञानमार्ग के मानदंड के अनुसार जो भी परिवर्तित हो जाता है वह असत्य है मिथ्या है, माया है और मैं इन सभी परिवर्तनों का दृष्टा/साक्षी/अनुभाकर्ता हूँ अर्थात मैं ही सत्य हूँ. स्वप्न एवं जागृति दोनों में अंतत: परिवर्तित हो रहें हैं दोनों में केवल साक्षी की ही निरंतरता है बाकि सजीव एवं निर्जीव दोनों मुझ साक्षी से ही उत्पन्न होते हैं और मुझ में ही पुनः विलीन हो जाती है। मैं यह मनो-शरीर यन्त्र एवं इस जगत का कोई भी अनुभव नहीं हूँ मैं इसका साक्षी हूँ यही आत्मज्ञान है. स्वयं के सत्य स्वरुप को जानने के लिये त्रिज्ञान या ज्ञानदीक्षा कार्यक्रम करें। आत्मज्ञान के बारे में और अधिक जानने के लिये आप त्रिज्ञान वाला लेख देख सकते हैं। **सारांश** सजीव एवं निर्जीव केवल चित्त निर्मित भ्रम है अतः इस भ्रम से बाहर निकले हैं और स्वयं के सत्य स्वरुप को जानें कि मैं सजीव/निर्जीव से परे, नाम-रूप से परे, गुणों से परे, इन सभी का दृष्टा हूँ, साक्षी हूँ। अद्वैत के स्तर पर मैं सजीव भी नहीं हूँ एवं निर्जीव भी नहीं हूँ या फिर यूँ कहें कि मैं सजीव भी हूँ और निर्जीव भी हूँ एवं मैं ही अस्तित्व हूँ। द्वैत के स्तर पर मैं केवल सजीव एवं निर्जीव के रूप में होने वाले परिवर्तन की एक सतत श्रृंखला का साक्षी मात्र हूँ। इस प्रकार यदि हम समपूर्ण सृष्टि को इस दृष्टिकोण से देखें तो हम, निर्जीव एवं सजीव सभी के प्रति एक भावना के साथ संवेदनशील हो जायेंगे तभी हम इस सृष्टि का अपने स्वार्थ के लिये आवश्यकता से अधिक दोहन नहीं करेंगे वरन इसका संरक्षण करेंगे। <font color="green">**सभी सुखी हों, सभी समृद्ध हों, सभी ज्ञानवान हों, सभी सत्य जानें ........**</font> <font color="green">**श्री गुरुवे नमः ....ॐ शांति शांति शांति .....**</font> **आभार:** मैं परम श्रद्धेय गुरुदेव श्री तरुण प्रधान जी एवं गुरुक्षेत्र का उनकी शिक्षाओं एवं मार्गदर्शन के लिए आभारी हूँ। इस विषय पर मनन के दौरान गुरुदेव एवं गुरुक्षेत्र से मिले संकेत बहुत उपयोगी सिद्ध हुए हैं। **संपर्क सूत्र..** साधक: स्वप्रकाश....... ईमेल: swaprakash.gyan@gmail.com **सन्दर्भ:** तरुण प्रधान (२०२४) विशुद्ध अनुभूतियाँ (प्रथम, द्वितीय, तृतीय एवं चतुर्थ भाग), नोशन प्रेस। बोधिवार्ता चैनल यूट्यूब विडियो।
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