Wise Words
त्रिज्ञान प्रश्नोत्तर
तरुण प्रधान
## परिचय यूट्यूब पर बोधिवार्ता चैनल में प्रकाशित। कड़ी : https://www.youtube.com/playlist?list=PLGIXB-TUE6CRKyZ1cCKPSvu00Wcd3iba6 ## आत्मज्ञान पर प्रश्न ### १ - मैं शरीर नहीं लेकिन मैं शरीर के बिना भी हूँ यह प्रमाण कैसे मिलेगा? * शरीर के बिना ही हैं * शरीर पर निर्भर नहीं यह जानकर * शरीर के बिना बुद्धि नहीं, ज्ञान नहीं रहेगा * ज्ञान के लिए उपकरण आवश्यक है, मेरे होने के लिए नहीं * चित्र के बिना पर्दा कैसे होगा? * प्रमाण मांगने वाला नहीं होगा * मान्यता - शरीर, मन या बुद्धि के बिना ज्ञान संभव है ### २ - सबकुछ हटाया जा सकता है पर दिमाग नहीं, तो क्या मैं दिमाग़ की गतिविधि हूँ? * हटाया जा सकता है * बहुत से प्राणीओं में यह अंग नहीं है * कौन सी गतिविधि? मैं एक हूँ बहुत नहीं * क्रमशः दिमाग हटाने पर अनुभव बदलेगा, अनुभवकर्ता नहीं * कौन सा चित्र हटाने से पर्दा गायब होगा? * रूप से तत्व नहीं उत्पन्न होता , टेबल से लकड़ी * मान्यता - अनुभव अनुभवकर्ता का कारण है ### ३ - यदि स्मृति हटा दी जाए तो मैं नहीं रहूंगा । तो क्या स्मृति मैं हूँ? * मेरा ज्ञान नहीं रहेगा * मेरे होने या न होने के बारे में कहने वाला नहीं रहेगा * न प्रमाण होगा, न प्रमाण लेने वाला * स्मृति से मैं नहीं, मेरा ज्ञान जन्म लेता है * क्रमशः स्मृति हटाने पर अनुभव बदलेगा, अनुभवकर्ता नहीं * बहुत सी स्मृति नष्ट हो चुकी है * कौन सी स्मृति? मैं एक हूँ अनेक नहीं * मान्यता - अनुभवकर्ता और उसका ज्ञान समान है ### ४ - मैं अमर हूँ तो मृत्यु के बाद मैं रहूँगा इसका प्रमाण कैसे मिलेगा? * किसको मिलेगा? * यदि मैं है, तो नेति-नेति से * अपरोक्ष अनुभव से * फिर वो मृत्यु नहीं , जीवन ही है, दुसरे रूप में * अमरता का प्रमाण जन्म न होने से मिलता है, शरीर के नष्ट होने से नहीं * क्या है जिसकी मृत्यु होगी? * उपकरण के बिना ज्ञान नहीं * कल का अनुभव भी नहीं जाना जा सकता, मृत्यु का कैसे? * मान्यता - भविष्य में होने वाली घटना को आज जाना जा सकता है ### ५ - नींद में मैं नहीं रहता तो क्या इसका अर्थ है कि मैं परिवर्तनशील हूँ? * नींद अवस्था है, अवस्था परिवर्तनशील है * नींद भी अनुभव है, आना जाना * शरीर सक्रीय होता है, मन और इन्द्रियां भी * स्मरण नहीं रहता * १० वर्ष पहले की घटना याद नहीं, पर मैं था * पिछले चित्र मिट जाने से पर्दा भी चला जाता है? * मान्यता - मैं स्मरण या अवस्था या किसी घटना पर निर्भर हूँ ### ६ - मुझे मेरा अनुभव इन्द्रियों द्वारा नहीं हो सकता फिर कैसे हो सकता है? क्या सूक्ष्म अवस्था में होगा? * नहीं हो सकता * सभी अनुभव इन्द्रीओं द्वारा ही होंगे * पर्दे पर पर्दा स्वयं प्रकट नहीं हो सकता, उसका मिथ्या रूप प्रकट हो सकता है * सभी अनुभव मैं ही हूँ (अद्वैत स्तर), मुझे मेरा ही अनुभव होता है * मान्यता - मैं कोई विशेष अनुभव हूँ ### ७ - सभी अनुभव मुझे होते हैं तो दूसरे लोगों को होने वाले अनुभव मैं क्यों नहीं जानता? * लोग अनुभव हैं * दूसरा कोई नहीं (अद्वैत स्तर) * अनुभव होता है, जाना नहीं जाता * जानना अर्थात ज्ञान , स्मृति में है, सभी लोगों की अपनी स्मृति है * बहुत से अनुभव होते हैं, जो व्यक्ति स्वयं नहीं जानता * सबके अनुभव जान लेने के बाद भी मूलज्ञान वही है * पर्दा सभी चित्रों की पृष्ठभूमि मात्र है, उसमें स्मृति नहीं * मान्यता - मैं व्यक्ति हूँ, दूसरों से भिन्न हूँ ### ८ - यदि आप भी मैं ही हूँ तो मुझे आपके विचारों का अनुभव क्यों नहीं होता? * विचार मेरे नहीं न आपके हैं , मैं साक्षी हूँ * खिड़किओं का उदाहरण * बहुत सी मानसिक प्रक्रियाओं का अनुभव नहीं होता * सबके विचारों का अनुभव होने पर भी ज्ञान वही है * सबके विचार जानने पर भी साक्षी अलग होने की शंका होगी * मान्यता - विचित्र अनुभव होने पर ही सबका तत्व एक है ये प्रमाण मिलेगा ### ९ - यदि मैं कोई भी अनुभव नहीं तो मेरा शरीर क्यों है, ये मन भावना विचार क्यों है, या जगत क्यों है? * सभी अनुभव कारणहीन हैं * कारण दिया जा सकता है * ये सब भी मैं हूँ, मिथ्या रूप * पर्दा है तो चित्र हैं, चित्र हैं तो पर्दा है * मान्यता - मैं अनुभव नहीं तो अनुभव होना ही नहीं चाहिए ### १० - मैं यदि आनंद हूँ तो मुझे आनंद का हमेशा अनुभव क्यों नहीं होता? * आनंद अनुभव नहीं, तत्व है * आनंद मैं ही हूँ * हमेशा आनंद ही होता है * वृत्तियाँ आती जाती हैं * मान्यता - आनंद कोई सुखदायी अनुभव है या चित्त की अवस्था है ### ११ - ज्ञान स्थायी क्यों नहीं होता? चित्त स्वयं स्थिर क्यों नहीं हो जाता? * पुरुष को पुरुष होने में प्रयास नहीं लगेगा * अज्ञान, शंका, अविश्वास, अंधविश्वास * मार्ग नहीं, ज्ञान लक्ष्य नहीं, गुरु नहीं * अशुद्धियाँ, दमित इच्छाएं, विकार ### १२ - सभी मैं हूँ यही सच्चा प्रेम है फिर सभी में नफरत ही क्यों है प्रेम भाव क्यों नहीं? सभी मैं हूँ फिर सबका व्यवहार अलग कैसे? * व्यवहार या संस्कार मनो-शरीर का गुण है * मैं निर्गुण हूँ * प्रेम कोई भावना या आचरण नहीं , मेरा तत्व है * जनता अज्ञानी है * मान्यता - तत्व में संस्कार, गुण या आचरण होता है ### १३ - न मैं कुछ कर पाता हूँ न मुझे कोई सुख-दुःख होता है, तो क्या मैं निर्जीव हूँ? * मेरे द्वारा ही जीवन है * मनो-शरीर जड़ है, मैं चैतन्य हूँ * जीवंतता साक्षी के होने से है, कर्म या वृत्तिओं के कारण नहीं * मान्यता - चैतन्य का अर्थ कर्म या भाव आदि होना है ### १४ - आत्मज्ञान के बाद मुझे क्या करना चाहिए? * मैं कर्ता नहीं दृष्टा हूँ * मनो-शरीर जो करते हैं वो होगा * जो प्राकृतिक है * जो आवश्यक या व्यावहारिक है * जो गुरुआज्ञा है * मान्यता - ज्ञान के बाद कोई विशेष कर्म करना है , या आचरण बदलना है ### १५ - मेरा रचयिता कौन है? * मैं स्वयंभू हूँ * रचना वस्तुओं की हो सकती है , जो नाम रूप का परिवर्तन मात्र है * रचना अर्थात परिवर्तन , मैं स्थायी हूँ * रचना के लिए पदार्थ, परिवर्तन और रूप आवश्यक है * अस्तित्व = अनुभव + अनुभवकर्ता , अनुभव से अनुभवकर्ता रचित नहीं होता , अनुभवकर्ता एक ही है * मान्यता - मैं वस्तु हूँ या विशेष अनुभव हूँ ### १६ - न मैं जीव हूँ न ये मेरा जीवन है फिर मेरे जीवित रहने का क्या अर्थ है? * जीव जीवित है, जीव की मृत्यु है * अर्थ भी मेरा नहीं * जीव स्वयं अर्थ निर्धारित करता है, साक्षी नहीं * अंत में सब लीला है, अर्थहीन ही है * मान्यता - साक्षी का कुछ उपयोग, उद्देश्य या अर्थ है ### १७ - क्या मैं मृत्यु के बाद आत्मज्ञान भूल जाऊंगा? * मेरी मृत्यु नहीं, न स्मृति आदि है * जीव न होने पर, या भूलने पर भी मैं हूँ * मिट्टी का घड़ा टूटने पर भी मिट्टी है * जो नश्वर है वो याद रखे तो भी नश्वर है * कई वर्ष पहले किया भोजन याद नहीं, फिर भी आवश्यक था * मान्यता - मैं मनोशरीर हूँ और आत्मज्ञान याद रखना मेरे लिए संभव है, नष्ट होने के बाद भी ### १८ - इस ज्ञान को कैसे बनायें रखें? * आवश्यक नहीं * साक्षीभाव की साधना से * यदि मैं पुरुष हूँ तो कैसे याद रखूं, पुरुष कैसे रहूं? * प्रयास या कर्म नहीं , प्रेम और रूचि * विधि नहीं प्रमाण * जो नहीं हूँ वो न होना * दोहराव, गहरा संस्कार, संकल्प * कोई चमत्कार नहीं होगा ### १९ - सबको आत्मज्ञान क्यों नहीं होता ? * इच्छा नहीं * मान्यताएं, अंधविश्वास , मूढ़ता * अंत में सबको होगा ### २० - और अधिक ज्ञान कैसे मिलेगा? * नहीं मिलेगा * यही अंतिम है * अधिक विस्तार मिलेगा, बारीकियां * ज्ञानदीक्षा * विज्ञान या तंत्र ## मायाज्ञान पर प्रश्न ### १ - कौन सा अनुभव सत्य है और कब और कैसे होगा? * कोई नहीं * जो परिवर्तनशील है वही अनुभव है और वही मिथ्या है * सभी अनुभव चित्तनिर्मित इन्द्रजनित हैं * मान्यता - सत्य का अनुभव संभव है, सत्य विशेष अनुभव है ### २ - कौन सी इंद्री सत्य दिखाती है? * कोई नहीं * इन्द्रीओं का कार्य जीव को जीवित रखना है, सत्य दर्शाना नहीं * इन्द्रियां परिवर्तन से प्रतिक्रिया करती हैं * मान्यता - सत्य दर्शन के लिए कोई विशेष इंद्री चाहिए ### ३ - यदि मेरा भोजन असत्य है, तो मैं जीवित कैसे हूँ? * जीव भी मिथ्या है * शरीर वस्तु है, अनुभव है * मान्यता - एक वस्तु असत्य है दूसरी नहीं ### ४ - अनुभव परिवर्तित होते हैं, पर मुझे याद रहता है वो क्या था, इसलिए उस समय वो जो भी था सत्य था। * स्मृति भी मिथ्या है * नश्वर है , मिथ्या की छाया * दोहरी मिथ्या * कुछ भी याद आ सकता है * मान्यता - जो हुआ वो सत्य था क्योंकि याद है ### ५ - क्या मृत्यु अटल सत्य है? * परिवर्तन, घटना, स्वप्न का बदलना * मान्यता - कोई विशेष अनुभव सत्य है ### ६ - यदि बुरे अनुभव असत्य हैं तो दुःख कैसे हो सकता है? * सुख दुःख आदि भावनाएं भी आनी जानी मिथ्या है * चित्त वृत्ति मिथ्या है * न सुख है, न दुःख, आनंद या शांति है * जो इनसे प्रतिक्रिया करता है वो भी मिथ्या है * मान्यता - भावनाएं या विचार सत्य हैं ### ७ - यदि जीवन मिथ्या है तो क्या मुझे आत्महत्या कर लेनी चाहिए? * माया का अंत नहीं होता * मृत्यु नहीं होती * सपना बुरा हो जायेगा * जीवन का उपयोग बुद्धिमानी है, अंत मूर्खता * मान्यता - जीवन सत्य नहीं तो उपयोगी नहीं ### ८ - माया किसने बनायी है? * किसी ने नहीं * रचना नहीं परिवर्तन मात्र है * रचयिता भी माया है, माया ही रचयिता और रचना है * मान्यता - अनुभव का कोई कारण है ### ९ - वस्तुएं बदलती हैं, फिर भी वो हैं। अस्थायी होने मात्र से असत्य कैसे हो सकती हैं? * वस्तुएं नहीं हैं, अनुभव है, दृश्य मात्र है * भ्रम है , न बदलें तो भी * जैसे भवँर * बुद्धि वस्तु (नाम) की कल्पना कर लेती है * जल्दी या देर से बदलने पर बुद्धि वस्तुओं को मिथ्या कहती है * मान्यता - जो बदलता है वो किसी रूप में स्थायी है ### १० - क्या मृत्यु के बाद सत्य के अनुभव होंगे? * कभी नहीं * मृत्यु भी मिथ्या है, जन्म भी * मान्यता - शरीर या जगत असत्य है बाकी नहीं ## ब्रह्मज्ञान के प्रश्न ### १ - तीसरा क्यों नहीं? * दो ही वर्ग हैं - अनुभव और अनुभवकर्ता * यही आवश्यक है * गिनती संभव नहीं, शून्य है * मान्यता - अनुभव और अनुभवकर्ता के अलावा भी कुछ होगा ### २ - ब्रह्म ने सीमित रूप क्यों लिए हैं? * रूप अर्थात सीमा * रूप सत्य नहीं, नहीं लिए * एक रूप सीमित है, किन्तु अनंत रूप हैं * मान्यता - ब्रह्म बदलकर एक छोटा रूप हो गया है ### ३ - क्या स्वयं को ब्रह्म कहना दंभ नहीं है? * ब्रह्म अर्थात अहम् न रहना, सम्पूर्णता हो जाना * अज्ञानी स्वयं को और दूसरों को शरीर मान लेता है, भेद नहीं जानता * स्वयं को मनुष्य कहना, या ब्रह्म से अलग मानना दम्भ है, अहंकार है * मान्यता - ज्ञानी एक व्यक्ति है, जो स्वयं को ब्रह्म मान लेता है ### ४ - ब्रह्म होकर भी मैं जो चाहूँ वो क्यों नहीं कर सकता? * मनुष्य की न इच्छा है न कर्म * सभी इच्छाएं/कर्म ब्रह्म में ही प्रतीत होती हैं * मान्यता - ब्रह्म होना कोई विशेष सिद्धि मिलना है ### ५ - अद्वैत टूटकर द्वैत कैसे हो गया? * नहीं हुआ * चित्त की विभाजन वृत्ति है * मान्यता - अद्वैत में विभाजन है , द्वैत वास्तविकता है ### ६ - ब्रह्मावस्था में कैसे रहें? * अभी भी है * यही अवस्था संभव है, बाकी अवस्थाएं अनित्य हैं * मान्यता - ब्रह्मावस्था एक विशेष अवस्था है, जिसमें आया जा सकता है ### ७ - अस्तित्व, ब्रह्म, शून्य, अद्वैत, पूर्णता, संभावना - इनमें क्या भेद हैं? * एक ही हैं * अनेक नाम हैं जो ज्ञान में स्थित होने में सहायक हैं ### ८ - ब्रह्मज्ञान होने पर क्या करना चाहिए? * न कर्म है न कर्ता * जो आवश्यक हो * जो पसंद हो , अपनी स्वेच्छा से * सरल, सुन्दर, सात्विक, साधारण जीवन * साधक स्वयं निर्धारित करता है, नियम नहीं हैं ### ९ - क्या ब्रह्म सत्य है? * सत्य/असत्य द्वैत के स्तर पर परिभाषित हैं * सूत्र के रूप में कहा गया है * मान्यता - एक आध वाक्य सुन लेने से ज्ञान हो जाता है
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