Wise Words
अनुभवकर्ता (एक शब्द संकेत)
आदित्य मिश्रा
अनुभवकर्ता में कर्ता और अनुभवक्रिया में क्रिया शब्द किसी किसी को उलझाता है। अनुभवकर्ता बहुत उपयोगी शब्द है, यह शब्द साधक को तुरंत मान्यताओं और धारणाओं से मुक्त होने और यह समझने में सहायक है, कि वह शरीर, मन और जो भी उसने मैं, मेरा मान रखा है वो सब नहीं है, इन सबसे परे इनका अनुभवकर्ता है। इस बोध से तादात्म्य हटता है, साधक भ्रम से निकलता है और उसमें उसी क्षण शांति और मुक्ति का भाव उतरता है। यह आत्मविचार का पथ है। आत्मविचार से साधक ने जाना कि वो अनुभवों का अनुभवकर्ता है लेकिन साथ ही उसने जाना कि अनुभवकर्ता को जाना नहीं जा सकता। तो अब 'मैं अनुभवकर्ता हूं' इस विचार से आगे जाना पडेगा। यह त्वरित इलाज है स्वस्थ होने के लिए साधना है। साधना साक्षीभाव है। स्वरूप स्मरण को ही साधना कह दिया गया है। ज्ञान में स्थिति से जागृति बढेगी, चेतना विस्तृत होगी तब बोध होगा कि शब्दों से, प्रयास से, उसे जानना संभव नहीं है। अनुभवकर्ता निष्क्रिय है कर्ता नहीं है! इसीलिए अनुभवकर्ता को कर्ता नहीं दृष्टा कहा गया है। अनुभवकर्ता में कोई क्रिया नहीं है। वो निर्लिप्त है। वो सिनेमा के परदे की तरह है, जिसमें सिनेमा रूपी क्रिया हो रही है। उसके प्रकाश से अनुभव प्रकाशित हो रहे हैं। ज्ञानमार्गी साधक जानता है कि कर्ता कोई नहीं है। अनुभवकर्ता साक्षी है! साक्षी किसी दूसरे के कार्य का नहीं स्वयं साक्षी है, जिसके प्रकाश (पटल) में मिथ्या अनुभव प्रकाशित हो रहे हैं। पहले अहं, चित्तवृत्तियों के अंधकार के साथ बहता था, अब वो प्रकाश (ज्ञान) के साथ तट पर खडा हो जाता है और फिर कभी पहले जैसा बह जाता है लेकिन अनुभवकर्ता कहीं नहीं जाता। अब चित्त में चेतना जागृत हो गयी है, चेतना का प्रकाश अनुभवकर्ता स्वयं है। 'मैं अनुभवकर्ता हूं' ऐसा जानने के बाद अलगाव पैदा होता है, ये अलगाव ही साक्षीभाव है। साक्षीभाव में साक्षी का प्रकाश है और अहं का भाव है। अब इस भाव से, द्वैत से, 'मैं अनुभवकर्ता हूं' के मैं और हूं से आगे जाना पडेगा, निर्लिप्तता की ओर। तब बोध होगा कि दो नहीं है। साक्षीभाव का दायरा सीमित न होकर विस्तृत है। अनुभवकर्ता अज्ञेय है! अनुभवकर्ता का ज्ञान होता या उसमें कुछ क्रिया होती तो वो अज्ञेय नहीं रहता। यदि स्वयं से कुछ भिन्न हो या कोई दूसरा हो तो उनमें एक ज्ञाता और एक ज्ञेय होगा, यदि वो ही वो है अन्य है ही नहीं तो वहां जानने के लिए कुछ भी नहीं है केवल अज्ञेयता है। अनुभवकर्ता अस्तित्व का तत्व है, अप्रकट है, बुद्धि से परे अज्ञेय है। अनुभवकर्ता अबोध है! अनुभवकर्ता सहज है, बस है। ज्ञान और अज्ञान के लिए अनुभवों का विश्लेषण होता है। वो ज्ञान स्वरूप है, चैतन्य है लेकिन क्योंकि निर्लिप्त है इसलिए उसे अबोध कहा गया है। अनुभवकर्ता स्वयं का अनुभव कर रहा है! इसका आशय यह है अनुभवकर्ता और अनुभव दो नहीं हैं, अलग अलग नहीं हैं। अनुभवकर्ता में ही अनुभव प्रकट हो रहे हैं। अनुभव, अनुभव को अनुभव नहीं कर सकता। बिना अनुभवकर्ता के प्रकाश के अनुभव संभव नहीं हैं। जिस प्रकार विद्युत के बिना बल्ब प्रकाशित नहीं हो सकता, उसी तरह चित्त में अनुभवकर्ता के बिना अनुभव प्रकाशित नहीं हो सकते, दोनो अभिन्न हैं। अनुभवकर्ता निर्गुण है! तो वो गुणों को ग्रहण कैसे कर सकता है। वो निर्गुण है लेकिन सगुण भी वही है। अस्तित्व का तत्व है, शून्य है और उस शून्यता में ही अनंत संभावनायें हैं। वो पूर्ण है। अनुभवकर्ता शून्य है! अनुभवकर्ता को अनुभव होते हैं यह केवल समझाने के लिए संकेत के लिए कही गई बात है। वो जो है बुद्धि से परे है। क्रिया, कर्ता के प्रश्न न उठें और साधक की दृष्टि कथन के परे देख सके इसीलिए अनुभवकर्ता को शून्य कह दिया गया है। न अनुभव है न अनुभवकर्ता है केवल अनुभवक्रिया है! विभाजन केवल समझने के लिये उपयोगी था। सब आप से आरंभ होकर आप में समाप्त हो रहा है। आपसे ही कुछ बहा तो वो दृश्य और आप दृष्टा हो गये, बहाव थमा तो न दृश्य है न दृष्टा या सभी कुछ है क्योंकि केवल अनुभवक्रिया है। इसे ही समझाने के लिए अर्धनारीश्वर आदि प्रतीक रखे गये हैं। अब आप वही हो गये जो थे और मैं क्या हूं? यह प्रश्न ही समाप्त हो गया। यहां सभी शब्द अपने अर्थ खो देते हैं, सब कुछ होते हुए भी कुछ नहीं है इसीलिए अनिर्वचनीय है। अब जो है वो सहज है। आप जो हो वो होने के लिए अब किसी साधन की आवश्यकता नहीं रही, सारे साधन सारा प्रयास ध्वस्त हो गया। धूल की परत जो वास्तविकता को ढक रही थी अब वह झड चुकी है। अब आपको पता हो गया कि कोई भी शब्द इस बोध को बांधने योग्य था ही नहीं। चित्तशुद्धि ही आध्यात्म है और समस्त धारणाओं (चाहे वो आध्यात्मिक ही हों) का अंत, निर्वाण। साधक के मूल प्रश्न का समाधान हो गया तो साधक गुरु तत्व, गुरुक्षेत्र के प्रति कृतज्ञता से आभार से झुक जाता है क्योंकि चाहे वो किसी भी युक्ति से हो उसे उसके घर ले आया है।
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