Wise Words
ज्ञानमार्ग के दोहे
स्वप्रकाश
मैंने यहाँ कुछ दोहों के माध्यम से ज्ञानमार्ग को अभिव्यक्त करने का प्रयास किया है । इनमें से कुछ को समझने के लिए आपको आत्मज्ञान होना आवश्यक है । आत्मज्ञान के लिए आप बोधिवार्ता यू ट्यूब चैनल में त्रिज्ञान कार्यक्रम, ज्ञानदीक्षा कार्यक्रम कर सकते हैं तथा विडियो एवं सधाक्नों के द्वारा लिखित लेख देख सकते हैं । **गुरु** गुरु मेरा प्रेम, गुरु ही मेरा संसार । गुरु ने मुझे सिखा दिया, अद्वैत का प्यार ।। गुरु ने ज्ञान प्रकाश से, अंधकार दिया हटाय । गुरुदेव का आभारी हूं। मिथ्या बंधन दिए मिटाए ।। गुरु बिन था अज्ञानी मैं, जीवन जैसे ढोर । गुरुदेव की करुणा हुई, हो गया आत्मज्ञान से सराबोर ।। गुरु मुक्ति का द्वार है, गुरु शरण चलो भाई । अज्ञान का नाश करे, सत्य स्वरूप दिखलाय ।। ये लोक न परलोक, गुरु बिन कहीं न ठोर। गुरु बिन जीवन अमावस्या, काली रात घनघोर।। गुरु ने सहारा दिया, मैं था रंक फकीर । भव बंधन के पाश से, मुक्त कर दिया मनोशरीर ।। समाज परिजन ये जगत, सब अज्ञान के हैं स्रोत । गुरु की शरण में जाय के, आत्मज्ञान प्राप्त कर ब्रह्म से कर ले योग ।। गुरु को तू अपनाय के, सत्य की राह आ जाय। अज्ञान का नाश कर, अहम शून्य हो जाय।। **माया** माया में क्यों खोया, जीवन बीता जाय । आत्मज्ञान ले लो रे भाई, मृत्यु पर पछताय ।। माया है निर्दय बड़ी, मृत्यु तक अटकाए । एक नहीं रे बावरे, ये तो कई जन्म कराए ।। सत्संग कर ले रे भाई, जीवन बीता जाय । अज्ञान को त्याग कर, भव सागर तर जाय ।। माया की माया घनी, पल पल दे अज्ञान । आत्मज्ञान को प्राप्त कर, देह भाव छोड़ नादान ।। सत चित आनंद है तेरा सत्य स्वरूप । मृत्य पर पछतायगा, जीवन माया रुप ।। जीवन बंधन युक्त था, भांति भांति के भोग । सभी बंधनों को भोगता, मैं अज्ञानी ढोर ।। **आत्मज्ञान** यूं तो पशु भी जीता है, क्या है उससे भेद । जीवन यूं ही बीत जाएगा, ले आत्मज्ञान हो जा तू अभेद ।। जीवन भर धन ही उगाया, होकर माया में लीन । आत्मज्ञान में डूब कर, कर दे देह विलीन ।। अहम भाव को त्याग कर, आत्म ज्ञान ले भाई । यह तन माटी का घड़ा, माटी में मिल जाय ।। जागृत, स्वप्न और सुषुप्ति, तीनों लोक को जान । अज्ञान का नाश कर, अपना सत्य स्वरूप पहचान ।। सभी बंधन हैं मोह के, कर ले साक्षी का ध्यान । साक्षी है तू परमात्मा, सत्य, नित्य, मुक्ति पहचान ।। कर्मों की गठरी बड़ी, कई जन्मों से रहा तू जोड़ । आत्म ज्ञान को जान के, कर्म बंधन को तोड़ ।। मैं पशुवत जीवन जीता रहा, अहम भाव में लीन । आत्म ज्ञान ने ब्रह्म बना दिया, कर दिया मैं को विलीन ।। जिज्ञासा मुमुक्षा षटसम्पत्ति , साधक के हैं गुण । त्रिज्ञान से शुरुआत कर, आत्मन है तू निर्गुण ।। ज्ञान मार्ग के सात प्रश्न, करते जिज्ञासा शांत । मूल ज्ञान को जान ले, त्रिज्ञान कर ले नादान ।। जो भी है परिवर्तनीय, वो नहीं है तू । इस परिवर्तन को देखता, तू ही सत्य स्वरूप ।। स्वयं को देह मान के, माया को रहा तू भोग । आत्मन है तू परमात्मा, आत्म बोध ले पशु वृत्ति को छोड़ ।। निचली वृत्ति छोड़ के, बोधिसत्व वृत्ति उपजाए । ऐसा अनोखा आत्मज्ञान है, सत्य से प्रेम कराए ।। अहम भाव के पाश में, जीवन नरक समान । आत्मज्ञान के प्रकाश से, सत्य स्वरूप को जान ।। ये मनोशारीर तो यन्त्र है, स्वयं को शरीर न मान । मनोशारीर से परे जा, साक्षी को पहचान ।। आत्मज्ञान को प्राप्त कर, मिथ्या बंधन जान । अजर अमर शाश्वत है तू, गुरु शरण ले नादान ।। **अनुभवकर्ता** अजर अमर अविनाशी, मैं ही घट घट का वासी । पूर्ण शांति और एकता, मैं निराकार अविनाशी ।। मैं माया, मैं ब्रह्म हूँ, मैं ही हूँ अतित्व । मैं ही मैं को देखता, मैं न कोई व्यक्तित्व ।। मैं पर्दा माया फिल्म है दिखते दोनों द्वैत । एक बिना दूजा नहीं, ऐसा प्रेम अद्वैत ।। परमात्मा को ढूंढता, मैं बाहर की ओर। मैं ही हूँ परमात्मा, सर्वव्यापी चाहूं ओर।। ज्ञान, भक्ति, योग मार्ग, कोई भी ले अपनाय । सब ही उस तक पहुंचते, आत्मन सर्वत्र समाय ।। मैं ब्रह्म चैतन्य हूं, मैं ही परमानंद । मैं ही शिव शक्ति हूँ, सत चित आनंद ।। मनोशरीर की इंद्रियां, सभी अनुभव के द्वार । सभी अनुभवों के देखता, मैं आत्मन निराकार ।। जो बदले वो मैं नहीं, मै हूँ नित शून्य प्रकाश । सुख दुख सबको देखता, मैं साक्षी अनंत आकाश ।। मैं तो नित और सत्य हूँ, चाहे दिन या रात । सभी दृश्य का साक्षी हूँ, सभी लोकों में करूं वास ।। तन मन बुद्धि अहम सब, नित नित बदले रूप । निर्गुण, शाश्वत साक्षी हूँ, मैं हूँ शून्य अरूप ।। निर्गुण शाश्वत आत्मन, मेरा नाम न रूप । शून्य शांति और एकता, मैं हूँ सत्य स्वरूप ।। **साक्षीभाव** आत्मज्ञान को प्राप्त कर, अपना सत्य रूप पहचान । साक्षीभाव से प्रेम कर, लौट कर घर आ नादान ।। साक्षीभाव ही मित्र है। देगा जीवन तार । कोई हो परिस्थिति, करता सबको प्यार ।। साक्षीभाव के यंत्र को, जीवन भर अपनाए । श्रवण मनन निद्धयासन, ज्ञान मार्ग के उपाय ।। लाभ मोह और वासना, सबकुछ दे जलाए । साक्षीभाव वो शस्त्र है, जो सत्य के दरस कराए ।। साक्षीभाव की साधना, जीवन भर अपनाए । भव सागर तर जायगा, पुनर्जन्म टल जाए ।। साक्षीभाव वो अग्नि है, करे अशुद्धि का नाश । स्वयं सिद्ध, अविनाशी हूँ, मैं हूँ ज्ञान प्रकाश ।। **आभार:** मैं परम श्रद्धेय गुरुदेव श्री तरुण प्रधान जी एवं गुरुक्षेत्र का उनकी शिक्षाओं एवं मार्गदर्शन के लिए आभारी हूँ। संपर्क सूत्र.. साधक: स्वप्रकाश....... ईमेल:swaprakash.gyan@gmail.com
Share This Article
Like This Article
© Gyanmarg 2024
V 1.2
Privacy Policy
Cookie Policy
Powered by Semantic UI
Disclaimer
Terms & Conditions