Wise Words
समस्याएं और समाधान
शैल
आए दिन हम जीवन में चुनौतियों का सामना कर रहे होते हैं, और उनका समाधान चाहते हैं। हर जीव के चुनौतियों का स्तर अलग होगा। पशुओं की चुनौतियां हमें छोटी भले लगे, उनके लिए उस परिस्थिति में जीवन मृत्यु के प्रश्न जैसा होता है। जब उन चुनौतियों का हल ढूंढ जा रहा होता है, तब वह जीव अपनी बुद्धि और अनुभवों के आधार पर निर्मित संस्कारों का उपयोग कर रहा होता है। हल ढूंढना अर्थात समस्या से बाहर आने का प्रयास या समस्या को समाप्त करने का प्रयास, दोनों सम्भावनाएं हैं। एक अध्यात्मिक व्यक्ति उस समस्या से अनासक्त होकर हल निकलेगा। एक उदाहरण से समझने का प्रयास करेंगे। एक बच्चा जो अपनी पढ़ाई समाप्त करने के बाद अपने जीविकोपार्जन के लिए साधन ढूंढ रहा होता है, तब उसके सामने समस्या उत्तरजीविता की है। उसे कैसे प्राप्त करना है, उसके लिए उसके चित्त में एक योजना है जो अधिकांशतः परिवार, अथवा समाज द्वारा दिए गए होते हैं, जिसके तहत उसने अपनी पढ़ाई पूरी की। इस स्तर पर वह स्वयं के व्यक्तित्व, इच्छाओं, आकांक्षाओं, क्षमताओं और प्रवृत्तियों के सभी पहलुओं से अवगत हो रहा होता है। जो इच्छाओं के रूप में द्वंद की स्थिति उत्पन्न कर रही होती हैं। इस स्थिति में वह किसी निर्णय पर पहुँचकर नौकरी प्राप्त करेगा और अपनी इच्छाओं को किनारे रख देगा। या अपनी इच्छाओं से समझौता न करते हुए परिवार और समाज भी अपक्षाओं को हाशिए पर रखकर उसके अनुसार निर्णय लेगा। और यहां यह भी सम्भावना है कि किसी निर्णय पर पहुँचे बिना स्वयं को भाग्य के भरोसे छोड़कर परिस्थितियां जहां ले जाएं, समर्पण कर देगा। इस समर्पण में, यदि स्वीकार भाव हो तो मार्ग स्वयं के भीतर से आने की संभावना होगी। अथवा यदि स्वीकार नहीं हो तो एक अंतर्विरोध की स्थिति होगी जिसके लिए परिस्थितियों और अंतर्मन के बीच वह जूझता रहेगा। अवसाद में जाने की स्थिति बन सकती है। अथवा ऐसा हल निकाल लेगा जिसके लिए वह स्वयं तैयार नहीं था। किन्तु उसे लगेगा कि मैं चलाया जा रहा हूँ। यहाँ उसके भीतर का मन जो उपेक्षित है, उसे खिलने का अवसर नहीं मिल पाएगा। इन सभी परिस्थितियों में एक हल निकलकर आया, जिसे समाधान कह सकते हैं। अब समस्या विदा हो गई। किन्तु कहीं न कहीं समस्या वहीं बनी होती है। उसे अनदेखा करते हुए मात्र एक समाधान दे दिया जाता है। समय के साथ वह रूप बदल कर बार बार आती रहती है। फिर हम बार बार समस्या और समाधान के चक्र में पड़ते रहते हैं। एक पशु के लिए समस्या का समाधान त्वरित होता है। या तो हल मिल गया होता है अथवा, वह उससे भाग जाता है। किन्तु चेतन मनुष्य के लिए यह यह इतना आसान नहीं होता। क्योंकि हल ढूंढे पाने के समय केवल व्यक्ति ही नहीं, समष्टि भी होता है। समस्या यह है क, समस्या व्यक्ति की व्यक्तिगत होती है किंतु हल समष्टि द्वारा दे दिया जाता है, जिसे वह व्यक्ति स्वयं का समाधान मान कर चलता है। और ऐसे हल के साथ चलने वाला व्यक्ति परोक्ष रूप से समस्या को बड़ा कर रहा होता है। जो बार बार अनन्य रूपों में आ खड़ी होती है। यहां उसके लिए एक और द्वार खुलता है, जब वह स्वयं को समष्टि से अलग रख कर देखता है। और फिर पाता है कि वह समस्या से अलग है। उसके लिए समस्याओं के मूल में कहीं न कहीं स्वयं के ज्ञान का न होना होता है, जैसे बाहर सूरज निकल आया हो, और कोई खिड़कियां बंद कर अंधेरे को कोस रहा हो। फिर समस्याएँ अपनी जगह और वह व्यक्ति कहीं उससे बाहर पाता है स्वयं को। जब कर्ता भाव से बाहर रहकर हल ढूंढ रहा होता है तो समष्टि क्या स्वयं व्यक्ति भी मध्य में नहीं होता। फिर उसे वह मोड़ भी आसानी से दिख जाएगा कि कहाँ से मेरी गति विपरीत हुई। और वह प्रवाह के साथ एक होने का मार्ग ढूंढ लेगा। इस प्रकार हम समस्या में पड़ते ही इसलिए है जब हमारा चुनाव, अथवा निर्णय योजना के अनुरूप नहीं होता। जब हमने कोई लक्ष्य तय किया अथवा किसी के द्वारा दिए गए लक्ष्य पर कार्य करने का निर्णय लिया, तो लक्ष्य तय होगा। और किसी कारणवश मैं बीच में किसी मोड़ पर भटक गया कर गया, अथवा विपरीत मार्ग का चयन हो गया, तो समस्याएँ निश्चित आएंगी। और उनके लिए जितना मेरा अंतर्विरोध होगा उतनी ही दृढ़ता से मन की उलझनें भी होंगी। वहीं, एक बार यदि समस्या से बाहर रहकर प्रयास छोड़ दिया जाए तो वह को भटकाव दिखाई पड़ जाएगी। फिर समाधान सरल हो जायेगा। अथवा ये कहें कि समस्याएं चेतना के आभाव के कारण आती हैं। चेतना का होना और अपने विचारों एवं क्रियाकलापों के प्रति जागरुकता अलार्म की तरह कार्य करेंगी। जागरुकता और निरंतर सजग अवलोकन ही समाधान है। समस्याएं आएंगी ही नहीं, और यदि आएं तो यह भी दिखाई पड़ जाएगा कि समस्याएं मार्ग से भटकाव हैं। पूर्ण चेतन अवलोकन हर समस्या का हल है। दूसरे शब्दों में कहें तो समस्याएँ चेतना के आभाव के कारण उत्पन्न परिस्थितियां हैं, जब हम स्व की स्थिति से बाहर संस्कारगत वृत्तियों के अधीन निर्णय लेते हैं और कदम उठाते हैं।
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