Wise Words
कुछ भी नहीं है,
सुमन सराफ
ज्ञानमार्ग में ज्ञान मिलता नहीं, अज्ञान हटता है, सही है, स्वीकार है, अज्ञान हटते ही सबकुछ अभी है,यहीं है, और, कुछ भी नहीं है, यह कहना भी गलत नहीं है, अज्ञान क्या था? मुक्त होना था, अज्ञान हट चुका, कोई बंधन पहले से ही नहीं था, मान्यता थी बस, सभी पहले से ही सदा से सभी बंधनों से मुक्त हैं, बंधन जैसा कुछ नहीं है, कुछ भी नहीं है, अज्ञान क्या था? कुछ करना था, ये भ्रम भी मिट चुका, करने वाला कौन हैं, सब तो अपने आप ही हो रहा है, सबकुछ तो पहले से ही पूर्ण है, करने जैसा कुछ भी नहीं है, अज्ञान क्या था? मेरा ये आखिरी जन्म है, ये अज्ञान भी मिटा, मेरा तो जन्म ही नहीं है तो शुरुवात क्या?, आखिरी क्या? जन्म नहीं तो मृत्यु क्या? ऐसा नहीं की कभी गीता पढ़ी ही नहीं थी, जब पढ़ना भी नहीं आता था तब से श्रवण तो गीता के श्लोकों और पाठ से ही शुरू ही हुआ था,पर ज्ञान सुनने, पढ़ने से नहीं, आत्मज्ञान से ही होना था, ना कुछ गलत, ना कुछ सही है, सबकुछ तो पहले से ही सही है, सबकुछ परिवर्तन ही है,कभी जीव है,कभी जीव ही नहीं है, जीव तृप्त, शांत, आनंद, निश्चिंत है, कोई प्रश्न ही नहीं है, करना क्या है पता नहीं है, प्रारब्ध भी बचा नहीं है, ना ये करना है ना वो करना है, स्वयं को जानने के लिए क्यों कुछ करना है? हर पल का साक्ष्य भी क्यों बनना है? ये पल, वो पल कुछ भी अलग/भेद नहीं है, कुछ भी नहीं है, जब कुछ भेद ही नहीं,तब कोई ध्यान करने वाला भी नहीं है सब कुछ ही ध्यानमय है, या कुछ भी नहीं है, यह भी नहीं,वह भी नहीं है, कुछ भी नहीं है, यहां भी नहीं, वहां भी नहीं है, कहीं भी कुछ भी नहीं है, ऐसा नहीं, वैसा नहीं, कैसा भी नहीं है, कुछ भी नहीं है, क्या ज्ञान, क्या अज्ञान, नकारात्मक ज्ञान भी नहीं है,कोई भान ही नहीं है, वास्तव में कुछ भी नहीं है, मैं कोई अनुभव नहीं,अनुभव ही नहीं है, कुछ भी नहीं है, ना कर्ता,ना भोक्ता,कुछ होने जैसा भी नहीं , कुछ भी नहीं है, ना शब्द,ना निशब्द,मौन भी नहीं है,बस कुछ भी नहीं है, इस वर्तमान पल का साक्षी हूं ये कहना भी भ्रम ही है, कुछ भी नहीं है, ना मैं-अनुभव, ना मैं-अनुभवकर्ता, ना मैं-अनुभवक्रिया, "मैं" ही नहीं है, कुछ भी नहीं है, शांति,आनंद, स्वयं के स्वरूप में स्थित रहना जैसा भी कुछ भी नहीं है,वास्तव में कुछ भी नहीं है, ना मानने का खेद है, ना जानने का भ्रम है और ना ही कुछ होने जैसा है,वास्तव में कुछ भी नहीं है, परतें भी अनंत है, यह भी भ्रम ही है, जब भेद नहीं तब सबकुछ एक ही है, ना कहीं जाना है,ना कहीं से आना है, यहां, वहां, जैसा कुछ भी नहीं है, स्थान ही नहीं है , कुछ भी नहीं है, कुछ भी नहीं है, ये जानने वाला तो है ही, हां ये वर्तमान पल का साक्षी जो है, वो साक्षी कोई और नहीं अस्तित्व /ब्रह्म, स्वयं है, और वो अस्तित्व कोई और नहीं मैं स्वयं हुं, "अहं ब्रह्मास्मि",
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