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सांसारिक व्यक्ति और अध्यात्म
Rajev S Kumar
# सांसारिक व्यक्ति और अध्यात्म पृथ्वी पर मनुष्य ही एकमात्र ऐसी प्रजाति है, जिसमें बौद्धिक क्षमता का बेजोड़ गुण है।, इस अद्वितीय क्षमता के कारण, मनुष्य ने किसी भी अन्य प्रजाति की तुलना में न केवल खुद को एक प्रजाति के रूप में संरक्षित रखा है बल्कि पूरी पृथ्वी को सर्वाधिक प्रभावित किया है । किसी भी काल और खंड में जैसी और जो भी सामाजिक सरंचना, रही हो, अपने स्वयं के अस्तित्व के उद्गम और स्तोत्र, के विषय में, मनुष्य की हमेशा रूचि और जिज्ञासा रही है और साथ-साथ स्थायी सुख और शांति की खोज में , मनुष्य ने उत्तर और स्थायी समाधान खोजने का प्रयास किया है- आध्यात्मिकता ऐसे सभी प्रयासों का योग है- अध्यात्म एक साधक की भीतर की ओर जाने की यात्रा है, यहाँ भीतर की ओर, एक ऐसे मार्ग को, प्रयास को इंगित करता है जो बाहरी अनुभवों की ओर नहीं ले जाता है, बल्कि सभी अनुभवों को नकारता यह बस संकेत करता है कि सभी अनुभवों से परे क्या है जो मनुष्य को अन्ततः स्थाई सुख-शांति स्थापित करने का उपाय प्रदान करता है, जिसे एक दृष्टि से मनुष्य का वास्तविक स्वरूप /सार भी कहा जाता हैI अस्तित्व की इस अवस्था के इस विचार में न तो किसी विशिष्ट अनुभव का बहिष्कार है, न ही कोई समावेश है, यह जीवन जैसा है उसकी वैसी ही एक सरल स्वीकृति है । आध्यात्मिकता और सांसारिकता दो अलग-अलग विषय हो कर भी एक ही जीवन के दो पहलू हैं, अक्सर यह देखा गया है कि अधिकांश लोग, आध्यात्मिकता की उपयोगिता को व्यक्त करने के संदर्भ में सांसारिक अस्तित्व को नकारात्मकता की दृष्टिकोण से व्यक्त करने का प्रयास करते हैं, यह विशेष रूप से आध्यात्मिक साधकों के भीतर भी देखा जाता है कि वे सांसारिक अस्तित्व के पक्ष को नकारात्मक मानते हैं । एक साधक के लिए , अपने स्वयं के सांसारिक अनुभवों के आधार पर बनी ऐसी धारणा और संसार के यथार्थ ज्ञान अर्थात संसार की मिथ्या के बीच अंतर करना बहुत महत्वपूर्ण है. जो भी इस संसार में है वह , एक या दूसरे रूप में एक सांसारिक व्यक्ति है, अंतर संसार में उसके लगाव/ अनुरक्ति के कोण/ दृष्टिकोण में निहित है । सामान्यतया/ सामान्य शब्दों में, एक सांसारिक व्यक्ति वह होता है जिसके पास परिवार होता है, सामाजिक जीवन होता है, जिनका जीवन , उत्तरजीविता, उत्तरदायित्वों और सामाजिकता के संदर्भों के इर्द-गिर्द घूमता है । अक्सर साधक आध्यात्मिक पथ पर आने के बाद भूल जाते हैं कि उनके इस मार्ग पर आने का कारण यह नहीं है कि यह जीवन को जीने की एक बेहतर तरीका तथा सकारात्मक जीवन शैली है, बल्कि इसका कारण उनके पास वो दुख और जिज्ञासाएं थी, जिसके उत्तर या समाधान, वे सांसारिक जीवन में नहीं खोज पाए थे, जिनके उत्तर उन्हें बाहरी अनुभवों की तथाकथित दुनिया में नहीं मिल सके थे I निश्चित रूप से आध्यात्मिकता एक सुंदर और सकारात्मक जीवन शैली है, हालांकि यह इस मार्ग को अपनाने के बाद ही पता चलता है ** ऐसे कोई निश्चित नियम नहीं हैं, जो यह निर्धारित करते हों कि आध्यात्मिक जीवन तथाकथित सांसारिक जीवन से अलग ही होना चाहिए, एक सांसारिक व्यक्ति के लिए आध्यात्मिक जीवन समाज से अलग-थलग जीवन नहीं है बल्कि यह एक बहुत विशाल, विस्तारित दृष्टिकोण वाली जीवन शैली है जो न्यूनतम भौतिकवादी जीवन शैली, समावेशिता, सत्य का पालन, कर्तापन से दूर रहने और सबसे महत्वपूर्ण साक्षी भाव या चेतना में निरंतर बने रहने के मूल सिद्धांतों पर आधारित है। एक सामान्य सांसारिक व्यक्ति के लिए, जो अपने जीवन जीने के सामान्य तरीकों/ सामान्य जीवन शैली में व्यस्त है जो , उत्तरजीविता के मुद्दों, जीवन की सुरक्षा संबंधी चुनौतियों के इर्द-गिर्द घूमती है उदाहरण के लिए परिवार, पैसा कमाना, परिवार की देखभाल, नौकरी, व्यवसाय, विवाह, जीवन और मृत्यु, बीमारी आदि। जब ऐसा व्यक्ति आध्यात्मिक पथ पर चलने लगता है, फिर उसके लिए, अपने चुने हुए पथ के आधार पर, , उस पर चलने के लिए उपयुक्त दिशा निर्देशों और नियम आदि का निर्धारण किया जा सकता है और समाज का दृष्टिकोण आध्यात्मिकता के इन रास्तों की ओर व्यापक रूप से भिन्न हो सकता है, इसलिए एक सांसारिक साधक के लिए, उसे अपनाए गए आध्यात्मिक मार्ग पर सावधानी से चलने की आवश्यकता होती है । उदाहरण के लिए यदि साधक भक्ति मार्ग पर है, तो कभी-कभी ऐसे साधक की सामाजिक स्वीकृति तुलनात्मक रूप से अधिक होती है, क्योंकि समाज में ईश्वर क्या है इस बारे में बहुत अज्ञानता है और बहुत सारी धारणाएं, भय और अपेक्षाएं हैं ईश्वर को शक्ति के कुछ बाहरी स्रोत जैसा मान कर, मानव नियति पर नियंत्रण के रूप में स्वीकार किया जाता है , वही योग मार्ग ने अपनी मूल प्रासंगिकता खो दी है और इसे केवल अच्छे शारीरिक स्वास्थ्य के लिए कुछ प्राचीन शारीरिक व्यायाम, आसन आदि जैसी तकनीक आधारित प्रणाली के रूप में मान्यता दे दी गई है । ऐसा मान सकते हैं कि तंत्र मार्ग भ्रष्ट हो गया है, तंत्र शब्द को ही किसी प्रकार के जादू और जादू टोना आदि के अर्थ में कम कर दिया गया है और तंत्र मार्ग का सच्चा ज्ञान , इसकी वास्तविक प्रासंगिकता खो चुकी है और यदि कुछ सच्चे अभ्यासकर्ता हैं भी, यदि इस प्राचीन और सुंदर आध्यात्मिक पथ के कोई अवशेष है, तो उन्हें ढूंढना लगभग असंभव है । हालाँकि, एक मार्ग ने, इसके प्रारूप में बदलाव के बावजूद, इसकी मूल सामग्री और संदर्भ को बरकरार रखा है, यह ज्ञान का मार्ग है जो यद्यपि बौद्धिक रूप से सक्षम साधकों के लिए अधिक उपयुक्त है , यह सांसारिक लोगों के लिए भी बहुत प्रासंगिक और उपयोगी है क्योंकि यह किसी भी साधक की सांसारिक जिम्मेदारियों या भागीदारी से किसी प्रकार से अवहेलना या तिरस्कार की मांग नहीं करता है । पथों के परिप्रेक्ष्य से, ज्ञान का मार्ग सबसे कम प्रतिबंधात्मक है, इसलिए कभी-कभी इसे शीर्ष पर माना जाता है, सबसे ऊपर का मार्ग माना जाता है, और शायद बेहतर शब्दों में, यह सबसे व्यापक मार्ग है, जिसमें अन्य सभी मार्ग अंत में विलीन हो जाते हैं, ज्ञान मार्ग में अद्वैतवाद का विशिष्ट मार्ग शीर्ष पर माना जाता है । इसका एक बहुत ही सरल कारण है कि अद्वैतवाद का यह मार्ग, अज्ञानता के लेशमात्र अंश तक की किसी संभावना के लिए कोई विकल्प नहीं छोड़ता है , द्वैत की किसी भी संभावना का पूरी तरह से खंडन करके यह केवल अद्वैत को संपूर्ण अस्तित्व के ज्ञात, अज्ञात या अज्ञेय भाग के लिए एक मात्र विकल्प के रूप में साधक को आत्मज्ञान, माया का ज्ञान और ब्रह्मज्ञान प्रदान करता है, गलत धारणाओं के कारण होने वाली अज्ञानता को दूर करके, हटाकर, यह साधक को अपने असली स्व को जानने में सक्षम बनाता है । **एक साधक के लिए एक सच्चे गुरु की खोज या बेहतर शब्दों में, एक सच्चे गुरु के संपर्क में आने का सौभाग्य प्राप्त करना, एक कृपा है, सबसे बड़ा आशीर्वाद है ।** यह भी प्रत्यक्ष ही है कि सांसारिक और सामाजिक अस्तित्व की प्रकृति के कारण, अधिकांश मनुष्य इस सांसारिकता के जाल में फँस जाते हैं, यह माया का स्पष्ट प्रभाव है , इसलिए प्राचीन काल से ही साधक को सभी सांसारिक मोहों को त्याग कर सन्यासी का जीवन जीने का आह्वान किया जाता रहा है, हालांकि उन लोगों के लिए जो पहले से ही सांसारिकता में प्रवेश कर चुके हैं, जो ग्रहस्थ हैं, उनके लिए अध्यात्म के द्वार बंद नहीं हैं, और गुरुजनों ने एक सच्चे और योग्य सांसारिक साधक के लिये अध्यात्म के पथ पर चलने में मदद करने हेतु, योग्यताओं और क्षमताओं के अनुसार दिशा निर्देश प्रदान किए हैं **नीचे कुछ ऐसे ही संकेत और सुझाव दिए गए हैं जो एक सांसारिक व्यक्ति को आध्यात्मिकता का पालन करने के लिए उपयोगी लग सकते है-** इन संकेतों और सुझावों के बारे में पढ़ने से पहले कुछ सामान्य भ्रांतियों को भी देखें जो एक सांसारिक व्यक्ति के लिए मानी जाती हैं, यदि वह अध्यात्म के पथ पर चलना चाहता है। ऐसी धारणाएं जिनका कोई आधार नहीं है -जैसे परिवार छोड़ना पड़ता है, साधक को सम्बन्धियों और मित्रों को छोड़ना पड़ता है, आजीविका कमाना बंद करना होगा, भिक्षा पर जीना पड़ता है, सांसारिक सुखों से बचना चाहिए, सांसारिक साधक की उन्नति तभी होती है जब वह एकांत में हो, साधक को सामाजिक समारोहों में शामिल नहीं होना चाहिए, साधक को उन्नति के लिए सांसारिक सुखों का त्याग करना पड़ता है- आदि आदि । एक सांसारिक साधक को अपने परिवार, दोस्तों, अपनी नौकरी या काम को छोड़ने की जरूरत नहीं है, एकांत स्थान पर जाने की जरूरत नहीं है, या ऐसे किसी भी नियम का पालन करने की जरूरत नहीं है जो उसके सांसारिक दायित्वों को इस तरह से बाधित कर सकता है कि इससे किसी भी अन्य लोगों का किसी भी तरह का नुकसान होता है, जो साधक पर आश्रित हैं । **आध्यात्मिकता या आत्म ज्ञान दूसरों को नुकसान पहुंचाने की कीमत पर नहीं आता है।** किसी भी आध्यात्मिक पथ का कोई भी साधक, मूल आत्म ज्ञान प्राप्त करने के बाद, जिसमें अनिवार्य रूप से वर्तमान जीवन और इसकी स्थितियों की पूरी जिम्मेदारी और स्वीकृति लेना शामिल है, जान जाता है कि, वह स्वयं ही वर्तमान जीवन और इसकी स्थितियों के लिए पूरी तरह जिम्मेदार है, और किसी भी तरह से उसे अपनी आध्यात्मिक प्रगति के लिए कुछ भी करने का प्रयास नहीं करना चाहिए जिससे दूसरों के लिए नुकसान हो सकता है, ऐसा करने से, साधक अधिक कर्म संबंध बना लेगा । एक सांसारिक साधक को अपनी स्वयं की इच्छा और तर्क की गहन जांच के साथ शुरुआत करनी चाहिए कि वह आध्यात्मिकता के मार्ग पर क्यों चलना चाहता है, अगर मुक्त होने की तीव्र इच्छा है और या तीव्र जिज्ञासा है, तो साधक को उसके गुरु से मिलने का अवसर मिलेगा । गुरु की कृपा के बिना कई जीवन प्रयास करने के बावजूद, यह संभव नहीं है अपनी आध्यात्मिक यात्रा शुरू भी कर पाये, इसलिए जब साधक को अपने गुरु से मिलने की कृपा प्राप्त हो जाए, तो उसे अपने गुरु के निर्देशानुसार आध्यात्मिकता पर अपनी यात्रा शुरू करनी चाहिए। ***कुछ महत्वपूर्ण दिशा निर्देश के लिए सुझाव इस प्रकार हैं- प्रत्येक व्यक्ति को इनका सावधानीपूर्वक मूल्यांकन करना चाहिए और अपने स्वयं के मूल्यांकन के अनुसार स्वयं के लिए अनुदेशों को पुनः लिखना चाहिए, और तदनुसार पालन करना चाहिए ।*** आत्मज्ञान प्राप्त करें। शुद्धिकरण प्रक्रिया करें। साधक को अपने व्यक्तिगत सामाजिक दायरे में उच्च नैतिक आचरण का उदाहरण स्थापित करना चाहिए। सामाजिक, पारिवारिक स्थिति का वित्तीय निर्भरता और भावनात्मक निर्भरता के लिए मूल्यांकन करें। बच्चों को आर्थिक और भावनात्मक रूप से स्वतंत्र होने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए और इस में उनकी मदद की जानी चाहिए। यह सुनिश्चित करने का प्रयास करें कि वृद्ध माता-पिता या छोटे बच्चों की तरह पूरी तरह से आश्रित लोगों के लिए पर्याप्त उपलब्धता है। जो लोग पूरी तरह से आश्रित हैं उनकी निर्भरता के संबंध में यथास्थिति बनाए रखने के लिए सभी प्रयास किए जाने चाहिए। किसी भी भौतिक संपत्ति के संबंध में, विशेष रूप से पूरी तरह से आश्रितों की आजीविका के संबंध में उपयुक्त कानूनी सावधानी रखना भी उपयोगी है। यह एक अद्भुत सौभाग्य है यदि परिवार आध्यात्मिक पथ का समर्थन करता है और इससे भी अधिक यदि वे भी इसे अपनाना चाहते हैं लेकिन अगर परिवार आपकी आध्यात्मिक यात्रा का विरोध करता है, तो यह और भी बड़ा सौभाग्य है। अपनी आध्यात्मिक यात्रा के अनुकूल होने के लिए, किसी भी पूर्व-मौजूदा स्थिति को अचानक न बदलें । अंतत: आपकी आध्यात्मिक यात्रा के परिणामस्वरूप संबंध टूटेंगे, भले ही ये बाहरी रूप से बरकरार हों, फिर भी अंदर से, दूसरे आपको छोड़ देंगे। आध्यात्मिक यात्रा का एक महत्वपूर्ण पहलू अनुशासित जीवन शैली भी है ताकि साधक को अपनी साधना के लिए अधिक से अधिक समय मिल सके। साधक को अपने दैनिक कार्य स्वयं करने चाहिए। परिवार के लिए किया गया कोई भी कार्य इस जागरूकता में करना चाहिए कि मैं कर्ता या प्रदाता नहीं हूँ। एक सांसारिक, पारिवारिक साधक के लिए संसार में रहकर और सांसारिक कर्तव्यों का पालन करते हुए आध्यात्मिक मार्ग पर चलना समाज छोड़ने की तुलना में बहुत बेहतर और उचित है हालाँकि, इस बात का ध्यान रखना आवश्यक है कि सभी सांसारिक संबंधों के बावजूद, एक साधक मानसिक रूप से, समाज और परिवार से स्वयं को अलग कर देता है। पहले की तरह आचरण करना उचित नहीं है, इसलिए समय-समय पर स्वयं का मूल्यांकन करना बहुत उपयोगी होता है। भले ही एक साधक ने स्वयं का मूल ज्ञान प्राप्त कर लिया हो, लेकिन अन्य अभी भी अज्ञान में हैं और वे भयभीत या चिंतित महसूस कर सकते हैं। इसलिए और साधक को अपने आचरण, वाणी में सावधान रहना चाहिए, जहां घोर विरोध हो, संतुलन खोजने के लिए बुद्धि का उपयोग करना चाहिए, फिर भी यदि साधक को अपनी आध्यात्मिक यात्रा के कारण, समाज और परिवार से शत्रुता, तीव्र विरोध और घृणा का अनुभव हो तो ऐसे वातावरण को छोड़ देना ही श्रेयस्कर है। साधक को अपनी साधना के लिए एकांत समय खोजने के लिए अपने दैनिक कार्यक्रम को फिर से समायोजित करना पड़ता है। वह ऐसे समय को चुन सकता है जब दूसरों के पास उसके साथ कोई बातचीत न हो या कम से कम बातचीत हो। जैसे बहुत जल्दी सुबह या देर रात दूसरों के सोने के बाद। साधक अपने दैनिक शारीरिक व्यायाम के दौरान या काम आदि के दौरान चिंतन करने के लिए समय निकाल सकता है। साधक को परिवार के अन्य सदस्यों को अपना स्वतंत्र निर्णय लेने देना चाहिए। समय-समय पर आत्म मूल्यांकन करते रहें। संसार मिथ्या है, व्यक्ति भी मिथ्या है- चित्त की अभिव्यक्ति है, उस चित्त की जो स्वयं मिथ्या है, समस्त संसार इसी चित्त की विभाजनकारी प्रवृत्ति के कारण प्रकट/ प्रतीत होता है और "मैं" इन सभी प्रतीतियों का द्रष्टा मात्र हूँ लेकिन सभी व्यावहारिक उद्देश्यों के लिए जैसा यह अस्तित्व में प्रतीत होता है, एक ज्ञानी उसी के अनुसार व्यवहार करता है । वर्तमान में जो कुछ भी जीवन है, वह साधक की अपनी पसंद और कर्म का परिणाम है, इसलिए यदि किसी को वर्तमान जीवन काल में अपने गुरु से मिलने का सौभाग्य प्राप्त होता है, तो उसे गुरु के निर्देशानुसार उसका पूरा उपयोग करना चाहिए। **ध्यान मूलं गुरुर मूर्ति , पूजा मूलं गुरु पदम् । मंत्र मूलं गुरुर वाक्यं , मोक्ष मूलं गुरुर कृपा ।।**
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