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ज्ञान पथः बोधि वार्ता (कविता)
जानकी
ज्ञान पथः बोधि वार्ता <br><br> <div class="ui image"> <img width="500px" src="https://t3.ftcdn.net/jpg/04/07/07/86/240_F_407078662_IZ5lADu7PjhAhaS5bpKZ8yP5Ge3AaNXi.jpg" alt="Any Width"> </div> <br><br> ज्ञानार्जन पथ मुक्ति हेतु भव से मिलने इरादा लिए । जो था धूल कचरा अज्ञान मनका सम्पूर्ण तोड़ी दिए ॥ मान्यता, मत, धारणा, असत का ये त्याग का मार्ग है । मिथ्या जो मनका अशुद्धि, अभिमान, मालिन्य उत्सर्ग है ॥ मैं क्या हूँ किन हेतु से अवतरित ये जीव के रुप में । माया ने कब नाद से जगत का मिथ्या रचा ख़ुद में ॥ अस्तित्व किस तौर से प्रकट है ब्रम्ह रहेगा कहाँ ॥ ये सारे विधि ज्ञान से सहज में मिलता रहेगा यहाँ ॥ जो मेरा रुप जानके विलय में हरपल रहें होश में । स्वभाविक रुप साधना नित करें भड़के नहीं जोश में ॥ सत्संग, गुरु ज्ञान, साधक सभा, सेवा व संम्पर्क है । संसारी, गुण, भोग, काम, रमिता, पाखंड उत्सर्ग है ॥ होता श्रवण ज्ञान वाक्य गुरु का सत्संग सेवा खड़ा । प्रश्नोंत्तर विधि दूर में प्रविधि से प्रत्यक्ष वार्ता बड़ा ॥ स्वयं का अनुभव समाहित बिना मान्य न होगा वचन । विश्लेषण, निदिध्यासनादि, उपमा, तार्किक चिन्तन मनन ॥ शुद्धि जीवन में कहाँ तक हुआ कैसा रहा साधना । मोक्ष के पथ में समर्पित सदा अन्य न हो कामना ॥ मूल्यांकन यदि दोष हो प्रगति में शुद्धीकरण का विधि । साझा है सबका निश्वार्थ मन का गुरु करुणा निधि ॥ *** हार्दिक आभार
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