Wise Words
तरुण तरंग (क्रमश:)
जानकी
<br><br> <div class="ui image"> <img width="500px" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEiHo157iEOuAzZRRmw_nL-J-ExH2klvo7x70xgR_QDHz2V24wocYYBCs1U_l6IFlB6ysYsI_2SkV5skDxDqfhkCWV5RS9ulEU5n-1sOKyHd9RX7PtoHaLuqDD3D827j6JQLvbj-fK3q4FYA_AZKGI-Fe57cjoLiizI23Zzn2a39DMCCoE9jJjqZ71okzXA" alt="Any Width"> </div> <br><br> गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुर्साक्षात परब्रम्ह तस्मै श्री गुरवे नमः यहाँ पर प्रकाशित सभी विचार मेरे सद्गुरू श्री तरुण प्रधान जी द्वारा विभिन्न सत्संग, प्रवचन और लेखों में व्यक्त किए गए विचार है। उन विचारों में से कुछ ज्ञान तरंगों को महावाणी के रूप में इकट्ठा करके यहाँ प्रकाशित करने का प्रयास किया गया है। "*तरुण तरंग"* शृंखला अंतर्गत "ज्ञान/अज्ञान" विषय का पहला और दूसरा भाग में क्रम संख्या १ से लेकर ६० तक समावेश है, ये तीसरा भाग है। इस अवसर और गुरुकृपा के लिए गुरुदेव के प्रति हार्दिक आभार। **ज्ञानाज्ञान (क्रमश:)** ६१. शास्त्रों से ज्ञान नहीं होता, शास्त्रों में ज्ञान होता है जो आपके अनुभव की ओर संकेत करते हैं, अनुभव दिलाते नहीं। ६२. मान्यताएं नकली नोट की तरह हैं, कोई मोल नहीं। ज्ञान सोने की तरह है, मिलना कठिन है, अनमोल है। ६३. ज्ञान ही वो धन है जो बाँटने से बढ़ता है। ६४ अज्ञानी को माया ने बांधा है, दुःखी है। अर्धज्ञानी माया को बांधना चाहता है, वो दुःखीहै। ज्ञानी जानता है मैं ही माया हूँ, और वो सुखी है। ६५. अज्ञान माया है और उसे हटाने की साधना भी माया है। इसीलिए साधना से ज्ञान नहीं मिलता। ६६ शिक्षित होने में और ज्ञानी होने में ज़मीन आसमान का फ़र्क है। बुद्धि के दुरुपयोग से शिक्षित ही शोषण करता है, रक्षक ही भक्षक होता है। ६७ जब प्रश्न समाप्त हो जाएँगे तब ज्ञानमार्ग का अन्त हो जाता है। इसके बाद जो भी प्रश्न आएगा उत्तर शब्दों में नहीं प्रमाण के साथ आएगा। ६८. हर उत्तर ग़लत है। जो बिना शब्द के कहा गया है वो सत्य है, मौन सत्य हैं। हर उत्तर मौन तक पहुँचने का साधन है, और बुद्धि इसके ऊपर जाने का यानि की बुद्ध बनने का सीढ़ी है। ६९. सफलता की कहानी सभी सुनते हैं लेकिन असफलता की कहानी कोई नहीं सुनता/सुनाता। ७०. चलने बोलने जैसे सामान्य सांसारिक कार्यों के लिए तो कई वर्ष लगता हैं तो आध्यात्मिक उपलब्धि जन्मों का साधना है। ७१. ज्ञान भी अशुद्धि है। जो ज्ञानाज्ञान रहित अवस्था है वही सहज समाधि है। ७२. सभी के मन के बात जानना कोई बड़ी बात नहीं है। सबके अनुभव जान लेने के बाद भी मूलज्ञान वही है। ७३. अज्ञान मल है, ज्ञान भी मल है। अज्ञान काटा है, ज्ञान दूसरा काटा है जिससे अज्ञान को निकालकर दोनों को फेंक देना चाहिए। ७४. ज्ञानमार्ग ऋणात्मक मार्ग है, ज्ञान नहीं मिलता। चित्त शुद्ध होता है, अज्ञान का बादल छटकर अनुभवकर्ता प्रकाशित होता है। ७५. ज्ञान व्यक्ति को नहीं होता; व्यक्ति तो एक यन्त्र है। ज्ञान तो बस होता है; स्मृति में संस्कारों के रूप में संग्रहित होता है। ७६. जो अनुभव किया जा सकता है उसी का ज्ञान हो सकता है। सभी अनुभव पहले से ही माया है तो उन पर आधारित ज्ञान भी मिथ्या है, आधारहीन है। ७७ जान कर भी न जानना अज्ञेयवाद है। अस्तित्व में जानने और न जानने के लिए कुछ भी नहीं है। ७८. अज्ञेयवादी ज्ञान का दास नहीं है, वो स्वतंत्र है, मुक्त है। अनुभवकर्ता ज्ञान/अज्ञान पर निर्भर नहीं है। ७९. मूर्ख व्यक्ति छोटे-छोटे हानि पहुँचा सकता है लेकिन दम्भी बुद्धिमान व्यक्ति बुद्धि को दुरुपयोग करके बड़ी हानि पहुँचा सकता है। ८०. अज्ञान दम्भ का कारण है। अज्ञानी व्यक्ति कुछ जाने बिना, कुछ किये बिना ही दम्भी हो जाता है। उसको तो ज्ञान/अज्ञान का भी पता नहीं है। यही उसका दम्भ का कारण है। इसीलिए वो मूर्खतापूर्ण कार्य करता है। ज्ञान बड़ा दम्भ है, ज्ञान में दम्भी नीचता को उच्चता, कुरुपता को सुन्दरता मानता है। क्यूँकि तथाकथित ज्ञानी का दम्भ इस गन्दगी को मिथ्या ज्ञान के चमक दमक में छुपा है। ८१. अज्ञेयता में सब कुछ जान कर ज्ञान के सारे अध्याय ही बन्द कर दिया जाता है, पवित्रता, ईमानदारीता और निश्छलता बाक़ी रहता है। ८२. जहां अज्ञेय है वहाँ कोई ज्ञान/अज्ञान नहीं, कुछ सत्य/असत्य नहीं। अज्ञेय के आगे या ऊपर कुछ भी नहीं है। अज्ञेय होना बुद्ध होना है, जो बुद्धि के ऊपर है। बुद्ध सब कुछ जानकर भी कुछ नहीं जानता। ८३. जो है ही नहीं उसको कैसे जाना जा सकता है? जहाँ प्रमाण ही माया है वो ज्ञान कैसे सत्य हो सकता है? ८४. ज्ञानाज्ञान, सत्यासत्य, तर्क/वितर्क सभी बुद्धि के अंतर्गत है। अज्ञेयता बुद्धि से ऊपर है। ८५. अज्ञान का नाश होते ही ज्ञान का भी नाश होता है। इसलिए ज्ञानी कोई नहीं है, अज्ञेय है। ८६. ज्ञान रोटी का चित्र है, अज्ञेयता रोटी स्वयं है। रोटी का चित्र देखकर भूख नहीं मिटती। अस्तित्व का ज्ञान नहीं होता, होना पड़ता है, जो मैं पहले से हूँ। ८७. सत्यासत्य के परे, ज्ञानाज्ञान के परे जो अज्ञेय है मैं वो चैतन्य हूँ। ८८. व्यक्ति की ज्ञान के स्तर अनुसार एक ही प्रश्न के अलग-अलग उत्तर होते हैं। ज्ञानी लिए कोई उत्तर नहीं होता; क्योंकि वो अज्ञेयता के स्तर पर पहुँच चुका है, जहाँ केवल समर्पण है। समर्पण भाव में प्रश्न नहीं रहता। ८९. अध्यात्म भी एक प्रकार का जाल है, कुछ मिनटों का कार्य को जन्मों जन्मों तक के लिए खींच दिया गया है। ९०. ज्ञानी के पास कुछ नहीं होता है, इसलिए वो शांति और आनंद में है। ९१. बुद्धि के द्वारा जानने का प्रयत्न नहीं करना चाहिए। बुद्धि द्वारा तो केवल नष्ट हो सकता है अज्ञान का। ९२. जितना ज्ञान उतना सीमित अनुभव होता है। सारा ज्ञान के अंत में अज्ञान है क्योंकि अनुभव से ही निचोड़ा गया है। ९३. ज्ञान कृपा से मिलता है, प्रयास से नहीं। लेकिन प्याला ख़ाली होनी चाहिए, और खाद पानी देते रहना चाहिए। ९४. ज्ञानमार्ग में हर बात पहले अपरोक्ष अनुभव और तर्क के आधार पर स्थापित होकर ही बाहर आना चाहिए। ९५. जीव और वनस्पति के हरेक कोशिकाओं में अपना व्यवस्थिकरण स्वयं करने का ज्ञान संग्रहित है। *** क्रमशः
Share This Article
Like This Article
© Gyanmarg 2024
V 1.2
Privacy Policy
Cookie Policy
Powered by Semantic UI
Disclaimer
Terms & Conditions