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गुरुदेव को अपना बनाकर तो देखो
हरिओम शर्मा
**गुरुदेव को अपना बनाकर तो देखो** गुरुदेव को अपना बना कर तो देखो, बस एक बार आत्मज्ञान पाकर तो देखो। लोभ मोह के पाश में जीव रहा दुख भोग, कितने जनम बिता दिये फिर भी न होती भोर। गुरुजी की करुणा पाकर तो देखो, जन्मों के बंधन मिटा कर तो देखो।। गुरुदेव को अपना बना कर तो देखो, बस एक बार आत्मज्ञान पाकर तो देखो। माया की मझधार में जीवन नैया डूबी जाय, गुरु की शरण में जाय के नैया पार लगाय। अज्ञान से मुक्ति पाकर तो देखो, अंधकारमय जीवन हटा कर तो देखो। गुरुदेव को अपना बना कर तो देखो, बस एक बार आत्मज्ञान पाकर तो देखो। राग द्वेष को मिटा कर के अद्वैत प्रेम मैं हो जाऊं, आत्म ज्ञान पाकर के साक्षी में स्थित हो जाऊं। मन वचन कर्म की अशुद्धि मिटाकर के, शुद्ध चैतन्य में मैं रम जाऊं। गुरुदेव को अपना बना कर तो देखो, बस एक बार आत्मज्ञान पाकर तो देखो। संसारी वृत्ति के माया जाल ने बंधक मुझे बनाया था, देह भाव में जीवन जीना ही मैंने अज्ञान में अपनाया था। माया का पर्दा हटा कर तो देखो, देह से दृष्टा बन कर तो देखो। असत से सत में समा कर तो देखो, साक्षी को साथी बनाकर तो देखो। गुरुदेव को अपना बना कर तो देखो, बस एक बार आत्मज्ञान पाकर तो देखो। मानव देह बिरले मिले, पल पल रहा क्यों खोए। चेतना अमृत पीकर के अमर हो जाओ भाई। मानव देह को पाय के मुक्ति का मौका भुनाकर तो देखो गुरुदेव को अपना बना कर तो देखो । बस एक बार आत्मज्ञान पाकर तो देखो। अवगुणों की शुद्धि करा कर तो देखो, स्वयं की यह हस्ती मिटा कर तो देखो। गुरु वाणी का अमृत पीकर तो देखो। सत की संगत पा कर तो देखो । गुरुदेव को अपना बना कर तो देखो । बस एक बार आत्मज्ञान पाकर तो देखो। **आभार:** मैं परम श्रद्धेय गुरुदेव श्री तरुण प्रधान जी एवं गुरुक्षेत्र का उनकी शिक्षाओं एवं मार्गदर्शन के लिए आभारी हूँ।
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