Wise Words
माया देवी कीं दासीया
निशिगंधा क्षीरसागर
माया देवी कीं दासीया इच्छाए कामनाए वासना माया देवी कीं दासीया इच्छाए कामनाए वासना मायादेवी का चल रहा खेल जीव का शिव सें है मेल शिव शून्य अद्वैत तत्व निर्गुण सें सगुण त्रिगुणात्मक शक्ती सृष्टी प्रकृती त्रिगुणी सगुण शक्ती सें गुणातीत गुणहीन अनंतकाल सें आदी अंतहीन मूलभूत अनुभवो कीं सूत्रधार बनी इच्छाए कामनाए वासना मायादेवी कीं मात्र दासीया देह साधन हुई पाच इंद्रिया श्रवण स्पर्श रूप रसना तन्मात्रा खेल खेल में जीवन प्राकट्य स्वप्नरूपी इच्छा बनकर नाट्य नैसर्गिक इच्छाए जीवन है चलाती जीवन जिने हेतू अत्यावश्यक जीव का रक्षण भक्षण प्रजनन आती जाती जो नित्य निरंतर क्यूँ करे उन्हे स्वार्थी सिमीत करे असीमित विश्वकल्याण प्रार्थना लौकिक इच्छा ले आये अलौकिकता स्वयंके अस्तित्व का क्या है कारण क्यूँ घटना घटती युहीं अकारण ?? अत्यावश्यक है यह चिंतन मनन प्राप्त को पर्याप्त समझो और अप्राप्त को अनावश्यक हो रही है प्रगती घटित अपने आप नियतीवश अपनी इच्छाए आरोपीत किये बुद्धी का गलत उपयोग किये मनुष्य करता है क्यूँ गडबड...? नियती के खेल में क्यूँ खिलवाड...? कृपादृष्टी सें गुरु ज्ञान दिखलाये.... सारी इच्छाओ कीं निरर्थकता जो आवश्यक है होता रहेगा संस्कार स्मृती सें स्वभाव बनेगा चित्त में इच्छा का स्रोत बहेगा ज्ञान हि वासनाबीज दग्ध करेगा जीवन वृक्ष का सूक्ष्म बीज होनामात्र अस्तित्व का बीज अपुरी अधुरी इच्छाए जन्मांतरीत चलाती रहती जीव को अनवरत सूक्ष्म दमीत इच्छा होकर अंकुरित नाट्य जीवन का हुवा फलिभूत मछली जीव फसा माया के जाल अज्ञानवश हुवा है हाल बेहाल सुखं कीं चाह में दुःखी हाल दुःख का कारण अज्ञान बीज अज्ञान हि केवल वासना बीज अज्ञान को हटा ज्ञान को बसा जीव हिरन मृगजल में फसा जल बिन मृगजल जीवन बना दृष्टी को सच मान मृगजल में जल को देख सुखं में पीछे भाग रहा तृष्णा शांत हुवे बिना जनम जनम ढुंढ रहा सुखं कीं खोज इच्छा में इंद्रिय जनित इस सुखं में प्रयास खोज का व्यर्थ हुवा मिथ्या माया धोका हुवा सुखं के बदले दुःख हि मिला अपरोक्ष अनुभव सें जान गया सुखं तो केवल भ्रम हुवा जीवन निद्रा सें जाग उठा सपना जीवन का भरम टूटा जीवनघट का आकार हटा अनदेखें सच को देखा रूप रंग मिथ्या जाना आकार भ्रम तत्व सच्चा घटाकार हटा मिट्टी खरी गुरुकृपा सें दृष्टी बदली स्वयं कीं खोज स्व में मिली स्वप्न है सारी इच्छा वासना स्वप्न में सारी पूर्ण करना उद्देश यही है जीवन यात्रा अंत में सब शून्य हो जाना इच्छा बाकी श्वास खत्म मृत्यू अंतिम निश्चित समझ अमृत प्राप्ती मृत्यू सें छूटना तो निर्विकार हो त्यागकर वासना श्वास बाकी इच्छा छूटना जीवन मुक्ती इसको जाना बंधन मुक्ती इसको जाना माया में खुद कीं मिथ्या खुद के अस्तित्व को खोया स्व कीं स्वतंत्रता को पाया इच्छाए कामनाए वासना माया देवी कीं सारी दासीया स्वीकार हो आप को धन्यवाद आप कीं कृपा-आशीश सें आप कीं संतुष्टी तृप्ती सें सौभाग्यवश आज भाग्य उजला मैं मुझ सें मिला खुद को खुद में पाया खुद को खुद में पाया सुखं शान्ति आनंद अब यही है इच्छा मैने खुद को पाया खुद को खुद में पाया
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