Wise Words
तरुण तरंग
जानकी
<br><br> <div class="ui image"> <img width="500px" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEjnMjlR2cDuhCLswPTgwIquecHgdXQmtEx0rFUix-GmYhGxVDxEJj21Hau7E7CxwKMq2vfQQVclxSSRYvyJYkCNnFN4SSqoessdlTLD-AZNwYhu4nyhHUYHch_elW9ruf4UYsX14p1QUU_x_S9K11czSjdAwcMlwg5KC7ii2-M8ESzermRJIvJYs7gm6Qw" alt="Any Width"> </div> <br><br> गुरुर्ब्रम्हा गुरुर्विण्णु गुरुर्देवो महेश्वरः गुरुर्साक्षात परब्रम्ह तस्मै श्री गुरवे नम। यहाँ प्रकाशित सामग्री सिलसिलाबद्ध लेख के रुपमें नहीं बल्की मेरे सद्गुरू श्री तरुण प्रधान जी द्वारा विभिन्न सत्संगों में व्यक्त किए गए विचार है। उन विचारों में से ज्ञानतरंग पैदा करनेवाले मुख्य विंदु को महावाणी के रुपमें इकट्ठा करके मैंने यहाँ प्रकाशित करने का प्रयास किया है। यथासंभव शब्द, अर्थ और आशय में कोई फेरबदल न हो इसके लिए सचेत हूँ। फिर भी कोई व्याकरणिक त्रुटि हो सकती है, मेरे समझ के सीमा के कारण अन्य महत्वपूर्ण विचार छुट भी सकता है। इसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ। आगामी श्रृंखला में यथासंभव समेटने का प्रयास करूँगी। **तरंग १: ज्ञान/अज्ञान** १. ज्ञान छोटा सा है, बहुत सरल है। अज्ञान का कोई सीमा नहीं है, बहुत जटिल है। २. इस सृष्टि में जो अपरिहार्य है वो निःशुल्क उपलब्ध है, इसीलिए ज्ञान बेचना महा पाप है। ३. अनुभवों का संयोजन ज्ञान हैं जो स्मृति में एक वृत्ति युक्त संरचना के रुप में चलता हैl ४. ज्ञान वृत्ति मूलभूत है जो सभी जीवों में होती है लेकिन विकसित जीवों में जटिल हो गया है। ५. ज्ञान सदा से है, इसकी रक्षा भी नहीं करनी पड़ती; स्वयं रक्षित है। अज्ञान माया है, आता जाता है। ६. प्रयोग द्वारा सिद्ध हुए परिकल्पना कभी भी बदला जा सकता है, इसीलिए सिद्धांत सत्य नहीं होताl ७. सूचना केवल ज्ञान के ओर संकेत करता है, ज्ञान के बिना सूचना विकार मात्र हैl निराधार सूचना के कारण भ्रम सिर्जना होता है। ८. तथ्यों का पहाड़ खड़ा कर लेना ज्ञान नहीं है। ज्ञान अनुभव से होता है, बुद्धि तो अर्थ का अनर्थ भी कर सकता है। ९. ध्यान की दिशा इन्द्रियों से हटाकर इन्द्रियों के स्वामी के तरफ़ ले जाते ही अज्ञान ज्ञान में बदल जाती है। १०. ज्ञान शब्दों से नहीं होता। मिठा शब्द पर एक किताब लिखी जा सकती है लेकिन मिठा चखने पर ही पता चलेगा। ११. शाब्दिक संचार तब ही समझ में आएगा जब शब्दों से सम्बंधित विषय का अनुभव हुआ हो। १२. यदि ज्ञान बीज उर्वर ज़मीन पर पड़ा है तो अंकुरित होकर रहेगा। १३. जब चेतना का स्तर बढ़ जाता है, संचित ऊर्जा को सही दिशा देना और नया लक्ष्य निर्धारण करना आवश्यक है। १४. जो कुछ नहीं जानते और जो सब कुछ जानते हैं केवल उन में ही प्रश्न नहीं होते। १५. जब ज्ञान होता है तब प्रश्नों का स्थान उत्तर ने लेता है। १६. एक बुद्धिहीन मूढ़ व्यक्ति इतना नुक़सान नहीं पहुँचा सकता जीतना एक बुद्धिमान अज्ञानी व्यक्ति पहुँचा सकता है। १७. वो जानना चाहिए जिसको जानने से जानने के लिए और कुछ नहीं बचता। वही सबसे सरल भी है। १८. ज्ञानमार्ग प्रगतिशील मार्ग नहीं है, या तो प्रगति होगा या तो नहीं होगा। ये अपनी परम अवस्था तक पहुँचने का सीधा मार्ग है। यहाँ ज्ञान और अध्यात्म का अंत है। १९. ज्ञान का ख़रीद बिक्री नहीं होता, ना ही ज्ञान किसी के नियन्त्रण में है। ज्ञान सब के लिए है, सत्य जानना सभी का जन्मसिद्ध अधिकार है। २०. ज्ञान में कोई छोटा बड़ा नहीं होता, सब बराबर है। २१. ज्ञानमार्ग में नकारात्मक ज्ञान उपयोगी है। नकारात्मक ज्ञान ही अज्ञान का नाश करता है। अज्ञान अक्सर सकारात्मक ज्ञान के रुप में पाया जाता है। २२. ज्ञानमार्ग में अपरोक्ष अनुभव और तर्क ही ज्ञान के दो साधन है। २३. जिसका अनुभव नहीं होता उसका ज्ञान भी संभव नहीं है। २४. जब तक सत्य का ज्ञान नहीं होता तब तक जागृति नहीं होती। २५. अज्ञान का सबसे बड़ा कारण मतारोपण है, जो सामान्य व्यक्ति में आजीवन नहीं छुटता। २६. व्यक्ति अपनी बुद्धि के स्तर अनुसार ही सत्य को समझता है और परिभाषित करता है। इसीलिए परम सत्य को जानने के लिए ज्ञान के बहुस्तरीय चरण अनुसार गुजरना पड़ता है। २७. सभी दुःखों का कारण अज्ञान है। ज्ञान ही मुक्ति दिलाता है। *** क्रमशः
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