Wise Words
घर
आदित्य मिश्रा
साधो ! घर तोरा नींव विहीना पांच दिवार और एक छप्पर पांच कपाट खुले हैं ता पर ग्यारह जोरि धरे भुंइ मांही तेहि ही घर कहि दीन्हा साधो ! घर तोरा नींव विहीना घर आई व्याही नई दुलहिन सकल बराती चीन्हे गिन गिन मगन भई ससुरार मं आ के दुलहे बस नहिं चीन्हा साधो ! घर तोरा नींव विहीना समय पाय ग्यारह अब दरकत असगुन से दुलहिन है तरपत घर मोरा छूटय तौ कहां जाऊं बेवा जस खुद कीन्हा साधो ! घर तोरा नींव विहीना जोड नसाय तो घर कहां पावै तबहूं कछु तो छूटि ही जावै घर तो भयो विलीन ढहत ही होय न गगन विलीना साधो ! घर तोरा नींव विहीना भावार्थ : साधौ ! तुम्हारा घर बिना नींव का है । पांच कर्मेंद्रिय, पांच ज्ञानेंद्रिय और मन का जोड है ये ! और इस जोड को तुम मेरा घर ( देह, मन ) कह रही हो । इस घर में तुम व्याह कर आई उस दुलहिन ( माया ) जैसी हो, जो ससुराल में आकर इतनी मुग्ध हो गई है कि बरातियों ( सगे संबंधियों ) को तो पहचानती है पर दूल्हे को नहीं । समय बीतने पर ग्यारह का ये जोड जब जर्जर होने लगा तो भय से तुम तडपने लगी हो कि घर छूटने पर जाऊंगी कहां ! तुमने दूल्हे को न पहचान खुद को बेवा सा कर लिया है । जोड नष्ट हो गया तो घर कहां रहेगा, लेकिन फिर भी कुछ तो शेष रहेगा । जोड के ढहते घर तो विलीन हो गया लेकिन आकाश तो तब भी रहा ।
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