Wise Words
दरश
आदित्य मिश्रा
साधो ! ई अंखियां बेइमानी आपन नहीं आन पतियावै जंह जंह जाय संग लै धावै मन का धरत कुसंग न छोडत करत रहत मनमानी साधो ! ई अंखियां बेइमानी काम साज आपन नहिं पावत औरन के गुन दोख दिखावत देखत नहीं एक होइ कबहूं बांट बांट बतियानी साधो ! ई अंखियां बेइमानी सोहत मन तो नजर न फेरत मन नहिं सोहत नजर तरेरत आपहिं देखत पूछत मन से उहि की कहत जुबानी साधो ! ई अंखियां बेइमानी ज्यों दरपन मंह झलके मूरत तुम कस देखत नहिं वहि सूरत दरस परस की छोड लालसा सुन ओ दरस दिवानी साधो ! ई अंखियां बेइमानी भावार्थ : ये आंखें सच नहीं दिखातीं स्वयं की नहीं दूसरे (आन) की बात मानती (पतियावै) हैं । जहां जहां दौडती (धावै) जाती हैं, वहां वहां मन के साथ (धरत) जाती हैं । मन के कुसंग से मन के जैसा कहती हैं । अपना काम सही ढंग (साज) से नहीं कर पातीं, और दूसरों के (औरन) के गुण दोष दिखाती हैं । एक जैसा नहीं देखतीं भेद (बांट बांट) कर बताती (बतियानी) हैं । जो मन को अच्छा (सोहत) लगता है आंखे उससे लिप्त (नजर न फेरत) हो उसे अच्छा देखती हैं और जो मन को अच्छा नहीं लगता उसे विरोध भाव (तरेरत) से देखती हैं । खुद (आपहिं) देख कर नहीं मन से पूछ कर उसकी (उहि) जबान (जुबानी) बोलती हैं । जैसे दर्पण के अंदर (मंह) चित्र (मूरत) झलकता है तुम वैसा (कस) या उस तरीके से (सूरत ) न देख दृश्य (दरस) को छूने (परस) की इच्छा (लालसा) से मत देखो । सुनो ! दृश्य ( दरस ) से लिप्तता (दिवानी) छोड दो।
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