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आध्यात्मिक प्रगति के चिह्न
तरुण प्रधान
*यह लेख ज्ञान मार्ग के दृष्टिकोण से आध्यात्मिक प्रगति के सामान्य चिह्नों का विवरण प्रस्तुत करता है। यह अन्य मार्गों पर लागू नहीं होगा।* ## मैं कैसे जानूँ कि मैं प्रगति कर रहा/रही हूँ? बहुत सरल है - यदि आप अपने आध्यात्मिक लक्ष्य के निकट पहुँच रहे हैं, तो आप प्रगति कर रहे हैं। यह प्रश्न केवल तभी उठता है जब कोई स्पष्ट लक्ष्य न हो। ज्ञान मार्ग में लक्ष्य है - अज्ञान का पूर्ण विनाश। यहाँ अज्ञान का अर्थ है - अंधविश्वास, सामाजिक संस्कार, अंधानुकरण, पूर्वाग्रह, मान्यताएं आदि - वे सभी बातें जिन्हें बिना प्रमाण के सत्य मान लिया गया हो। यदि ये सब नष्ट हो रहे हैं, तो आप प्रगति कर रहे हैं। यदि कोई स्पष्ट आध्यात्मिक लक्ष्य नहीं है, तो आप कुछ भी करें, प्रगति नहीं होगी। यदि कोई गंतव्य नहीं है, तो आप कहीं भी जाएँ, भटकाव ही रहेगा। कभी-कभी साधक कुछ अनुभवों या घटनाओं को प्रगति का चिह्न मान लेते हैं। परंतु यह केवल भ्रम है। दूसरा, यदि सही मार्ग या मार्गदर्शक नहीं है, तो प्रगति संभव नहीं। यदि प्रगति या उसकी मात्रा को लेकर संदेह हो, तो अपने गुरु या मार्गदर्शक से परामर्श करना उत्तम है। वे अपने दीर्घ अनुभव के कारण आपकी स्थिति को आपसे बेहतर समझ सकते हैं। यदि कोई मार्ग या गुरु नहीं है, तो पहला कदम मार्ग और गुरु प्राप्त करना है। यही अपने आप में एक बड़ी प्रगति है। इसके पश्चात यात्रा सरल और तीव्र हो जाती है। ## प्रगति के क्या चिह्न हैं? सामान्यतः एक नए साधक को यह समझ नहीं होती कि आध्यात्मिक प्रगति का "अनुभव" कैसा होता है। अतः यहाँ कुछ चिह्न दिए गए हैं जो आपको पहचानने में सहायता करेंगे। परंतु याद रखें ये सभी पर लागू नहीं होते। कुछ आपमें दिख सकते हैं, कुछ नहीं। ये नियम नहीं हैं, केवल सामान्य प्रेक्षण हैं। अंतिम मूल्यांकन सदैव आपके गुरु द्वारा ही होता है। **साक्षीभाव** आपके वास्तविक स्वरूप और संसार की मायावी प्रकृति का ज्ञान स्थिर हो जाएगा। आप ज्ञान में अधिकाधिक स्थित रहेंगे, और अज्ञान या अज्ञानपूर्ण विचार समाप्त हो जाएँगे। **शांति** आपके विचार, भावनाएँ, वाणी और कर्म शांत हो जाएँगे। केवल आवश्यक घटित होगा। चिंता, व्यग्रता, अशांति, संदेह, प्रश्न आदि कम हो जाएँगे। **आनंद** आप स्वाभाविक रूप से आनंदित रहेंगे। बिना किसी प्रयास के, सभी परिस्थितियों में समभाव रहेंगे। **हर्ष** आप वस्तुओं, लोगों या उपलब्धियों, जो पहले आपको प्रसन्न करते थे, के बिना भी प्रसन्नचित्त रहेंगे। सुख के लिए किसी पर निर्भर नहीं रहेंगे। **स्वतंत्रता** आप स्वतंत्र जीवन का आनंद लेंगे। आप वह करेंगे जो आपको पसंद है, न कि वह जो आप पर थोपा गया हो। वास्तविक बंधन मानसिक है, और ज्ञान एवं निरंतर साक्षीभाव के अभ्यास से यह टूट जाएगा। **प्रज्ञा** आपकी समग्र बुद्धिमत्ता बहुत बढ़ जाएगी। इसका अर्थ यह नहीं कि आप रातोंरात वैज्ञानिक या गणितज्ञ बन जाएँगे, बल्कि आपके दैनिक कार्य और निर्णय बुद्धिमत्ता से भरे होंगे। आप अधिक भूलेंगे नहीं। स्पष्टता प्राप्त होगी। **सरलता** आप सीखेंगे कि "कम ही अधिक है"। आप अपने जीवन से सभी अनावश्यक वस्तुओं - जैसे वस्तुएँ, लोग, नौकरियाँ, रिश्तेदार आदि - को छोड़ देंगे। आप देखेंगे कि त्याग में आनंद है। **प्रेम और करुणा** ये बढ़ेंगे और सभी प्राणियों के प्रति सार्वभौमिक रूप से अनुभव किए जाएँगे। आप वास्तव में निस्वार्थ प्रेम करना जान जाएँगे। आप दूसरों से प्रेम, साथ या सहायता माँगने के बजाय यह सब देने की इच्छा करेंगे। **स्वावलंबन** आप धीरे-धीरे सभी प्रकार की निर्भरताओं - चाहे वह आर्थिक हो, संबंधों की हो या भावनात्मक - से मुक्त हो जाएँगे। आप अपने पैरों पर खड़े होंगे। आप किसी भी चीज़ से बंधे नहीं रहेंगे। **वैराग्य** आप अनावश्यक वस्तुओं, लोगों या कर्मों से विरक्त हो जाएँगे। वैराग्य का अर्थ घृणा नहीं है, बल्कि यह है कि सब कुछ ठीक है - न किसी से लगाव, न किसी के पीछे भागना। **ज्ञान** आपको बाहरी सहायता के बिना प्रेरणा और अंतर्दृष्टि प्राप्त होगी। आप अस्तित्व के रहस्यों को स्वयं खोज लेंगे। सभी उत्तर बिना प्रयास के आपके सामने प्रकट होंगे। **प्रतिभा और क्षमताएँ** ये आपके दैनिक क्रियाकलापों में अभिव्यक्त होंगी। आप अपने आंतरिक आनंद को कला और कौशल के माध्यम से व्यक्त करेंगे। आपकी क्षमताएँ दूसरों को भी आनंदित करेंगी। **शुद्धि** सभी प्रकार की अशुद्धियाँ - शारीरिक या मानसिक, धीरे-धीरे दूर हो जाएँगी। साक्षीभाव में जीवनयापन के परिणामस्वरूप शुद्धि होती है, और यह आध्यात्मिक प्रगति को गति देती है। **सौंदर्य और स्वास्थ्य** शुद्धि के प्रत्यक्ष परिणामस्वरूप आपका स्वास्थ्य और सौंदर्य बढ़ेगा। आपके प्रेमपूर्ण स्वभाव और बुद्धिमत्ता के कारण लोग आपकी ओर आकर्षित होंगे। **मार्गदर्शन** आप किसी के भी व्यक्तिगत या आध्यात्मिक मामलों में मार्गदर्शन कर सकेंगे। आप ज्ञान को सहजता से संप्रेषित कर सकेंगे। आप दूसरों की कठिनाइयों को समझेंगे और उनका समाधान कर सकेंगे। आपकी निःस्वार्थ सेवा नए साधकों को आकर्षित करेगी। ## किन्हें प्रगति का चिह्न नहीं माना जा सकता? **असामान्य अनुभव** कोई भी असामान्य अनुभव जैसे दिव्य दृष्टि, संवेदनाएँ, चमत्कार आदि, प्रगति का चिह्न नहीं हैं। ये सभी में नहीं होते और बिना इनके भी प्रगति संभव है। कुछ दुर्लभ मामलों में ये प्रगति के अतिरिक्त प्रभाव हो सकते हैं, परंतु ये होना आवश्यक नहीं। **असाधारण स्वप्न** स्वप्न प्रायः आध्यात्मिक प्रगति का संकेत नहीं देते। प्रगति जागृत अवस्था में स्पष्ट दिखती है, किसी अस्पष्ट या भ्रामक स्वप्न में नहीं। स्वप्न का कोई भी अर्थ हो सकता है, अतः उनके आधार पर प्रगति का आकलन न करें। **वाद-विवाद की प्रवृत्ति** बहस करने, अपने ज्ञान या उपलब्धियों का प्रदर्शन करने की प्रवृत्ति प्रगति नहीं, बल्कि अवरोध है। सदैव सही साबित होने की इच्छा या दूसरों को गलत ठहराना अहंकार है। बहस में जीतने पर भी आपकी प्रगति नहीं होती। और हारने पर सीख के बजाय आपमें कट्टरता, क्रोध और कडवाहट आती है, और अपयश होता है, अन्य साधक या शिक्षक दूरी बना लेते हैं । **किताबी ज्ञान** सूचनाएँ एकत्र करके स्मृति में भरना वास्तविक ज्ञान नहीं है। यह आपको केवल एक "तोता" या "हार्ड ड्राइव" बना देता है। ज्ञान सीधे अनुभव से आता है और एक अच्छे शिक्षक की आवश्यकता होती है। पुस्तकें आरंभ में सहायक हैं, परंतु आध्यात्मिक प्रगति का अर्थ पूर्ण रूपांतरण है, जो केवल साधना से होगा। **अजीब संयोग** कभी-कभी कोई असामान्य संयोग प्रगति का संकेत मान लिया जाता है, या कोई बुरा संयोग गलत मार्ग पर होने का संकेत। परंतु यह अंधविश्वास है। यादृच्छिक घटनाएँ आपकी प्रगति को निर्धारित नहीं करतीं। आध्यात्मिकता यादृच्छिक नहीं, बल्कि तर्कसंगत और व्यवस्थित है, आपको प्रत्यक्ष परिणाम दिखेंगे। **असामान्य लक्षण** शरीर में असामान्य लक्षण प्रगति का संकेत नहीं हैं। कभी-कभी शुद्धि के कारण ये होते हैं और समाप्त हो जाते हैं। यदि ये पीड़ादायक और लंबे समय तक रहें, तो ये किसी रोग का संकेत हो सकते हैं। यदि ये किसी साधना के कारण हों, तो उसे रोक दें और गुरु से परामर्श करें। असामान्य लक्षणों को प्रगति का चिह्न मानकर स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ न बढ़ाएं। **भाग्यशाली होना** भौतिक वस्तुएँ प्राप्त करना, संयोगवश अच्छी घटनाएँ होना, नए मित्र मिलना आदि आध्यात्मिक प्रगति का संकेत नहीं हैं। **पशुओं का दिखना** साँप, हंस, उल्लू या काली बिल्ली दिखने का अर्थ यह नहीं कि आपने बहुत प्रगति कर ली है। आध्यात्मिक प्रगति वास्तव में ऐसी मूर्खताओं और अंधविश्वासों को समाप्त कर देती है। **संबंध** पुराने संबंधों का टूटना प्रगति का परिणाम हो सकता है, परंतु नए संबंध बनाना या मौजूदा संबंधों में सुधार प्रगति का संकेत नहीं है। निर्भरता-आधारित संबंध बनाना प्रगति के मंद होने का संकेत है। **नौकरियाँ** नौकरी छूटना या नई नौकरी मिलना कुछ नहीं बताता। हालाँकि, यदि आप अपने प्रयासों और कौशल से कोई पसंदीदा नौकरी पाते हैं या जानबूझकर बुरी नौकरी छोड़ते हैं, तो यह प्रगति हो सकती है। **भौतिक लाभ** ये आपकी प्रगति को रोकेंगे नहीं, परंतु इनसे आध्यात्मिक उन्नति का आकलन नहीं होता। सामान्यतः भौतिक लाभ या हानि के प्रति वैराग्य दिखता है। इनके प्रति आसक्ति, घृणा या इनके पीछे भागना पतन का चिह्न है। **विचारों को रोकना** विचारों या इच्छाओं को जबरदस्ती या मनमानी साधना से दबाना प्रगति के बजाय हानि पहुँचाता है। यदि विचार स्वाभाविक रूप से रुकते और आवश्यकतानुसार आते हैं, तो यह अच्छा चिह्न है। **मानसिक अवस्थाएँ** किसी विशेष मानसिक अवस्था को प्राप्त करना प्रगति नहीं है। ये आती-जाती रहती हैं। सभी अवस्थाओं में समभाव रहना शांति लाता है और प्रगति को गति देता है। किसी अजीब मानसिक अवस्था को जबरन लाना अप्राकृतिक और हानिकारक है, खासकर जब यह उचित मार्ग के बिना या गुरु से परामर्श किए बिना किया जाए। यह मानना कि केवल किसी जादुई मानसिक अवस्था को प्राप्त करने से ही प्रगति होगी, अज्ञानता है। आप पहले से ही परम और सम्पूर्ण हैं। **तुलना** दूसरों के साथ अपनी प्रगति की तुलना करना अक्सर सही आकलन नहीं देता। प्रत्येक व्यक्ति अद्वितीय है और सभी अपनी क्षमतानुसार प्रगति करते हैंकोई तेज़, कोई धीमे, किसी का पतन भी होगा। इसी प्रकार, दूसरों की प्रगति या कमियों पर टिप्पणी करना अपरिपक्वता और अहंकार का चिह्न है। यह गुरु का कार्य है। आपका कार्य केवल अपनी प्रगति सुनिश्चित करना है, दूसरों का मूल्यांकन करना नहीं। ## निष्कर्ष संक्षेप में, एक बुद्धिमान साधक/साधिका को आध्यात्मिक प्रगति के अर्थ के विषय में भ्रमित नहीं होना चाहिए। आपको किसी भी प्रगति के मापदंड पर यहाँ-वहाँ सुनकर या पढ़कर अंधविश्वास नहीं करना चाहिए। अपने मार्ग और साधना को अच्छी तरह जानें। उसके सटीक फलों को समझें, अपनी प्रगति का आकलन उसी के अनुसार करें, जुआ न खेलें। अनुमान लगाने के बजाय अपने गुरु से पूछना सर्वोत्तम है। आशा है यह संक्षिप्त लेख सभी साधकों के लिए उपयोगी होगा और वे अपने आध्यात्मिक लक्ष्यों को सरलता व शीघ्रता से प्राप्त करेंगे तथा सभी अपनी उपलब्धियों का आनंद लेंगे। ## सहायक संदर्भ - आध्यात्मिक मार्ग पर कैसे आरंभ करें: https://gyanmarg.guru/start.php?lang=hi - गुरु कैसे खोजें: https://gyanmarg.guru/ww/view.php?id=62745151&con=67635016 - मनमानी साधनाएँ: https://gyanmarg.guru/ww/view.php?id=62745151&con=60284807 - ज्ञान सूत्र - आध्यात्मिकता में नवप्रवर्तकों के लिए विस्तृत मार्गदर्शिका https://www.youtube.com/playlist?list=PLGIXB-TUE6CS2WCom2WMSqE88s3XY_qwx
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