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जगत लीला
जानकी
<br><br> <div class="ui image"> <img width="500px" src="https://i.natgeofe.com/n/fc446eda-8bec-49eb-b190-437e9695623d/visions-china-harbin-international-ice-festival.jpg?w=1280&h=948" alt="Any Width"> </div> <br><br> जगत् ये मुझे ठोस सत्य लगा था। देखूँ मैं यथार्थ लिखूँ एक गाथा॥ ये संसार नतीजा परिकल्पना के॥ जो जिसके अनुकूल दिखाते हैं आँखें॥ गति नाद का चक्र में जो चलेगा। टूटेगा, जुटेगा, स्मृति में जमेगा॥ हवा, धूप, मिट्टी, ये जंगल ये पानी। सभी नाद गति के रचे हैं कहानी॥ अनंत गतिविधियों का अनुक्रम। नियमित होने से दिशा, लक्ष्य का भ्रम॥ स्वयोजन, विनाशी, जटिल, प्रतिकृति। चले ढेर प्रक्रिया धरे रुप वृत्ति॥ यही वृत्ति का जो समूह बना जीव। बड़ा था अहम भाव मिला शून्यता नींव॥ अणु, कोशिका जम गया स्थूल बना लोक। चला कर्म चक्र ये मन कल्पना लोक॥ स्वचालित है लेकिन मेरा मान लेता। स्वरक्षण के ख़ातिर अलग जान लेता॥ स्वविस्तार वृत्ति प्रतिकृति बनता। वही दोहराव से दिखेगा सघनता॥ धरा, चन्द्र, सूर्य ये ग्रहों सितारे। नतीजा क्रिया का स्मृति छाप सारे॥ ये है वासना का प्रपंच, लीला, खेल। फँसा है मनुष्य अहम का बना जेल॥ यही है ज़रूरी जीवन के गति में। चलें संतुलन में क्षति है अति में॥ संभावना से सृजन और विलीनता। हरेक चीज़ नश्वर हरेक पल नवीनता॥ चलेगा हमेशा यही सिलसिला में। मेरा तत्व मुक्त ये माया लीला में॥ निरंतर है चक्र विलय और सृष्टि। है देखना ज़रूरी अलग करके दृष्टि॥ ***
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