अवधूत गीता




अवधूत श्री दत्तात्रेय द्वारा रचित

व्याख्या और टीप तरुण प्रधान द्वारा

पाठ सोनम अग्रवाल द्वारा

वेब संस्करण २०२१
प्रस्तावना

नमस्ते,

मुझे इस विलक्षण गीता का एक नया संस्करण वेब ऐप प्रारूप में प्रस्तुत करते हुए बहुत प्रसन्नता हो रही है। इसका अधिकांश भाग फिर से लिखा गया है और अब यह हिंदी में भी उपलब्ध है।

मैं कई स्रोतों, कई शिक्षकों से ग्रहण करता हूं, और इस महान पाठ की यह व्याख्या केवल मेरी अपनी समझ को व्यक्त करने का एक विनम्र प्रयास है। मेरे द्वारा की गई किसी भी गलती के लिए मैं क्षमाप्रार्थी हूं।

प्रारूप इस प्रकार है - मूल संस्कृत श्लोक के बाद उसकी व्याख्या की जाती है और उसके बाद टिप्पणी आती है।

यह एक गीत है, इसलिए इसमें काफी दोहराव है। प्रायः प्रत्येक पद में एक ही पंक्ति दोहराई जाती है। अक्सर एक ही विचार और विवरण सभी जगह दोहराए जाते हैं। मुझे लगता है कि इसका स्मरण आसान बनाने के लिए ऐसा करना जरूरी था। गीत का एक प्रारूप और दोहराव वाली कविता स्मृतिबद्ध करना आसान है, हालांकि, इसकी समझ के बारे में कोई फर्क नहीं पड़ता है, जो प्रत्यक्ष अनुभवों से आती है और श्लोक जिसकी ओर इंगित करते हैं। मैंने कुछ दोहराए जाने वाले वाक्यों को यथावत रखा है, इसलिए नहीं कि वे समझने में सहायता करते हैं बल्कि मूल पाठ की शैली ऐसी है।

मूल पाठ लेखन शैली में बहुत विनम्र है। ऐसा लगता है कि यह एक आम आदमी के लिए लिखा गया था। इससे प्रेरणा लेकर मैंने सरल शब्दों और समसामयिक भाषा का प्रयोग किया है, कुछ भी रहस्यमई या गूढ़ नहीं रखा गया।

मैं पाठकों से आग्रह करता हूं कि न केवल इसका पाठ करें और न ही केवल इसे सुनें, बल्कि शांति से बैठें और प्रत्येक श्लोक पर चिंतन करें। जानिए दत्तात्रेय ऐसा क्यों कह रहे हैं। इसे ध्यान से पढ़ने और आत्मनिरीक्षण करने से आवश्यक अनुभव और ज्ञान प्राप्त होगा।

मैं उन सभी गुरुजनों का आभारी हूं जिनके कारण यह ज्ञान प्रकट हुआ है।

और अंत में मैं सोनम का आभारी हूं जिन्होंने इस गीता को अपनी सुंदर और स्पष्ट वाणी में प्रस्तुत किया।



तरुण प्रधान
नवंबर २०२१, पुणे, भारत

शब्दावली

नीचे कुछ संस्कृत शब्द और उनके अर्थ हैं, जो इस शास्त्र में प्रायः उपयोग में आते हैं।

आत्मन् अनुभवकर्ता, साक्षी, दृष्टा, या शून्यता जो सभी अनुभवों का अनुभवकर्ता है, मेरा तत्व है। जैसा कि अद्वैत वेदांत में उल्लेख किया गया है।
शिवम् शिव, आत्मन् का समानार्थी। जैसा कि शैव दर्शन में वर्णित है।
पुरुष आत्मन् का समानार्थी। जैसा कि सांख्य में वर्णित है।
ब्रह्मन् अस्तित्व, सम्पूर्णता, समग्रता, जो कुछ भी है, सब कुछ एक साथ, एकता के रूप में लिया जाता है, वह सब जो अस्तित्व में है, ज्ञात, अज्ञात और अज्ञेय। आत्मन् ही ब्रह्मन् है।
ईश्वर प्रकट अस्तित्व। वह सब जो अनुभव किया जा सकता है। जैसा कि वेदांत में उल्लेख किया गया है। विश्वचित्त। शक्ति या देवी , जैसा शैव या तंत्र मार्ग में मिलता है।
शक्ति ईश्वर के समान, वह ऊर्जा जो रचना करती है। जैसा कि शैव दर्शन में वर्णित है।
प्रकृति जो प्रकट है। सृष्टि। जैसा कि सांख्य में वर्णित है।
चित्त स्मृति या परतीय नादरचना, संस्कारों का संग्रह, जहां ज्ञान के साथ-साथ अज्ञान स्मृति या छाप के रूप में रहता है।
जीव चित्त का वह भाग जो भौतिक शरीर से सम्बंधित है और जो जन्म और मरण के चक्र में है।
मन मनस, चित्त का वह भाग जो सोचता है। विचार करने की योग्यता।
बुद्धि चित्त का वह भाग जिसमे ज्ञान, तर्क, समझ, विवेक, कलाओं आदि की योग्यता है।
इंद्रिय चित्त का वह भाग जो जगत का या मनोशरीर के अनुभव का माध्यम है।
तत्त्व सार, सत्य, वास्तविकता। जो कभी नहीं बदलता।
निरंतर शाश्वत, जो बिना अंत या आरंभ के चलता रहता है।
निराकारः जिसका आकार न हो, अप्रकट।
निरंजनः साफ, कोई अशुद्धता न हो।
निर्मलः अशुद्धियों से मुक्त। गुणरहित।
शुद्धः गुणरहित। अनुपलब्धि। ये शब्द केवल अनुपस्थिति, खालीपन की ओर संकेत करते हैं।
छापने योग्य संस्करण