त्रिदिवसीय ज्ञानमार्ग कार्यक्रम - मैथिली

ज्ञानमार्ग से
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त्रिदिवसीय ज्ञानमार्ग कार्यक्रम

यी पाठ्यक्रम ज्ञानमार्ग पथ के संक्षिप्त परिचय छै। अईके द्वारा मुख्यत तीन प्रकार के शिक्षा प्राप्त होइछै – आत्मज्ञान, माया के ज्ञान आ ब्रम्हज्ञान (अद्वैत) यी ज्ञान गुरु-शिष्य परम्परा के अनुसार मौलिक रुप से गुरु द्वारा शिष्य के सीधा दियल जाइछै। यी विधि कोनो व्याख्या नै अई, बल्कि एक बातचित छै। वास्तविक बातचित कनि अलग होइ सकै छै, छात्र के समझ के आधार पर नीचा देलगेल पाठ बस केवल एक दिशानिर्देश मात्रे छै। सब दिन एक विषय पर चर्चा होइ छै जैमे लगभग ४५ से ६० मिनेट समय लगै छै। केवल एक योग्य शिक्षक या एक छात्र जे यी ज्ञानमार्ग कार्यक्रम पुरा कलेने क्षथिन उहे यी कार्यक्रम करेलेल सक्षम होइ सकै क्षथिन् आ जे कार्यक्रम के चरण ७ पर छैन से हो साधक यी कार्यक्रम करवा सकै छथिन्। यी सेवा पुर्णरुप स निःशुल्क छै आ फोन या इंटरनेट पर दियल जाइछै।

सावधानि

यी ज्ञान केवल इच्छुक आ रुचि राखबला,विशेष रुप से ज्ञान के साधक, या आध्यात्मिक पथ पर चलवाला आदमीकेहि देल जाइछै। साधारण आदमी या कम बुद्धि भेल आदमी के यी शिक्षा नै दियके चाहि। प्रतिभाशाली या जिज्ञासु बच्चा के भी यी शिक्षा देल जा सकैय्। कोनो भी अवस्था मे यी ज्ञान वई व्यक्ति के नै दियके चाही जे मानसिक या शारीरिक रुप से सक्षम नै छै, या संकिर्ण विचार रखैत होई। यी शिक्षा निःशुल्क होइ छै। निःशुल्क दियके चाही।


परिचय : ज्ञानमार्ग

ज्ञानमार्ग ज्ञान पर समर्पित एक आध्यात्मिक मार्ग छै, आ यी मार्ग पर चललास अज्ञान के नाश होइत अइ। यी जाइनक की सब किसिम के अज्ञानता बंधन दुख के मुल कारण छै, एकरा उचित प्रशिक्षण और अनुभवी शिक्षक के निगरानी मे ही ग्रहण करके चाही। यी एक प्रकार के जीवन शैली छै, जैमे हम सब दिन ज्ञान मे रहै छि। यी एगो सिधा सरल आ अंतिम मार्ग छै। अंततः यी एगो मार्गहीन मार्ग छै।

ज्ञान के साधन

ज्ञान केना प्राप्त करु ? ज्ञान प्राप्त करके मात्रे दुगो साधन छै:-

  1. अपरोक्ष अनुभव (प्रत्यक्ष प्रमाण)
  2. तर्क (अनुमान)

ज्ञानमार्ग के फल

  • आत्मज्ञान
  • ब्रह्म्ज्ञान
  • यि जानकारी भजनाई कि सब किछ भ्रम छै।
  • पुर्ण स्वतन्त्रता
  • तृप्ति
  • मुक्ति
  • बहुत जल्दी अध्यात्मिक विकास
  • और भी बहुत लाभ मिलै छै।

ज्ञान के प्रकार

ज्ञान तीन किसिम के होइ छै:-

  1. स्वयं के ज्ञान या आत्मज्ञा। हम के छि, या हम कि छि?
  2. संसार जगत या माया के ज्ञान। कि यि संसार जगत वास्तविक सहिमे सत्य छै ?
  3. एकता के ज्ञान या ब्रम्हज्ञान्। सब किछ एक केना छै ?


पहिल दिन : आत्मज्ञान

चलु आब हम आरम्भ करै छि यि प्रश्न से कि हम के छि ?

हमर तत्व कि अइ ? एकरा कोना जानल जा सकैय ? हम बस उहे जाइन सकै छि जे हमर अपरोक्ष अनुभव मे अइ या जेकरा तर्क से जानल जा सकैय। वकरा बाद यि जांच के चाहे कि जे भि हम जनैछि उ हम छि कि नै ?

यि प्रश्न अपनेस एक के बाद एक पुछ्ल जा सकैय ?

बस्तु

अपरोक्ष अनुभव आ तर्क के आधार पर (माइनके) बस्तु से हमर संबंध निम्न लिखित प्रश्न से जानल जा सकैय।

  • अभि हमर अगाडी मे कि छै ?
  • कि हम बस्तु के देखैछि या बस्तु हमरा देखरहल अइ ? कि अइ मे कोनो शंखा अइछ ?
  • कि हम कहसकै छि कि हम कोनो बस्तु नै छि ? हम बस्तु के देख सकै छि, कोनो बस्तु हमरा नै देख सकैय। अइ से यि स्पष्ट भजाइ छै कि हम कोनो बस्तु नै होइ सकैछि।
  • अइ तरिका से अपन अपरोक्ष अनुभव से कहसकै छि कि जे चिज हम देख सकैछि उ हम नै होइसकै छि। अइ तरिकास सुइनके, छुक आ सोर्इचके सब पर यिहे बात लागु होइ छै।
  • आब यदि बस्तु बदैल देलजाय, तहन कि कहबै ?
  • कि आहा कहबै कि बस्तु बदैलगेलै या आहा कहबै कि हम बदैलगेली ?
  • यदि बस्तु बदैल गेलै, हम नै बद्लली तब अपन प्रत्येक्ष अनुभव से हम कहिसकै छि कि,यदि बस्तु बदलै छै तहन उ बस्तु हम नै छि।
  • बस्तु जे छ्लै,बदैल गेलै,तैयो हम वहिय छि।

आब हम दुटा महत्वपुर्ण नियम पर आरहल छि:-

  1. हम जेकर भि अनुभव कैरसकै छि, हम उ नै छि।
  2. यदि कुछो बदलै छै उ हम नै छि।

कि यि दुटा नियम पर कोनो शंखा अइ ? यि बहुत महत्वपुर्ण छै कि यि दुनु नियम के निकस सत्यापित करल जाए।

आब हमरा यि कहकेलेल कि यि हम नै छि, ताइकेलेल सब चिज के जांच करके जरुरी नै छै, हम अइय तर्क के उपयोग कर सकैछि, कोनो भि चिज हम नै होइ सकैछि।

परिणाम:- संसार मे कोनो भि बस्तु हम नै छि। हमरा बस्तुमे नै खोजल जासकैय्।

शरीर

अपरोक्ष अनुभव आ तर्क के आधार पर शरीर से हमर संबंध कि अइ ?

  • चलुआब अपना सब देह(शरीर) के देखै छि आब दुनु नियम के माइन के अपन अनुभव आ तर्क के उपयोग करै छि।
  • कि आहा शरीर(देह) के देखै छि कि देह आहा के देखैय।
  • दुनु नियम के उपयोग कैलाके बाद यि जानल जाइ छै कि यदि हम शरीर (देह) के अनुभव करसकै छि तब यि शरीर(देह) हम नै छि। यदि यि बदैल रहल छै तैयो हम शरीर (देह) नै छि। देह के कोनो अंग हम नै छि। कियाकि सब चिज बदैल रहल अइछ। यिहे तर्क देह के कोनो हिस्सा पर लागु होइछै।

परिणाम:- शरीर(देह) के कोनो अंग हम नै छि या हम यि शरीर(देह) नै छि।

संवेदना

अपरोक्ष अनुभव आ तर्क के आधार पर संवेदना से हमर संबंध कि अइ ?

  • आइनाये जे हम देखै छि ओकरा देखके सहा आउ हमसब देह के संवेदना सब पर तहन ध्यान दै छि। जे हम महसुस करै छि, जेना दर्द,भुख,नींद,थकान आदि। चलु देह के दर्द के देखै छि। कि आहा दर्द के अनुभव करहल छि या दर्द आहा के अनुभव करहल अइ ?
  • कि दर्द अबैजाइ छै ? कि उ बदलै छै ?
  • दुनु नियम के प्रयोग करु आ जांचु कि हम दर्द छि ?
  • यदि उत्तर यि अइ कि हम प्रत्यक्ष अनुभव के आधार पर दर्द नै छि,तहन हम तर्क के आधार पर कह सकै छि, कि शरीर(देह) के कोनो किसिम के संवेदना हम नै छि।

परिणाम:- हम कोनो संवेदना सब नै छि। संवेदना सब मे कोनो संवेदना हम नै छि।

भावनाए

कि मन पिता के शांत भजाइ छै ? दुनु नियम के प्रयोग करु आ जांचु कि आहा पित्त छि कि नै ?

  • यदि अपरोक्ष अनुभव के प्रयोग कके यि आइत कि हम पित्त नै छि, तब तर्क के प्रयोग कके यि कह सकैछि कि भावना मे से कोनो भावना हम नैछि।

परिणाम:- हम भावना नै छि। भावना सब मे से कोनो भावना हम नै छि।

विचार

अपरोक्ष अनुभव आ तर्क के आधार पर विचार से हमर कि संबंध अइ ?

  • कि हम विचार के अनुभव करै छि या विचार हमरा अनुभव करै छै ?
  • हम यि छि हम उ छि, यि विचार भि एक विचार नै अइ?(यि विचार अहम के वृत्ति अइ, जे कोनो चिज के “हम कहै छै यि अहम वृत्ति” हमरा बहुत अनुभव से जोरै छै, आ यिहो विचार अबै छै जाइ छै।
  • कि विचार अबैछै आ चैल जाइछै ? कि यि बदलै छै ?
  • दुनु नियम प्रयोग करु आ जांचु कि, कि विचार हम छि।ईहा तक कि हम जे कहै छि कि हम यि छि हम उ छि। तर्क के आधार पर हम नै छि।

परिणाम:- हम विचार नै छि। विचार मे कोनो विचार हम नै छि।

इच्छा

अपरोक्ष अनुभव आ तर्क के आधार पर ‘ईच्छास’ हमर संबंध कि अइ ?

  • कि हम इच्छा के अनुभव करहल छि या इच्छा हमर अनुभव करहल छै ?
  • कि इच्छा अबैत जाइत रहै छै ?
  • दुनु नियम के प्रयोग करु और जांचु कि, कि हम कोनो इच्छा छि ?

परिणाम:- हम इच्छा नै छि। इच्छा सब मे कोनो इच्छा हम नै छि।

स्मृतिस

अपरोक्ष अनुभव और तर्क के आधार पर‘स्मृतिस’हमर कि संबंध छै ?

  • कि स्मृति अबैत जाइत छै ? कि स्मृति बदैल रहल छै ?
  • जब हम बिसैर जाइछि तहन हम कहैछिअइ कि हम नै छि या हम कहैछिअइ कि हम अपने आपके बिसैर गेल छलि ?
  • कि हमरा याद अइ कि हम एक बरिस पहिले कि लगैने छलौ ? जब हमरा सबके कोनो चिज याद नै रहैय, तहन कि हम कहैछि कि हम नै छि ? या यि कहैछिअइ कि हम अपने आपके बिसैर गेल छलि ? एकर मतलब जब हमरा याद नै अइ कि हम एक बरिस पहिले कि पहिरने छलि, या यदि हम किछ बिसैर गेली तैयो हम वहिय छलि।
  • स्मृति में कि छै ? हमर नाम की अई ? कोई हमर नाम राइख देलखिन आ उहे नाम हमर स्मृति में अंकित छै। हम किछ भि याद करैछि लेकिन ३ स्मृति में से अबैछै। यदि स्मृति हम नैछि तहन हमर नामो हम नैछि। यि बस एगो नाम छै।
  • ओहिना शिक्षा, काम, परिवार, सम्बन्धि, घर, सब चिज स्मृतिये छै। यदि स्मृति चैल्जाई तहन किछ याद नैरहत्। तहन सब चैलजाइत किछ हमर नै रहिजाइत।
  • कि हमर सम्बन्धिके हम अपन स्मृति से नै जनैछि ?
  • यदि स्मृति चैल जाइछै तहन सब खत्म भजाइछै।
  • जाइत, धर्म, राष्ट्रियता सबके जानकारी कहाँ से अबैछै ? कि यि बच्चास दोसर से देल विचार नै छै ? जे दोसर कहैछै। उहे मानैछि।

लेकिन हम किछनैछि।

परिणाम:- हम स्मृति नैछि, आ स्मृति में जे किछ भि छै, हम् से नै होइसकैछि।

लिंग

कि हम पुरुष छि या स्त्री छि? हम केना जनलिअई? स्वभाविक छै कि अपन शरीर के कारण, किया कि दु किसिमके शरीर होइछै। पुरुष के आ स्त्री के। लेकिन यि हमसब पहिनेहि देखलेलि कि हम शरीर नैछि। हम पुरुष छि कि स्त्री यि शरीर के आधार पर बताब सकैछि।

  • यदि यि मान्यता हटादेल जाए तहन हमरा कोनो किसिम के लिंग भेद करके आवश्यकता नैअइ। आब यि सब स्त्रि पुरुष के भेद जे एगो कल्पनॉ कि मातारोपण मात्र छै, जे छुइटगेलै ।इसब ऐगो स्मृति मात्र छै।
  • कि किछ बाकी छै, जे हम कह सकि कि हम छि?
  • हम जेभि सोचने छलि उ सब एगो स्मृति के हिस्सा छले।
  • यदि दुनु नियम के प्रयोग कैल जाए त जन्बै कि हम कोनो स्मृति नै छि।
  • जे तार्किक रुप से हमरा सिखाब लेल प्रेरीत करैछथिन कि कोनो अनुभव हम नै छि। सब अनुभव स्मृति मे संग्रहित छै,यदि स्मृति हम नै छि तहन जे किछ भि अनुभव कर जाइल सकैछै से हो हम नै होइ सकै छि।

परिणाम:- हम कोनो अनुभव नै छि। कोनो अनुभव हम नै छि।

अनुभवकर्ता

आब प्रश्न करु – यदि हम संसार के बस्तु नै छि,नै शरीर छि, नै संवेदना,नै भावना,नै विचार , नै इच्छा नै स्मृति आ नै अनुभव छि, तहन कि तैयो हम छि? यदि कुछ छिते नै छि,तहन सब अनुभवके के देखरहल छै?

हम त अखनो छि। हम सब किछ देख रहल छि। हम हि अनुभवकर्ता छि। हम हि साक्षी छि। अनुभवकर्ता के मात्रे भेलासे जानल जाइ छै। अनुभव कैलासे नै। हम कोनो अनुभव नै छि। कि हम कहियो इकहि सकैछि कि हम अनुभवकर्ता नै छि।

आकार

आउ आब साक्षी के बारे मे जनै छि।

कि हम साक्षी मे कोनो आकार,रुप,रंग,सामग्री,पदार्थ के अनुभव करै छि?

यदि कोनो रुप होइतै तहन आइख ओकरा पकैर लितै।

यदि कोनो रुप छै भि तैयो उ रुप नै छि।

-साक्षी अभि भि छै लेकिन खोज्लास ओइय कुछ नै मिलै छै।साक्षी खाली छै,शुन्य छै, साक्षी के कोनो रंग,आकार,रुप,पदार्थ आदि नै छै।

लेकिन उ अभि भि छै।

-कि साक्षीमे कोनो आयतन,शक्ति,अवस्था,विद्धुत,परमाणु आदि पदार्थ छै ? यि चिज सबके या देखल जा सकैय या त अनुभव कैल जा सकैय। या यि बदैल जाइछै। साक्षी मे ऐहन कोनो भि अनुभव नै कैल जा सकेछै ।

परिणाम:- हम निराकार छि।

परिवर्तन

जहिना कोनो परिवर्तन होइछै हम देख सकै छि, लेकिन नियम 2 कहैछै कि जे बदलै छै,उ हम नै छि ।जे भि परिवर्तन होइछै उ अनित्य होइछै,आ जे नै बदलै छै उ स्थाई होइछै। हम हि छि जे स्थाई छि बाकी सब परिवर्तनशीत छै।

परिणाम:- हम अपरिवर्तनीय छि।

जन्म

हमर जन्म कहिया भेल छल ? जन्म बच्चाके शरीर के निर्माण छै। यि एगो शरीर के जन्म छलै आ आब उ छोट शरीर चैलगेल छै ।एगो शरीर के जन्म भेलै आ हमरा बताइल जाइछै कि हमर जन्म भेलैय।यि शरीर अंग पदार्थ भोजन आदिके संग्रह छै। हम यि नै कह सकैछि कि हम जन्म लेने छलि,लेकिन तैयो हम त छि। जन्म परिवर्तन के एगो प्रक्रिया मात्र छै लेकिन हम अपरिवर्तनशील छि,ताइलेल हमर जन्म असम्भव छै।

कोनो भि जन्म प्रमाण पत्र हमरा यिसब नै बतासकैय कि हमर(साक्षी) के जन्म कहिया भेल छलै साक्षीमे ऐहन किछ नै छै जे रुप धारण कर सकै छै, उ निराकारा छै, ताइलेल उ जन्म नै लिय सकैछै। खाली देह जन्मै छै, हम(साक्षी) नै। ताइलेल हमर(साक्षी)के जन्म होनाइ असंभव छै।

परिणाम:- हम अजन्मा छि,हमर जन्म नै होइसकैय।

आयु आ मृत्यु

कि हम वृद्ध होरहल छि?

यदि हम जन्म लिय नै सकैछि तहन हमर उमेर केना होइ सकैय ? वृद्धा अवस्था परिवर्तन के एगो प्रक्रिया छै। लेकिन हम कहियो नै बदैल सकैछि, ताइलेल हम कहियो वृद्ध नै होबसकैछि।साक्षी मे ऐहन किछ नै छै । जे समय के साथ वृद्ध होइसकैय उ मैर सकैय । गाछ,वृक्ष,जीव आदि जन्मै छै आ मैर जाइछै,माटी फेन माटी मे मिल जाइछै। आदमी के शरीर जन्म लैते रहैछै आ मरैत रहै छै। बस्तु सबके निर्माण, संयोजन आ विघटन होइत रहैछै। किछ शेष नै रहैछै। जे भि जन्म लैछै ओकर मरनाई निश्चित छै। मृत्यु भि एक रुप से दोसर रुप मे परिवर्तन मात्र छै।

मुक्ति आ पुनर्जन्म

यदि हमर जन्म आ मृत्यु नै होइतै तहन कि हमर पुनर्जन्म संभव छै ?

हम कहियो जन्म नैलै छि हम कहियो नै मैर सकै छि। आ हमर कहियो पुनर्जन्म नै होइसकैय। जे बारम्बार जन्म ले रहल छै,उ हम नै छि। परम्परागत रुप से मुक्ति कि छै? यि मान्यता छै कि व्यक्ति के जन्म आ मृत्यु के चक्र से मुक्त होबके आवश्यकता छै। कि हमर फेन से जन्म लेनाई संभव छै? नै! तहन हम अई चक्र से पहिलैस मुक्त छि! अभि अहिठाय हमर मुक्ति संभव छै।

स्वतंत्रता कि छै:- कोनो चिजस बान्हल नै रहनाई ही स्वतंत्रता छै। कि ऐहन किछ छै, जे साक्षी के बाध्य करहल छै ? कि हमर खाइके सुतके,आराम करके जरुरी छै? कि कोई हमरा जेल मे राख सकैय? ऐना कहलजाए त जांच कैलासे, हमरामे कोनो बंधंन आ सीमा नै मिल सकैय। हम असीय छि।

परिणाम:- हम मुक्त,स्वतंत्र,असीम,आ अनंत छि ।

शांति आ आनंद

जब कोनो इच्छा नै कोनो विचार नै कि कोनो भावना नै, किछ नै करके छै तहन कि हम शांत नै छि ? कि कोनो एहन चिज छै जे अइ शांति के भंग कर सकै ? अइय वास्तव मे किछ नै होइछै। सुख आ दुख दुनु के पुरा अभाव छै। अइ अवस्था के परमानंद कहैछै। ई हमर वास्तविक स्वरुप छै।

परिणाम:- हम नित्य,शांत आ आनंदमय छि,जे कहियो नै खत्म होइसकै छै।

प्रेम

यदि हम आहाके द्वारा पुछल सब प्रश्न पुछि,तहन हम कि कहबै कि हम के छि? कि आहा मे आ हमरा मे मुल रुप से कोनो फरक छै? कि बोतल के पानी गिलास के पानी से अलग छै? जब बोतल आ गिलास टुइट जाइ छै,तहन कि हम पानी के अलग कर सकै छि? पानीए सार छै,अलग अलग बर्तन मे एकेगो पानी छै। आहा जे होइ,हमहु उहे छि। आहा मे हमरा मे कोनो फरक नै छै। आहा अनुभवकर्ता छि,आ अहु उहे छि। समुंद्र मे एगो लहर कहैछै कि हम पानी छि आ दोस्रो लहर कहैछै कि हमहु पानी छि। कि उ एकनासके छै या अलग छै? सायद ओकर रुप अलग छै लेकिन छै त उ एके।

रुप अलग होइसकै छै जे हम नै छि,लेकिन अंत मे खाली सार रहिजाइछै। जब कोनो रुप नै रहैछै तहन हम आ आहा एकभजाइछि। हम आहा बैनजाइछि,और आहा हम बैन जाइछि।कि एक होइसे निक कोनो नाता होइसकैय ? कि ऐसे बेसी नजदिक होई सकै छि ? जब दुनु एक भजाइछै तब उ प्रेम होइछै। कोनो दुरी नै छै। दुनु वास्तवमे एकेगो साक्षी छै।

तहन संक्षेप मे, हम छि:-

  • अजन्मा
  • अमर
  • अविनाशी
  • निराकार
  • निरंतर
  • खाली/शुन्य
  • शुद्ध
  • शास्वत
  • स्वतंत्र/मुक्त
  • शांति
  • परमानंद
  • प्रेम

दुसरा दिन:- माया ज्ञान

हम फेनुसे उहे दुनु साधन यानी अपरोक्ष अनुभव आ तर्क के प्रयोग कक देखैछि कि जे किछ भि अनुभवमे आब सकैछै सब बेकार छै, मिथ्या छै। या यि हो कह सकैछि कि सब अनुभव मिथ्या असत्य छै।

अपरोक्ष अनुभव:- आहा अपने से यि प्रश्न एक के बाद एक बेराबारी कक पुछु:-

हम अभी कहां छि?(या अभि हमर शरीर कहां छै?)

अभि हमरा आगुमे कि छै?(ओकर नाम कि छै?)

आब खाली अहि समान पर मात्रे ध्यान लगाउ।कि हम समान (बस्तु) के देखरहल छि, या कि हम यि बस्तु के अपरोक्ष अनुभव करहल छि,या हम बस उहे जान पाइबरहल छि जे संकेत वई बस्तु के बारे मे आइख के माध्यम से आइबरहल छै ? आहा यि बहुत निकस जान सकैछि कि हम मात्रे उहे संकेत के अनुभव करहल छि जे आइख के माध्यम से आरहल अई। कि अइमे कोनो शंखा अई ?

उदाहरण के लेल कल्पना करु कि अभी आहाके सामने एगो लाल रंग के टमाटर रखल अई। कोई आहासे पुछे कि अई टमाटर के रंग केहन छै। आशा करैछि कि आहा इहे कहबै कि टमाटर के रंग लाल छै। लेकिन यदि वइ टमाटर पर निला रंग के प्रकाश परैछै, तब उ टमाटर के रंग केहन होतै ?

आब उ कारी रंग के प्रतीत होतै। टमाटर लाल रंग के अहिलेल लैगैछलै कियाकि टमाटर सूर्य के प्रकाश मे से सब रंग सोइस लैछै आ खाली लाल रंग प्रतिबिम्बित करैछै। जब वइपर नीला प्रकाश परैछै तवा उ सब रंग सोइख लै छै आ कारी रंग के प्रतीत होइछै। तहन टमाटर के सही रंग कि छै ?

कोई कहतै की जे रंग सूर्य के प्रकाश मे देखाई छै उहे सही रंग छै। कोई कहतै की सही रंग उहे छै जब वइपर नारंगी रंग परै छै, नै कि जब सूर्य के प्रकाश परैछै। अई किसिमसे यदि अलग-अलग व्यक्ति फरक-फरक रंग के प्रकाश मे टमाटर के देखैछै तहन टमाटर के सहि रंग कि छै ? देखल जाए तहन कोनो रंग वास्तविक नै छै। यि मनमानी कल्पना मात्रे छै। बेसीलोग इहे कहतै कि टमाटर के सही रंग लाल छै। लेकिन यदि सूर्य के प्रकाश उजर के बदला नीला रंग के भजाइ तहन बेसीकके लोग मान लगतै कि टमाटर के रंग कारी छै। तहन इहे सहि माइन लेल जतै।

हम वतने रुप,आकार आ रंग अनुभव करैछै जे कि हमर इन्द्रियां हमरा संकेत दैइछै। जे वास्तवित छै वकर अनुभव नै कैल जा सकैय। ओकरा कोइ जान नै सक्तै। तहन हम यि स्पष्ट समैझ सकैछि की कहल जाए त कोनो रंग वास्तविक नै छै, यि मनमानी कल्पना मात्रे छै। यदि कोनो व्यक्ति के आइखमे दोष छै, जै कारण ओकरा सब किछ दुगो देखाई छै। आ उकहैछै कि एगो नै अईय दुगो टमाटर छै। लेकिन कि ओइय वास्तव मे दुगो टमाटर छै ?

यदि ई खराबी सब आदमिके आइख मे होइ तहन वई स्थिती मे सब के कते टमाटर दिखाई देतै ? दुगो। सत्य मात्र एगो सहमति या समझौता मात्रे छै।

किछ्लोग ट्राफिक के बत्ती के रंग नै देख सकै छै। एगो जन्म से अन्धा व्यक्ति के लेल चाँद आ तारा के कोनो अस्तित्व नै छै। यि संसार मात्रे इंद्रियो के लक ही प्रतीत होइछै। अलग-अलग जिव मे फरक-फरक इंद्रिय होइछै। किछ जिव मे मनुष्य से निक इन्द्रिय होइछै। कल्पना करु कि आहा के छुबके इन्द्रिय मे भि दोष अई, आ आहा केकेरो छुबै छि तहन उ एकके बदला दुगो प्रतित होइय तबत आहा के कोनो शंखा नै रहत कि अइय एगो नै दुगो टमाटर छै। टमाटर के भ्रम इन्द्रिय से बनाइल गेल छै। इन्द्रिय के कारण हमसब जनैछि कि संसार मे कि छै।लेकिन संसार वास्तव मे कि छै से कोइ नै जाइन सकैय।

यदि केकरो बोखार लागल छै तहन ओकरा सबकिछ स्वादहीन प्रतीत होइछै। वास्तव मे खाना मे कोनो स्वाद नै होइछै। इत जिउ छै जैके कारण अपना सबके स्वाद के आभास होइछै,वास्तव मे कोनो बस्तु मे कोनो स्वाद नै होइछै। एगो दोसर उदाहरण से एकरा सम्झै छि। तीन गो कपमे पानी भरल छै। एगोमे गरम,एगोमे बरफबला आ जे बीच मे छै वईमे रुमके तापमानके।

आब यदि गरम पानी मे हाथ रखला के बाद बीच वाला कप मे हाथ रखबै तहन आहाके ठंडा लागत लेकिन यदि ठंडा पानी मे से हाथ निकाइलक बीचबला कपमे हाथ रखबै तहन गरम लागत। तहन बीचबला कपके पानी ठंडा छै या गरम छै? वइमे एक कपके तुलना मे पानी गरम छै। दोसर कपके तुलना मे पानी ठण्डा छै।यि सापेक्षिक छै। इंद्रिय जनित छै। वास्तव मे ठंडा गरम किछ नै छै।

एगो आरो उदाहरण लैछि। यदि आहा कोनो भिख मांगवाला के बसिया रोटिके टुक्रा देबै तहन ओकरा केहन लग्तै? यदि ओकरा दशको रुपैया देबै तहन ओकरा खुशी होतै। आब आहा इहे रोटीके टुक्रा आ दशगो रुपैया एगो बहुत धनी आदमी के देबै तहन ओकरा केहन लग्तै ? उ अपमान समझतै आ पिताजतै।यि केना सम्भव छै कि एकेगो बस्तु एगो आदमी के खुशी दै छै आ एगोके दुख? यि पुरारुप से व्यक्तिनिष्ठ छै। सुख आ दुख दुनु नै छै। यदि उ छै तहन दुनु केकरो पर आस्रीत नै छै। दुनु भ्रम या मिथ्या छै। यि हमर अपरोक्ष अनुभन छै। आव तर्क पर एक नजर रखैछि।

तर्क

यदि हम कहै छि कि हमर नाम विजय छै,आ इ हम सबदिन दोहरबै छि तहन हमर नाम कि होतै ?

लेकिन यदि एक दिन मे कहि कि हमर नाम राजीव छै, दोसर दिन अशोक आ तेसर दिन गणेश छै,तहन हमर नाम कि रहल? तहन हम कहिसकैछि कि हमर नाम कोनो सहि नाम नै अई कियाकि यि बदलैत रहैछै। आहा यि देख सकै छि कि सब नाम असत्य छै । आहा किछ किन जाइछि, एक दिन दोकानबला एक समान के दाम 50 रुपैया कहत, दोसर दिन 60 रुपैया आ तेसर दिन 30 रुपैया, सब दिन दाम बदलैत रहैछै। तहन वईसमान के सही दाम कि छै? ओकर कोनो सही दाम नै छै कियाकि उ बदलैत रहैछै।. यदि हमरा कोनो सम्पति किनके छै, आ कोनो व्यक्ति हमरा ओकर विवरण दैछै। लेकिन जब ओकर संबंधित कागज देखैछि तहन किछ और पता चलैछै। तहन उ संपत्ति हम किनबै ? नै कियाकि जे हमरा जानकारी देनेछल से नै छै, बदैल गेलै। हम एगो निक आदमी से भेट करैछि, लेकिन एक महिना मे यि देखैछि कि उ झुठ बोलैछै, गलत काम करै छै,आब ओकरा पर हमरा कोनो विश्वास नै होइय। हम कहै छि कि उ विश्वासनिय नै छै। आब कि हम ओकरा पर विश्वास करबै? नै कियाकि उ बदलैत रहैछै। एगो सधारण तरीका यि जानकेलेल कि किछ सत्य छै कि असत्य छै, यि छै कि हम ओकरा जांच करबै कि उ बदलै छै कि नै।

जब समुन्द्र के देखैछि तहन हम लहर के भि देखैछि। लेकिन कि हम समुन्द्र के वहिय छोइरक लहरके अपन साथ ल जा सकैछि? कि बदैल रहल छै लहर या पानी? कियाकि लहर सबके अपन कोनो स्वतंत्र अस्तित्व नै छै, ताइलेल उ सहि नै छै। उ पानी के द्वारा लेल एगो आकार छै,एगो धारणा मात्र छै। अपनासब पानी के आकृति केहि लहर कहैछि। लेकिन मात्रे आकार बदलै छै पानी नै।

एगो आरो उदाहरण लैछि,माटी और घैला के। कि माटी के छोइरक खाली घैला अपन साथ लजासकै छि ? अईय कि बदैल रहल छै, आकार कि घैला ? उहे माटी कईगो रुप लासकैछै:- घैला,दिया,मुर्ति,ईट आदि,लेकिन माटी मे कोनो बदलाब नै होइछै। एगो आरो छै,सोना आ आभुषण के आभुषण के स्वरुप,आकार बदलैत रहैछै,लेकिन सोना उहे रहैछै, सोना के बिना गहना के कोनो अस्तित्व नै छै। आकार बदलैत रहैछै तत्व नै। तत्व कहियो नै बदलैछै। ज्ञानमार्ग मे हम कहैछि कि जे बदलैछै,उ छिते नै छै, उ मिथ्या छै, एगो विचार मात्र छै। तत्व ही अपरिवर्तनिय छै ओकरे सत्य मान जाई छै।

आब हमसब अपन अनुभवसबके देखैछि।कि आहा के अनुभव मे एहन किछ छै जे नै बदलैछै? सब किछ बदलै छै, ताइलेल सब असत्य छै। मिथ्या छै।किछो सत्य नै छै कियाकि सबकिछ बदैल रहल छै, ताइलेल सब असत्य छै। सिर्फ एक छै जे नै बदलैछै उ आहा छि। इन्द्रिय के माध्यम से किछ अनुभव मे अबै अवश्य छै,लेकिन हम नै जनैछि कि ओकर तत्व कि छै। हम कोनो कल्पना,दृश्य के वास्तविक माइनलैछि। कियाकि सबके उहे एकेगो दृश्य देखाइ दैछै। जेकरा हमरा से अलग किछ देखाई देछै, तहन हम कहैछि कि देखमे किछ खराबी छै, हमरामे नै।

जेना एगो कलाकार एगो फोटो बनबै छै, ओकरा वईमे बहुत किछ देखाईदैतै। आब कि फोटो सुन्दर छै या कुरुप छै? सब मांसिक धारणा छै। यि ओकरा पर निर्भर परैछै कि फोटो के, के देखरहल छै। सुन्दरता से हो एगो भ्रम छै, कियाकि ओहुमे सबके सहमति नै छै। तहन यि नै कह सकैछि कि यि सुन्दर चित्र छै।

नश्वरता

आऊ आब टमाटर के एगो उदाहरण लैछि। यदि हम सब एगो टमाटर लि आ ओकरा 5 दिन के लागी टेबुल पर राइखदि,तब कि होतै? उ 4-5 दिन मे सैरजतै,पानी आ माटी भजतै, आ तेकराबाद गाइब भजतै।

यदि हमसब सब किछ ओहिना रहदि जेना उ छै, यानी इन्द्रिय जेना छै ओहिना रहदियौ; संसार के नियम जेना ओहिना रह दियौ,ईहातक कि मन आ बुद्धि भि जेना छै ओहिना रहदियौ,लेकिन कल्पना करु आ खाली समय के गति तेज कदियौ। जेना हम कोनो चलचित्र जल्दि से आगु बढादैछि। वहिना हम समय के गति के जल्दी से अगारी भगाबके कल्पना करैछि। आब माइनलु कि समय के गति अतेक भगादेने छै कि उ टमाटर 5 दिन के बदला 5 घण्टा मे सैर जाइछै,आ उ नै रहैछै। आब टमाटर के बारे मे आहा के कि सोच अई। कि उ वास्तविक छै ?

आब हम समय के आरो भगादैछि, आ आब टमाटर 5 मिनट मे सैर जाइछै। कि टमाटर आहा के अखनो वास्तविक लगैय ?

आब हम समय के आरो भगादै छि, आब टमाटर 5 सेकेंड मे सैर जाइछै। आहा टमाटर के टेबुल पर रखै छि,ओकरा काटलेल चकु उठबैछि,5 सेकेंड मे उ गाइब भजाइछै। आब आहा टमाटर के बारे मे कि सोचैछि ? आहा सोइच सकैछि कि आहा सायद सपना देखैछलि। आहा के शंखा होइसकैय कि सहि मे आहा के पास टमाटर छल्। आब समय के आरो भगादियौ आ टमाटर एक पल मे चैलजाइ छै। आब कि कोनो टमाटर अई ?

आहा समय के गतिके अतेक भगासकैछि छि टमाटर मे होइबला परिवर्तन के आहा क आइख नै देख सकै नै बुद्धि समैझ पवै। अईसे पहिले कि आहां टमाटर के देखि उ गाइब भजाइछै। कि ओकर होनाइ सत्य छै ? कि उ काम केछै ?

समय के तेजकक हम इजाइन सकैछि कि अपनासबके जे समान वास्तविक आ कामके लगैय, उ पुरा रुपसे नकली आ बेकार छै। यदि समय बहुत जल्दीसे निकलैछै तहन ओइय किछ नै छै।यि मात्रे एगो परिवर्तन छै कि आहां अईविचार से सहमत नै छि ? वस्तु के स्मृति आ ओइमे धिरेसे होइबला परिवर्तन के कारण हमरा उ बस्तु स्थायी आ वास्तविक लगैछै।

सब किछ अहिना छै, जखन हमसब समयके तेज कदैछि तहन उ एगो सपना जाकि भजाइछै। एगो सपना बहुत जल्दी से अगारी बढैछै लेकिन ओकर कोनो मतलब नै रहिजाइछै। यदि आहाके अनुसार सब किछ बदललगै तहन आहां ओकरा एगो सपनाके रुपमे देख लग्बै।

आऊ एगो आरो उदाहरण लै छि। एक दिन आहा बाहर जाइछि आ एगो सुन्दर बगैचा देखैछि। दोसर दिन आहा सुन्दर बगैचा के स्थान पर एगो खण्डर आ रेगिस्तान देखैछि,जेनाकि 100 साल भगेल होई। दोसर दिन जब आहां उठैछि तहन आहांके वई रेगिस्तान के स्थान पर एगो पहाड़ देखाईदेत,कि आहां अईपर विश्वास करबै ? कि सब किछ पहिलेसे ऐना नै होरहल छै? फर्क मात्र अतबे छै कि यि धीरे-धीरे होरहल छै,आ जेचिज धीरे-धीरे बदलैछै,से सहि मे अहिना होइछै ।भावना बहुत जल्दी बदलैछै विचार आरो जल्दी से बदैलजाइछै। हमसब ओकरा सहि माइनलैछि कियाकि उ दोहराइत रहै छै। सब अनुभब ओहिना छै। अनुभवके स्मृति होइछै ताईलेल यि सांचोके लगैछै।मायामे स्थिरता होइछै।

ताईलेल यदि आहां सबदिन पिताइत रहै छि तहन पित आहाकेलेल वास्तविकता बैन जाइत। लेकिन अगर आहा जब अपना जीवन पहिलबार पित अनुभव करैछि। तहन आहां के पता नै लागत कि पित वईजगह छै।कियाकि आहां पितके दोहरारहल छि, आहां मानैछि कि उ वास्तविक मे सहि छै। यदि आहां बारम्बार पितकरनाई छोइरदि तहन उ आहाकेलेल वास्तविक नै रहिजाइत। स्मृति मात्र दोहराब छै आ ताईलेल वास्तविक लगैछै। कभिकाल प्रेम,पित आदि भावनासब उत्तरजीविता केलेल उपयोगी होइछै। कियाकि स्मृति मात्र दोहराब छै। सत्यके मापदण्ड अहिलेल अपन मनमर्जिके आ व्यक्तिनिष्ठ छै। कोइ भी अपन समझदारी आ पसंद नै पसंद के हिसाबस कोनो मापदण्ड तय कर सकैछै।

टमाटरके यदि 20 आदमी देखै आ सब कहै कि लाल, गोल आ स्वादिष्ट छै आ जब आहां जगली,तहन कि उ टमाटर साचोंके छलै? जागल अवस्था मे आ सपना के अवस्था मे मापदण्ड एकनास छलै,लेकिन तैयो एक अवस्थामे इ वास्तविक छलै, दोसर अवस्थामे नै छलै। एकर मतलब वास्तविकता मनमानी छै।

स्मृति

किछ लोग कहसकैय कि यद्यपि सब घटना आ चिजमे बहुत परिवर्तन होइछै, उ वास्तविक छै कियाकि उ आ वईमे होईबला सब परिवर्तन हमरा सबके स्मृति मे जम्मा छै, संग्रहित छै। यदि आहांके स्मृतिमे टमाटर अई तहन कि आहां ओइके अभि खा सकैछि? यदि नै खासकै छि, तहन कि उ वास्तविक छै?

स्मृति मे जे किछ संग्रहित छै, केवल छाया छै। आहाके स्मृति मे किछो वास्तविक नै अई। आहांके पुरे जिन्दगी एगो छाया अई, वईमे कोनो व्यक्ति नै छै,कोनो जीवन नै छै। सब किछ पुर्णरुपसे अवास्तविक छै, मिथ्या छै। आहां कह सकैछि आहां नैता,अभिनेता ,लेखक आदि छि केकरो बेटा छि, बेटी छि, आहां एगो महान देश आ जाइत केछि,यि सब स्मृति मे संग्रहित छै। जे कि एगो छाया मात्र छै।

स्मृति वस्तविक नै छै। स्मृति मे संग्रहित किछो वास्तविक नै छै, लेकिन स्मृति उत्तरजीविता केलेल उपयोग छै। यदि आहां के जीवन जीवकेलेल एकर आवश्यकता नै अई, तहन एकरा त्याइग सकैछि। आहां इ बुइझगेल होइब कि आहांके (साक्षी) उत्तरजीविता के आवश्यकता नै अई,लेकिन अई देहके आवश्यकता छै। लेकिन देह आहां नै छि।

आहांके स्मृति के कैनको जरुरी नै अई, आहांके संसार के भि जरुरी नै अई, लेकिन शरीरके संसारके के जरुरी छै। आहां संसारके वास्तविक माइनलेलि कियाकि आहां स्मृति के त्याइग नै सकैछि। अपना सब के जिन्दगी स्मृतिसब से बुनल एगो मायाजाल छै, आ हमसब ओकरा सहि माइनक अपन पुरा जिन्दगी अज्ञान मे बितबै छि।

जब अपनासब साक्षीभाव मे रहैछि तहन हमसब उहे जिन्दगी जिबैछि जे सत्य छै, इहे ज्ञान छै। साक्षीभाव मे रहिक हमसब साच आ झुठ के बिचमे फरक कर सकैछि। इहे मिथ्या ज्ञान छै, इहे मायाके ज्ञान छै।साक्षी के छोइरक सबकिछ माया छै।

तेसर दिन: ब्रम्हज्ञान

अइय हमसब जाँच करैछि कि:-

  • सब कुछ एक केना छै?
  • अइय द्वैत किया नै छै?
  • अस्तित्व अद्वैत किया छै?

अस्तित्व

पहिले अस्तित्व कि छै यि देखैछि। जे भि छै उ सब अस्तित्व हि छै। अइय कि किछै ? आहां कतौ चैल जाऊ, किछ भि देखु, आहां इहे देखबै कि अनुभव छै आ अनुभवकर्ता छै। आ इ दुनु सदैब साथ मेहि रहैछै। बस इहे मुल छै, आ इहे अस्तित्व छै। हमसब देख सकैछि कि यि एके छै, आ अहिके अस्तित्व कहैछि।

कि आहा अनुभब आ अनुभवकर्ता के छोइरक किछ और कहियो देख्लौह? जहिना आहां कहैछिकि अस्तित्वमे किछ छै तहन आहांके ओकर अनुभव करनाई निश्चित छै। आहाके प्रमाण के जरुरत होइत आ प्रमाण अनुभव पर मात्र आधारित छै। यदि आहां कहैछि कि ओकर अनुभव नै कैलजा सकैय लेकिन उ छै,तहन उहे अनुभव्कर्ता छै। सबदिनस अहिना छै। यानी अनुभव मिथ्या छै आअनुभवकर्ता सत्य छै या तत्व छै।

यदि अस्तित्व अनुभव आ अनुभवकर्ता हि छै, तहन अस्तित्व केतत्व कि छै? यदि अनुभव असत्य छै आ अनुभवकर्ता सत्य छै तहन अस्तित्व के तत्व अनुभवकर्ता होइत। अनुभव त मिथ्या रुप छै यानी नै छै। आ स्पष्ट रुपस हमही अनुभवकर्ता छि। ताइलेल अई अस्तित्व के तत्व हम हि छि।

संपुर्ण अस्तित्व हमहि छि।कि अई बात मे कोनोशंखा अई?

सबदिन साथ-साथ

आ अईके एगो आरो दृष्टी से देखैछि आ किछ आरो प्रमाण खोजैछि। कि आहा अनुभवके अनुभवकर्ता बिना कहि देखलिय?

या अनुभवकर्ता कहियो अनुभव कै बिना हौइसकैय?

यि दुनु सदैव साथेमे रहैछै। एना किया छै? यदि कुछ सबदिन एकसाथ छै, हमसब अइके कहियो अलग देखहि नै सकैछि। तहन हम यि कहिसकैछि कि सब एके छै। जेना कि घैलाके माटि बिना, गहना के सोना बिना आ लहर के पानीके बिना कहियो देखल नै जासकैय। सोना मे गहना परिवर्तनीय छै, माटिमे घैला परिवर्तनीय छै, आ पानी मे लहर परिवर्तनीय छै।

अनुभव आ अनुभवकर्ता मे अनुभव परिवर्तनीय छै, आ दुनु एके छै। ताइलेल जेभि छै सब हमरे रुप छै। ताइलेल कोनो रुप हमरा बिना नै छै। मन अनुभव आ अनुभवकर्तामे भेद करैछै, विभाजन करैछै। लेकिन मन त अपने मे एगो अनुभव मात्र छै। पानी मिथ्या हि छै, आ मिथ्या हि कहैछै कि द्वैत छै।

विभाजन

आब हमसब दुगो छि, अइके प्रमाण खोजैछि। कि अनुभव आ अनुभवकर्ता मे कोनो दुरी छै? अई तरिकासे आब अपनासब अपरोक्ष अनुभव पर अबैछि।

अपने से यि प्रश्न अहि तरिकासे पुछैतजाऊ: आहांके सामने जे बस्तु अई ओकरा से अनुभवकर्ता कतेक दुर छै ?

कोनो फितासे दुरीके नापु। लेकिन यि दुरी शरीर से नै बल्कि आहासे यानी अनुभवकर्ता से नाप परत मन कहिरहल अई कि बस्तु बाहर कहि दुर अई।

अज्ञान के कारण यि लगैयकि हम यि शरीर छि, आ शरीर से तहन उ बस्तु दुर लगैछै, लेकिन आहांसे (साक्षी से) कतेक दुर होतै? कि फितासे यि नप्नाइ संभव छै?

जहां अनुभवकर्ता छै,वहिय अनुभव से हो छै। आ उ दुनु सदैव अभि अहिय छै। आरोसब मनग्रन्य कल्पना मात्र छै। यदि सब बस्तु वहिय छै जहां आहा छि, तहन पुरा संसार वहिय छै जहां आहां छि। आरो सब मात्र इन्दिय से बनाइलगेल माया जाल छै। वैय किछ छैनै। इन्द्रिय के कारण जे भी अनुभव होइछै सब मांसिक होइछै। हमरा आहांके अनुभव नै पता चैलसकैय। आहांके हमर अनुभव पता नै चैल सकैय। ताइलेल हमसब काव्यात्मक रुपस कहिदैछि कि सब किछ हमरे मे अई।

हमरास अलग किछ नै छै। सब किछ हमरेमे छै। हमहिं अस्तित्व छि,सब किछ हमरेमे अई।इहे अपरोक्ष अनुभव छै। चलु एगो एगो आरो उदाहरण लै छि। कि अनुभव पहिले होइछै, आ अनुभवकर्ता बाद मेअबै छै।

कि अनुभवकर्ता पहिले अबैछै आ अनुभव बाद मे? सब ठाऊमे आ हरदम,अनुभवकर्ता आ अनुभव एके साथ छै,एके समयमे छै। सैद्धांतिक रुपसे उ अलग-अलग प्रतित होइछै, जबकि ओकरा अलग नै कैल जासकैय। अनुभव हरसमय बदैलरहल छै, आ वइमे बदलाब देखाइदै छै, लेकिन कोनो अनुभव अनुभवकर्ता से अलग नै छै। लहर बदैलरहल छै,लेकिन कि उ पानी से अलग छै ?

माटीके आकार बदैल जाईछै, लेकिन कि घैला आ माटीके बिचमे दुरी होइछै? मन अनुभव आ अनुभवकर्ता मे विभाजन करैछै,लेकिन वास्तव मे दुनु एके छै।

सीमा

एगो आरो तरीका छै यि जानके लेल कि यि सब कहां छै?

हमरा आ बस्तुके बिचमे सीमा रेखा कहां छै?

यदि बस्तु बाहर कही दुर छै, तहन कहां अनुभवकर्ता शुरु होइछै,आ कहां अनुभव खत्म होइछै। मतारोपण के कारण हम बस्तुके शरीर से अलग देखैछि, बाहर देखै छि, लेकिन शरीर अपने कहां छै? हम कह सकैछि मन के बाहर, लेकिन फेन मन कहां छै? किछ लोग कह सकै छै कि मन हमरास बाहर छै, हम मन नै छि। हमरा आ मन के बिच मे सीमा रेखा कहां छै? आहां कह सकैछि कि बस्तुसब कही बाहर छै लेकिन विचार के बारे मे कि कहसकैछि?

वास्तव मे कही कोनो सीमा रेखा नै छै। अज्ञान के कारण भ्रम छै। अनुभव आ अनुभवकर्ता एके छै ,एके सिक्का के दु भाग छै, यानी उहे एगोमात्र अस्तित्व हमहि छि।

फेन दोसर व्यक्ति के छै? उहो तहन इहे कहता कि हमहि अस्तित्व छि।तहन कि एकर मतलब इछैकि बहुत अनुभवकर्ता छै आ अनेक अस्तित्व छै। ऐना नै होइ सकैय। एकेगो अनुभवकर्ता छै। जिनका सबकिसिमके अनुभव होरहल छैन।

अनुभवकर्ता के तत्व कि छै? खालीपन या शुन्यता। अस्तित्व के तत्व कि छै? शुन्यता। मात्र शुन्यता छै,लेकिन हमसब मात्र अनुभव आ अनुभवकर्ता के मात्र देखैछि। अस्तित्व शुन्य छै, जे स्वयं के अनुभव अलग-अलग रुप मे कैर रहल छथिन। यिहे एकता या अद्वैत के ज्ञान छै।

अद्वैत

कोई अद्वैत के अनुभव कोन तरिकास कैर सकैछै?

अद्वैतके कोनो अनुभव नै होइछै। जहिना कोनो अनुभव होइछै, साथे अनुभवकर्ता रहैछै। मात्र होनाई छै। जे छै उहे होनाई अद्वैत छै। आहां अखनी अई टाइममे उहे छि। मन अद्वैत मे विभाजन करै छैन,लेकिन मनकेहि प्रयोगसे यि जाइन सकैछि कि कोनो विभाजन नै छै। मन के स्वभाव छै कि उ अद्वैत मे विभाजन करै छै। आ बुद्धि वई विभाजन के आर पार देख सकैछै,आ जाइन सकैछै कि दु नै छै। ताईलेल हमसब कहैछि कि दु नै छै। मात्र अद्वैत छै। अई होई मात्र के अनुभवक्रिया कह सकैछि। केवल अनुभवक्रिया मात्र छै। आहां के अवस्था अभियो अनुभवक्रिया के हि अई। अहिके अद्वैत के अवस्था से हो कहल जाइछै। अइके छोइरके आरो कोनो अवस्था संभव नै छै। इहे अस्तित्वके अवस्था छै।

वैराग्यसे अई अवस्थामे रहनाई संभव होइसकैय। एक जगह शांतीस बैठजाऊ आ विरक्त भावसे अपन ध्यानके फैल दियौ,आ शरीर,विचार,इच्छा आ अहम भावके अपन ध्यान मे राइखलिय, आ आहां मात्र अनुभवक्रिया के देख सक्बै। इहे समाधी छै। अपनासब हरदम समाधी मे हि रहैछि। लेकिन मनके गतिविधि आ चित्त ओकरा नुकादैछै। सबकिछ जागृत अवस्था के पछारी झपाजाइछै। लेकिन यदि हमसब ध्यान दियहे तहन देख सकैछि कि मात्र शुन्य छै। हम अहम कहि नै छै।

इहे खाली या शुन्य होनाई छै,एक होनाई पुर्ण अस्तित्व होनाई ईहे छै। अस्तित्व के पर्दापर सबकिछ एगो स्वप्न के जाकि प्रतित होईछै। यदि आहां समाधी मे स्थित होई चाहैछि तहन उ इहे छै अखने छै। अहि स्वयं अद्वैत अस्तित्व छि, जे स्वयंके ही मिथ्या रुपी सपनाके रुपमे अनुभव करहल छि। इहे साधना अन्त छै,अध्यात्म के अन्त छै,ज्ञान के अन्त छै।

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