चेतना

ज्ञानमार्ग से
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बोधि वार्ता- चेतना

o सभी जीवों के शरीर मैं ही हूँ । सभी जीवों के प्राण मैं ही हूँ । सभी जीवों में जो चैतन्य है वो मैं ही हूँ।

o जागृति में जागना ही चेतना है।

o चेतना का दीया जलाएं अज्ञान का अँधेरा हटाएं साल में एक बार नहीं रोज दिवाली मनाएं।

o कोई शरीर में खोया है कोई मन में खोया है छोटा बड़ा अमीर गरीब यहाँ हर आदमी सोया है जागा है वो जिसने चित्त चेतना में डुबोया है नमन गुरुदेव आपको जो ज्ञानबीज बोया है।

o चेतनारहित जीवन व्यर्थ है। चेतनारहित अच्छे कर्म भी बुरे हैं। अर्थहीन हैं। चेतनासहित जीवन, कैसा भी हो, फलदायी है। चेतना में किये सभी कर्म, कैसे भी हो, अच्छे कर्म है , अर्थपूर्ण हैं।

o चेतना कोई कर्म नहीं। चेतना कोई क्रिया नहीं। चेतना कुछ करने से या सोचने से नहीं आती। चेतना चित्तवृत्ति है, आतीजाती है। साधक अक्सर भूल जाता है , अहम् प्रकट होता है। चेतना के चले जाने का ज्ञान होने के ठीक एक क्षण पहले वो आ चुकी है। चेतना आने पर उसके भूलने क्या ज्ञान होता है। उसके पहले नहीं। अब कुछ करके क्या होगा, चेतना आ चुकी है। बस उसमे अवस्थित हो जाएँ फिर से। चेतना का कारण ज्ञान है। आत्मज्ञान। अनुभवकर्ता का ज्ञान। चेतना का कारण संस्कार हैं, जो ज्ञान लेने से बने हैं। स्वयं को जानने से बने हैं। चेतना प्राकृतिक है। ज्ञान है तो चेतना होगी। नए साधकों की चेतना आती जाती रहेगी , ये भी प्राकृतिक है। स्मरण रहे बस इतना करें। ज्ञान के पीछे भागे , चेतना के नहीं। यही चेतना की साधना है। ज्ञान पक्का होने पर चेतना अखंड होगी। जागृति , स्वप्न , सूक्ष्म और निंद्रा में निरंतर होगी। चित्त पर सम्पूर्ण नियंत्रण होगा। मृत्यु पर विजय, कर्मों पर विजय , माया पर विजय होगी। अनंत सिद्धियां मिलेंगी। इनमे सबसे बड़ी सिद्धि दूसरों में चेतना जागृत करने की योग्यता है। चेतना में रहें , चेतना का प्रकाश सभी में जागृत करें। तथास्तु !

o जैसे फूल का स्वभाव सुगंध है , उसे सुगन्धित रहने के लिए कोई प्रयास नहीं करना होता । वैसे ही मेरा स्वभाव चैतन्य है, चेतना में रहने के लिए कोई प्रयास नहीं करना होता । यदि चेतना के लिए प्रयास लगता है तो वो अशुद्धियों का संकेत है । अशुद्धियां केवल ज्ञान से दूर होंगी । आत्मज्ञान से।

o जैसे गर्म तवा छूने के बाद ये याद रखने में प्रयास नही लगता कि वो गर्म है , ये सबक जीवन भर याद रहेगा , वैसे ही आत्मज्ञान होने के बाद ये याद रखने में प्रयास नही लगता कि मैं क्या हूँ , चेतना जीवन भर रहेगी।

o मैं कोई भी अनुभव नहीं , यह आत्मज्ञान है। इस ज्ञान से स्वचेतना जागृत होती है। चेतना में स्थिर होने के लिए आत्मस्वरूप का स्मरण आवश्यक है। यही एक ज्ञानमार्गी की साधना है। स्मरण और स्मृति में भेद है। चेतना स्मृति में नहीं, वर्तमान में है। स्मृति केवल माध्यम है , आत्मज्ञान संचित रखने का। केवल याद करने से चेतना नहीं मिलेगी, बस विचार मिलेगा, जो स्मृति से उभरा है। अब ज्ञानी इस विचार का उपयोग विचार से ऊपर आने में करता है , अब याद आ गया है मेरा स्वरुप क्या है , अब मैं वो त्याग सकता हूँ जो मेरा स्वरुप नहीं है। अब मैं विभिन्न अनुभवों से तादात्म्य त्याग सकता हूँ। इसमें बस आधा क्षण लगता है , साँस लेने से भी कम प्रयास लगता है। इस प्रकार स्मृति और बुद्धि का उपयोग करके चेतना की अवस्था प्राप्त होती है। जब तक स्मरण रहेगा चेतना रहेगी। शांति सात्विकता रहेगी। स्मरण छूटा, संसार खा जायेगा। मैं कौन हूँ ये रटना , विचारों में उलझ जाना , वाद विवाद करना , इस मूर्खता को अध्यात्म मानना अज्ञान और बुद्धिहीनता के संकेत हैं। इनसे बचे। ऐसे लोगो को या तो शाब्दिक ज्ञान है या कहीं से सुन लिया है , समझा नहीं , सोचा नहीं , जाना नहीं। इसलिए चेतनाहीन हैं। आत्मज्ञान शुध्द ज्ञान है , सबसे सरल है , सर्वोच्च सत्य है। चेतना में स्थिर होने में आधा क्षण भी नहीं लगता, यदि आत्मज्ञान है तो। साँस लेने से भी आसान है। साधनहीन साधना है। कर्महीन कर्म है।

o मैं शरीर नहीं। शरीर मेरा नहीं। मैं शारीरिक क्रियाएं नहीं। मैं कर्ता नहीं। मेरा जन्म नहीं होता, मेरी मृत्यु नहीं होती। मैं विचार और भावनाएं नहीं। वो मेरी नहीं। मैं न विचार करता हूँ न भावनाओं में बहता हूँ। मैं इच्छाएं नहीं। वो मेरी नहीं। मैं कोई इच्छा नहीं करता। न उनका फल भोगता हूँ। मैं स्मृति नहीं। वो मेरी स्मृति नहीं। मैं न याद हूँ न याद करता हूँ। मेरा भूत नहीं भविष्य नहीं। मैं इन सभी आते जाते अनुभवों की पृष्टभूमि हूँ। मैं केवल दृष्टा हूँ। मैं चैतन्य हूँ। अनुभवकर्ता हूँ। मैं ही अस्तित्व हूँ। मुझसे परे कुछ नहीं। मैं परम हूँ। मैं अंतिम सत्य हूँ।

o यदि कर्ताभाव है तो यह अज्ञान का संकेत है। यदि चेतना को कर्म के रूप में देखा जा रहा है तो यह अज्ञान का संकेत है। यदि चेतना को प्रयास करना समझा गया है तो यह अज्ञान का संकेत है। ज्ञान होने पर चेतना स्वयं प्रज्वलित होगी। जब होगी उसमे स्थिर रहें। यह कोई कर्म नहीं , अवस्था है। जब नहीं होगी, उसको बलपूर्वक लाने वाला भी नहीं होगा। प्रयास कौन करेगा? कर्ता कौन है? जब आ जाएगी, उसमे स्थिर हो जाएँ। चेतना प्राकृतिक घटना है। ज्ञान का परिणाम है। ज्ञान के लिए प्रयास करें, चेतना के लिए नहीं। मेरा स्वरुप चैतन्य है, स्मरण रखें। बस इतनी सी साधना है ज्ञानमार्ग पर।

o पेड़पौधे बढ़ते हैं, सूखते हैं । मनुष्यशरीर भी बढ़ता है , मरता है। रक्षणभक्षणप्रजनन कीड़े भी करते हैं। मनुष्य भी करता है। कामक्रोधभयप्रेम भावनाएं पशु में भी है। मनुष्य में भी। क्या विशेष है मनुष्य में जो किसी में नहीं? बुद्धि विवेक चेतना ! यदि ये न हों, तो क्या मैं मनुष्य हूँ? ज्ञान से बुद्धि मिलती है , बुद्धि से विवेक, विवेक से चेतना। ज्ञानमार्ग हमें मनुष्य बनाता है।