बोधिवार्ता शब्दावली

ज्ञानमार्ग से
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बोधिवार्ता शब्दावली

ज्ञान - अनुभवों का संबंध एवं व्यवस्थापन

ज्ञानमार्ग - अ‍परोक्ष अनुभव एवं तर्क द्वारा स्व/आत्मन/अस्तित्व के मूल तत्व की खोज I

अनुभव - अस्तित्व का प्रकट रूप जो परिवर्तनशील हैI अनुभव तीन प्रकार के है – जगत के, शरीर के एवं मानसिक I अंततः तो सभी अनुभव मानसिक ही होते है।

अज्ञेय - जिसे जाना नही जा सकता I जिसका ज्ञान संभव नही I

पंचवृति - ऋषि पतंजलि द्वारा योग सूत्र में बताई गयी चित्त की पांच वृत्ति I

प्रमाण - ज्ञान अर्जन का सही तरीका I अपरोक्ष अनुभव एवं तर्क से जो सिद्ध है वो ही प्रमाण है I

सत्य - सत्य अनुभवों का वर्गीकरण है I वर्गीकरण का मापदंड व्यक्ति-परक है एवं भिन्न हो सकता है I अद्वैत में अपरिवर्तनशीलता ही सत्य का मापदंड है I

ज्ञानमार्गी - वो व्यक्ति जो अपरोक्ष अनुभव एवं तर्क से स्व/आत्मन/अस्तित्व के मूल तत्व की खोज कर रहा है I

गुरु - जो प्रिय है और जिसके पास आने पर शांति मिलती है, जो निस्वार्थ भाव से ज्ञान दान करता है I

साधना - स्व के ज्ञान को प्राप्त करने हेतु किया गया प्रयास

अस्तित्व -जो भी "है" वो अस्तित्व ही है। या कह सकते हैं की अनुभवों की अनंत श्रंखला ही अस्तित्व है I अस्तित्व और होना एक ही है I अस्तित्व और अनुभव एक है I अस्तित्व के दो चेहरे हैं अनुभव और अनुभवकर्ता।

अनुभवकर्ता - अस्तित्व का वो भाग जिसे अनुभव हो रहे है I साक्षी, द्रष्टा, चैतन्य, आत्मन आदि इसके नाम है I

अनुभवक्रिया - अनुभव की गतिशील क्रिया I मात्र अनुभवक्रिया है, चित्त इसे अनुभव एवं अनुभवकर्ता में विभाजित करता है I

अद्वैत - अनुभव, अनुभवकर्ता, अनुभवक्रिया, अस्तित्व एक ही है एवं अद्वैत है I

आत्मविचार - स्व/ आत्मन केसंबंध में किया गया विचार I

अहम - एक चित्त वृत्ति जो अनुभवों पे अधिकार जताती है एवं कर्तापन का कारण है I

मुक्ति - आत्मन के सिवा अन्य सभी अनुभवों से आसक्ति या तादात्म का नाश I

माया/ मिथ्या - परिवर्तनशील एवं जिसका तत्व शून्य है I मात्र भ्रम है I

नादरचना - नियमबद्ध पराभौतिक परामानसिक रचना I यह एक अवधारणा/मॉडल है I

स्मृति -वह नादरचनाये जिन पर दूसरी रचनाओ की छाप छुटती है I मृतिका (मिटटी) से निर्मित शब्द I

भौतिक जगत -भौतिक जगत एक नियमबद्ध नादरचना है I

विज्ञान - विज्ञान ज्ञानमार्ग की एक शाखा है I भौतिक जगत तक सिमित है I

वस्तु - व्यवस्थित नादरचनाओ की एक परतिय रचना I

इन्द्रियां - विशेष प्रकार की नादरचना I भौतिक अनुभव का माध्यम I

वृत्ति - ऐसी प्रक्रिया जो वृत्त में चलती है I

विकासक्रम - नादरचनाये सरल से जटिल की और अग्रसर है I यही चित्त का विकासक्रम है I

स्थूल - अस्तित्व का वह भाग जो पंचइन्द्रियों की पहुच में है I

सूक्ष्म - ऐसे अनुभव जो पंचइन्द्रियों से परे है परन्तु मानसिक रूप से प्रकट है I

बुद्धि - सभी मानसिक क्षमताओ का माप I

चेतना - अनुभवकर्ता का ज्ञान की मैं ही अनुभव कर्ता हूँ। चित्त का ध्यान जब उसपर जाता है जो अनुभव कर रहा है, वही चेतना है, या साक्षी भाव है।

वैदेहिक - बिना देह की अवस्था I

वासनाये - एक प्रकार की चित्त वृत्ति I क्षणिक या दीर्घकालीन हो सकती है I

सुख - नकारात्मक वृत्तियो का आभाव I

आनंद - मेरी मूल स्तिथि I

योग - दृश्य एवं द्रष्टा की एकता का ज्ञान I ये ही समाधी है I

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शीर्ष पाठ

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