ज्ञान

ज्ञानमार्ग से
तरुण प्रधान (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित २१:३६, ३० मार्च २०२१ का अवतरण (→‎ज्ञान का महत्त्व)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
Jump to navigation Jump to search

अनुभवों का व्यवस्थापन या संयोजन ज्ञान है। ज्ञान एक रचना है, व्यवस्था है, जो स्मृति में होती है। दो अलग अलग अनुभवों के बीच में जब तार्किक सम्बंध जुड़ते हैं वह रचना ज्ञान है।

ज्ञान की वृत्ति

ज्ञान का सृजन चित्त ही करता है। यह चित्त की वृत्ति है, प्रक्रिया है। जो साधन ज्ञान के लिए उपयोगी हैं वो ज्ञान के साधन कहलाते हैं।

बिना उदेश्य के भी ज्ञान संग्रह होता रहता है चित्त में, जब तक हम जीवित हैं, इसको रोक नहीं सकते हैं। हर तरह के अनुभव ज्ञान में बदलते रहते हैं।

इस वृत्ति का उद्भव जीव के विकासक्रम के दौरान होता है। यह प्रक्रिया उत्तरजीविता के लिए अत्यावश्यक है।

अज्ञान और अबोधता

ज्ञान या अनुभव का अभाव अज्ञान है। मान्यतायें, अवधारणायें जो अनुभव आधारित नहीं है वह अज्ञान है, या गलत ज्ञान है। अज्ञान का परिणाम दुःख और बंधन है।

जिस व्यक्ति में मान्यतायें भी नहीं होती हैं, वह अबोध या निर्दोष है। अबोधता से दुख नहीं मिलेगा। परन्तु, उस व्यक्ति का विकास भी नहीं होगा। यह भी एक बंधन है, सीमा है।

ज्ञान का वर्गीकरण

ज्ञान वर्गीकरण कई मापदंडों के आधार पर हो सकता है। इससे ज्ञान को समझने में आसानी होती है।

ज्ञेयता का आधार

उपलब्धि का आधार

वस्तुनिष्ठता का आधार

अपरोक्षता का आधार

सत्य का आधार

सापेक्षता का आधार

ज्ञान का अनुभव

ज्ञान भी एक अनुभव है। यह स्मृति की सामग्री के बीच एक संबंध के रूप में अनुभव किया जाता है। स्मृति की सामग्री स्वयं अनुभव की जाती है और ज्ञान भी होती है, संबंध यहां एकात्मक है, अर्थात् - यह है या इसका अस्तित्व है।

ज्ञान का महत्त्व

जीवन का आधार ज्ञान है।

ज्ञान से वाणी और कर्म प्रभावित होते हैं और कर्म से ज्ञान का सृजन होता है। जीवन की गुणवत्ता का आधार ज्ञान है।

इसके आभाव में या अज्ञान होने पर जीव का जीवित रहना भी संभव नहीं। ज्ञान से बुद्धि का अटूट सम्बन्ध है , और बुद्धि ही मानवता का तत्व है। इस प्रकार मनुष्य होना ज्ञान पर निर्भर है। अज्ञानी पशुमात्र है। और ज्ञान ही, जो आध्यत्मिक या परमज्ञान है, मनुष्य को मानवता के ऊपर विकास करने में सहायक है।

ज्ञानमार्ग और ज्ञान

ज्ञानमार्ग में हम परम ज्ञान चाहते हैं। ऐसा ज्ञान जो अपरोक्ष हो और सत्य हो। ज्ञानमार्ग में ज्ञान अधिकतर नकारात्मक प्रकार का होता है , अर्थात ज्ञानमार्ग में ज्ञान नहीं मिलता, केवल अज्ञान का नाश होता है। इस प्रकार ज्ञानमार्ग साधक को अज्ञेयवाद की ओर ले जाता है।