साधक के गुण

ज्ञानमार्ग से
Jump to navigation Jump to search

साधक

वह व्यक्ति या जीव जो ज्ञानमार्ग की साधना कर रहा है।

इनको ज्ञानमार्गी भी कह सकते हैं। इस मार्ग पर प्रगती होने पर साधक ज्ञानी कहलाता है।

योग्यताएं

ज्ञानमार्ग सभी के लिए पूर्णतया खुला है। आयु, जाती, लिंग, धर्म, राष्ट्रीयता, नस्ल, भाषा या किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं है।

तथापि, साधक में कुछ गुणों का होना आवश्यक है, जो उसको ज्ञान के योग्य बनाते हैं। इनके होने पर ज्ञानमार्ग पर चलना आसान होता है, सफलता मिलती है। इनका न होना अवरोध कहलायेगा।

आवश्यक गुण

मुमुक्षत्व, विवेक, वैराग्य, षट सम्पत्ति - ये चार मुख्य गुण होना आवश्यक है। शास्त्रोक्त हैं।

  1. मुमुक्षत्व : मुक्ति की तीव्र इच्छा होना। यही जीवन लक्ष्य होना।
  2. वैराग्य : सांसारिक गतिविधियों में या भोग में अरुचि होना।
  3. विवेक : सत्यासत्य, सही गलत में भेद करने की क्षमता होना।
  4. षट सम्पत्ति : छह गुण -
    1. शम या सम - काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि का आभाव ।
    2. दम - इन्द्रियों पर नियंत्रण।
    3. श्रद्धा - गुरु और शास्त्र के कथन का सत्य जानने का प्रयास करना। अंधश्रद्धा का आभाव।
    4. समाधान - सिद्धियों में अरुचि, सांसारिक इच्छाओं का आभाव।
    5. ऊपरति - समाज, अन्यजन या सांसारिक क्रियाकलापों में अरुचि।
    6. तितिक्षा - सहनशीलता, लगे रहना , दृढ़ संकल्प होना ।

वांछित गुण

  1. रुचि - अध्यात्म में रूचि
  2. जिज्ञासा - ज्ञान की तीव्र इच्छा
  3. बुद्धि - सोचने समझने की क्षमता
  4. पूर्वाग्रहमुक्त - मान्यताओं धारणाओं का आभाव
  5. समालोचनात्मक - अंधविश्वास का आभाव
  6. तार्किक - तर्क क्षमता , तर्क की समझ
  7. धैर्य और दृढ़ता - वीरता
  8. प्रयोगकर्ता - किताबी कीड़ा न होना
  9. ज्ञानदानी - अपना ज्ञान बाँटने की इच्छा
  10. अविवादी - वादविवाद, झगड़ा आदि से बचना
  11. ग्रहणमुद्रा - ज्ञान लेने के लिए सदा तत्पर
  12. समर्पण - ज्ञान हेतु जीवन समर्पित करना
  13. सहनशक्ति - आलोचना को सहन करने की क्षमता या आलोचना को निंदा नहीं समझना,
  14. अल्पवादी - खाने, बोलने, सोने में समता
  15. अतीसूक्ष्मवाद - अनावश्यक से बचना
  16. गुरुभाविता - गुरु के लक्षण दिखना

गुणों का विकास

उपरोक्त में से कुछ गुण नैसर्गिक हैं , उनका आभाव प्रयास से दूर नहीं किया जा सकता , जैसे - मुमुक्षत्व , रूचि आदि।

कई गुण हैं जिनका विकास हो सकता है , उचित मार्गदर्शन द्वारा , जैसे - बुद्धि, विवेक, वीरता आदि।

क्योंकि ज्ञानार्जन इन गुणों पर निर्भर है , इनका विकास करना साधक का उप-लक्ष्य हो जाता है। जो गुणों और योग्यताओं को बढ़ाते हैं वो ज्ञानमार्ग पर तेज प्रगती करते हैं।

गुरुजन साधक का मूल्यांकन इन्ही गुणों के आधार पर करते हैं , और कुछ गुरु वांछित गुण न होने पर शिष्य को अस्वीकार भी कर देते हैं।