ज्ञानमार्ग

ज्ञानमार्ग से
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ज्ञानमार्ग एक आध्यात्मिक मार्ग है। यह जीवन यापन का एक तरीका है जो ज्ञान पर आधारित है। इसमें अज्ञान की पहचान करना, उसका नाश करना, ज्ञान प्राप्त करना और ज्ञान में सदा अवस्थित रहना शामिल है।

यह मार्ग साधक को परम ज्ञान तक ले जाता है, साधक को अज्ञान से मुक्त करता है। अज्ञान के अंत से बंधन और दुःख का अंत होता है।

जनसाधारण को अज्ञान से बाहर लाना भी इस मार्ग का लक्ष्य है। जब भी संभव हो, उचित साधनों और कौशल का उपयोग साधारण जनता के कल्याण के लिए किया जाता है।


साधना

ज्ञान के मार्ग पर पारंपरिक अनुशंसित साधना है: श्रवण, मनन और निदिध्यासन

विशेषताएँ

ज्ञानमार्ग एक ऋणात्मक मार्ग है जो अंततः अज्ञेयवाद और समर्पण की ओर जाता है।

ज्ञान के मार्ग से प्राप्त ज्ञान अधिकतर नकारात्मक ज्ञान है। किसी भी सकारात्मक ज्ञान को केवल अज्ञान ही माना गया है। इस प्रकार यह साधक को यह दिखाता है कि सभी वस्तुओं का स्वभाव शून्यता है।

यह अधिकतर नास्तिक मार्ग है। कुछ परंपराएँ आस्तिक तत्वों के कुछ प्रकार को समायोजित करती हैं, यदि वे साधकों को लाभान्वित करे।

यह बहुत प्राचीन मार्ग है, शायद हजारों साल पुराना है। यह जगत के सभी भागों में विभिन्न रूपों में पाया जाता है, जो एक ही मूल ज्ञान प्रदान करते हैं।

ज्ञानमार्ग एक सीधा मार्ग है, जिसका अर्थ है कि ज्ञान बिना किसी देरी के तुरंत प्राप्त किया जाता है। कोई दीर्घकालिक अभ्यास नहीं, कोई अनुष्ठान नहीं, कोई देवता नहीं, कोई पूजा नहीं, कोई अंधविश्वास नहीं, कुछ गूढ़ नहीं, और कोई पदानुक्रम नहीं।

प्रगतिहीन है। इसे पथहीन पथ भी कहा जाता है।

हालाँकि इसे तात्कालिक होने के लिए वांछित गुणों वाले साधक की आवश्यकता होती है। अधिकतर, साधकों के पास ये आदर्श गुण नहीं होते हैं और इसलिए उन्हें अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद करने के लिए कुछ प्रगतिशील साधन प्रदान किए जाते हैं।

लक्ष्य

ज्ञानमार्ग का लक्ष्य है अज्ञान से मुक्ति।

फल

मुक्ति

  • ज्ञानमार्ग तुरंत मुक्त करता है आत्मज्ञान ही मुक्ति है।

चेतना

आनंद

  • साधक नित्य आनंद की अवस्था प्राप्त करता है।

समाधी

  • साधक एकता या संतुलित बुद्धि की अवस्था प्राप्त करता है।

सुख

  • दुःख का समूल नाश होता है।

बुद्धि

  • बुद्धि शुद्ध होकर प्रकाशित और तेज हो जाती है।

मनुष्य योनि के ऊपर प्रगति

  • जीव का विकास तीव्र हो जाता है। मनुष्य योनि के ऊपर प्रविष्ट होता है।

संतुष्टि

  • जीवन वासनारहित और साधारण हो जाता है।

स्वतंत्रता

  • बंधनमुक्ति होती है। बुद्धि बढ़ने से परतंत्रता नष्ट होती है।

नैतिकता

  • आचरण नैसर्गिक और नैतिक हो जाता है।

करुणा

  • करुणा, दया , प्रेमभाव उपजता है।

समर्पण

परम्पराएँ

ज्ञानमार्ग पर कई परम्पराएँ मिलती हैं , कुछ नयी हैं तो कुछ हज़ारों वर्ष पुरानी हैं।

गुरु

ज्ञानमार्ग पर अगणित गुरु, ज्ञानी और ऋषि मिलते हैं , जिन्होंने ज्ञान को जीवित रखा और उसका प्रसार भी किया।

शास्त्र

ज्ञानमार्ग हज़ारों शास्त्रों ग्रंथों पुस्तकों के रूप में उपलब्ध है। इनमे वेद और उपनिषद सर्वोपरि हैं।


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